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Sunday, February 23, 2020

अहंकार


भारत से एक भिक्षु कोई चौदह सौ वर्ष पहले चीन गया, नाम था उसका बोधिधर्म। वह चीन पहुंचा। उसके पहुंचने के पहले उसकी ख्याति चीन पहुंच गई। वह बहुत अदभुत व्यक्ति रहा होगा। चीन का सम्राट उसे लेने चीन की सीमा पर आया। उसने स्वागत किया बोधिधर्म का और एकांत में बोधिधर्म से कहाः भिक्षु, बड़ी प्रशंसा मैंने सुनी है तुम्हारी और बड़े दिन से तुम्हारी प्रतीक्षा करता हूं कि तुम कब आ जाओ। मेरे जीवन का एक दुख है, उसे मैं मिटाना चाहता हूं। अहंकार मुझे पीड़ा दे रहा है। और सैकड़ों-सैकड़ों धर्मोपदेशकों ने मुझे समझाया है कि अहंकार छोड़ो तो दुख के बाहर हो जाओगे। लेकिन मैं अहंकार कैसे छोडूं? मैंने सब उपाय किए। मैंने उपवास किए, मैंने रूखे-सूखे भोजन किए, मैं गद्दियां छोड़ कर जमीन पर सोया, मैंने शरीर को कृशकाय कर लिया, मैं भूखों मरा, मैंने सब तरह के भोग बंद किए, मैंने सब तरह के अच्छे वस्त्र पहनने बंद कर दिए, सर्दियां और गर्मियां मैंने लंगोटियों पर गुजारीं। लेकिन भीतर मैं पाता हूं कि अहंकार मरता नहीं, वह मौजूद है। धन भी मैंने देख लिया, राज्य भी मैंने देख लिया, त्याग भी मैंने देख लिया, मैं बड़ा परेशान हूं, यह अहंकार तो जाता नहीं, वह तो मौजूद है, वह कहीं छोड़ता नहीं पीछा। अब मैं क्या करूं?


उस बोधिधर्म ने कहाः मेरे मित्र, तुमने जो भी किया, वह व्यर्थ है, क्योंकि तुमने सबसे बुनियादी बात नहीं की। वह बुनियादी बात कल सुबह हम करेंगे, तुम चार बजे आ जाओ, मैं तुम्हारे अहंकार को खत्म ही कर दूंगा।


वह राजा बहुत हैरान हुआ! इतनी आसान है क्या बात, जिसे जीवन भर उसने खत्म करने की कोशिश की है, यह कहता है व्यक्ति कि चार बजे रात आ जाओ, खत्म कर देंगे! खैर देखें। वह राजा उतरने लगा उस मंदिर की सीढ़ियां जहां बोधिधर्म ठहरा था, वह आधी सीढ़ियों पर होगा कि बोधिधर्म ने कहा कि सुनो, एक बात ख्याल रखना, जब आओ तो अकेले मत आ जाना, अहंकार को साथ ले आना।


राजा थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि उसने कहा कि यह क्या बात हुई कि अहंकार को साथ ले आना! बोधिधर्म ने कहाः इसलिए कहता हूं कि तुम अगर अकेले आ गए, तो मैं हत्या किसकी करूंगा? साथ ले आना अहंकार को, तो उसको खत्म कर दूंगा, एकबारगी में मामला निपट जाएगा, बात खत्म हो जाएगी।


चार बजे वह आया। आते ही से बोधिधर्म ने पूछाः ले आए अहंकार?


उसने कहाः आप भी कैसी बातें करते हैं! अहंकार कोई वस्तु तो है नहीं कि मैं ले आता।


बोधिधर्म ने कहाः चलो एक बात तय हो गई कि अहंकार कोई वस्तु नहीं है। फिर क्या है अहंकार?
उस राजा ने कहाः अहंकार तो एक भाव है, एक चित्त की दशा है।


उसने कहाः चलो दूसरी बात मान लेता हूं कि अहंकार भाव है। अब आंख बंद करके बैठ जाओ और खोजो कि वह भाव कहां है? और तुम्हें मिल जाए तो मुझे बता देना, वहीं मैं उसकी हत्या कर दूंगा।
उस अंधेरी रात में, चार बजे सुबह, वह राजा आंख बंद करके बैठ गया और खोजने लगा अपने भीतर कि अहंकार कहां है? और बोधिधर्म सामने डंडा लिए बैठा हुआ था, वह डंडा हमेशा अपने हाथ में रखता था। और उसने कहाः तुम्हें मिल जाए, तो मुझे बस बता भर देना कि पकड़ लिया, मैं उसकी हत्या कर दूंगा। वह सामने बैठा है और राजा को बीच-बीच में डंडे से धक्के देते जाता है कि देखो, ख्याल से खोजो, कोई जगह चूक न जाए, कोई कोना बिना जाना न रह जाए, सारे मन को खोज डालो कि कहां है अहंकार और पकड़ लो उसे वहां कि यहां है, यह है। और तुम जैसे ही कह सकोगे कि यह है, मैं उसकी हत्या कर दूंगा।


आधी घड़ी बीती, घड़ी बीती, वह जो राजा बैठा था, उसके चेहरे पर बड़ा तनाव, खोज रहा है। लेकिन धीरे-धीरे चेहरे का तनाव शिथिल होता गया, उसके चेहरे के स्नायु तंतु शिथिल होते गए, उसका चेहरा एकदम शांत होता गया। घंटा बीता, दो घंटा बीता, वह खोज रहा है। लेकिन अब, अब उसकी आंखों के आस-पास कोई बड़ी शांति इकट्ठी होने लगी। उसके ओंठों के आस-पास कोई मुस्कुराहट घनी होने लगी। वह खोज रहा है, और सुबह होने लगी और सूरज निकलने लगा और सूरज का प्रकाश आने लगा और उसके चेहरे पर सूरज की रोशनी पड़ने लगी। वह कोई दूसरा आदमी हो गया। और बोधिधर्म ने उसे हिलाया और कहाः मित्र, कब तक खोजते रहोगे?


उसने आंख खोली, उसने बोधिधर्म के पैर पड़े और कहाः मैं जाता हूं। जिसकी हत्या के लिए मैं आया था, वह है ही नहीं। मैंने आज तक खोजा नहीं, इसलिए वह था; आज मैंने खोजा, तो पाया कि वह नहीं है।


बोधिधर्म ने कहाः वैसा ही है यह, जैसे किसी घर में अंधेरा हो और किसी आदमी को हम कहें कि जाओ दीया ले जाओ और खोजो कि कहां है? दीया लेकर वह भीतर जाए, तो अंधेरा नहीं मिलेगा। अंधेरा होता है, क्योंकि दीया नहीं होता। और दीया लेकर भीतर कोई जाता है, तो पाता है, अंधेरा नहीं है। ऐसे ही जब कोई सम्यकरूपेण मन के भीतर होशपूर्वक दीया लेकर जाता है--विचार का, विवेक का, प्रज्ञा का दीया लेकर खोजता है भीतर, तो पाता है, वहां कोई अहंकार नहीं है। जब तक नहीं जाता खोजने, तब तक अहंकार है। हमारी अनुपस्थिति अहंकार है, जैसे ही हम भीतर उपस्थित होते हैं खोजने को, वहां कोई अहंकार नहीं है।

अपने माहिं टटोल 

ओशो 

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