सत्य बहुत निकट है, सत्य से ज्यादा निकट और कोई बात नहीं हो
सकती। लेकिन प्यास न हो, तो सत्य सबसे
ज्यादा दूर हो जाता है। प्यास न हो,
तो सत्य और हमारे बीच इतना बड़ा फासला हो जाता है जिसे पार करना मुश्किल है, और प्यास हो तो कोई फासला नहीं रह जाता।
और अगर प्यास पूरी तरह पैदा हो जाए,
तो सत्य हाथ बढ़ाते ही उपलब्ध हो जाता है।
एक गांव में जहां कोई हजार लोग रहते थे, एक बहुत बड़े सदगुरु का निकलना हुआ था। उस
गांव के एक व्यक्ति ने आकर उनको कहाः आप इतने लोगों को सत्य के संबंध में समझाते
हैं, इतने लोगों को मोक्ष
के संबंध में बताते हैं, कितने लोगों
को मोक्ष उपलब्ध हुआ है? कितने लोगों
को सत्य मिला? उस फकीर ने
कहाः एक काम करो, कल सुबह तुम
आना और फिर हम उत्तर देंगे। वह कल सुबह आया,
उस फकीर ने कहाः तुम गांव में जाओ और सारे लोगों से पूछना कि कौन व्यक्ति क्या
चाहता है? और एक
फेहरिस्त बना कर मेरे पास आ जाना। वह आदमी गांव में गया, हजार लोग वहां रहते थे। उसने सुबह से सांझ
तक एक-एक आदमी को मिल कर पूछा कि तुम्हारी आकांक्षा क्या है? और सांझ को वह पूरी फेहरिस्त बना कर आया।
उस फकीर ने पूछाः इस फेहरिस्त में कोई आदमी सत्य को भी चाहता है? उसमें एक भी आदमी नहीं था जो सत्य को
चाहता हो! धन को चाहने वाले थे,
यश को चाहने वाले थे, पुत्र-पुत्रियों
को चाहने वाले थे, और सारे चाहने
वाले थे, उन हजार लोगों
में से एक ने भी नहीं लिखा था कि मैं सत्य को चाहता हूं। तो उस फकीर ने कहाः अगर
लोग सत्य को न चाहते हों, तो सत्य
उन्हें दिया नहीं जा सकता है। सत्य किसी को भी दिया नहीं जा सकता है। स्मरण रखिए, मैं आपको पानी तो दे सकता हूं, लेकिन प्यास कैसे दूंगा? और पानी अगर दे भी दूं और प्यास न हो तो
उस पानी में अर्थ क्या होगा?
दुनिया में बहुत लोगों ने जिन्होंने जाना
है, अपनी बात कही है।
लेकिन उनकी बात पानी है, आपमें प्यास
हो तो उसमें अर्थ होगा, आपमें प्यास न
हो तो व्यर्थ हो जाएगी। सत्य की जिज्ञासा में पहली शर्त हैः प्यास होनी चाहिए।
अमृत वर्षा
ओशो
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