मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन लखनऊ के एक नवाब का नौकर
था। शुरुआत तो छोटी सी नौकरी से हुई थी,
लेकिन कुशल आदमी है, चमचागिरी में
कुशल, जल्दी ही नवाब के बहुत
अंतरंग लोगों में हो गया। चमचे का अर्थ होता है: झूठ बोलने में कुशल। चमचे का अर्थ
होता है: झूठ की कला में पारंगत। चमचे का अर्थ होता है: अंधे को नैनसुख कहे, या अंधे को प्रज्ञाचक्षु कहे। चमचे का
अर्थ होता है: कुरूप को सौंदर्य की गरिमा दे,
महिमा दे, गीत गाए; जो गालियों के भी योग्य नहीं है उसके लिए
गीत गाए।
मुल्ला जल्दी ही सीढ़ियां चढ़ा, बहुत जल्दी नवाब का सबसे अंतरंग मित्र हो
गया--ऐसा अंतरंग कि नवाब उसके बिना उठे नहीं,
बैठे नहीं; ऐसा अंतरंग कि
रात सोए भी नवाब तो मुल्ला भी उसी कमरे में सोए। एक दिन दोनों खाना खाने बैठे हैं, नवाब को सब्जी बहुत पसंद आई। भिंडी की
सब्जी बनी, नयी-नयी अभी
ताजीत्ताजी भिंडियां आई हैं। नवाब ने कहा मुल्ला को कि भिंडी की सब्जी भी बड़ी गजब
की चीज है! मुल्ला ने कहा, क्यों न हो!
अरे भिंडी के संबंध में तो शास्त्रों में ऐसे-ऐसे उल्लेख हैं कि अमृत है भिंडी, कि हजार रोगों की एक दवा है भिंडी, कि बूढ़ा खाए तो जवान हो जाए, कि कहानियां तो यहां तक हैं कि मुर्दों ने
खाई तो जिंदा हो गए! जितना झूठ बोल सकता था भिंडी के संबंध में, बोला। रसोइए ने भी सुन लिया कि भिंडी तो
अदभुत चीज है और नवाब ने भी माना। रसोइया रोज भिंडी बनाने लगा।
अब एक दिन भिंडी हो तो चल जाए, दूसरे दिन भिंडी हो तो चला लो, तीसरे दिन मुश्किल होने लगे। जब सातवें
दिन फिर भिंडी बनी तो नवाब ने थाली फेंक दी। कहा, यह क्या मचा रखा है?
क्या मुझे मारोगे? भिंडी, भिंडी, भिंडी!
मुल्ला नसरुद्दीन एकदम आगबबूला हो गया, उसने भी अपनी थाली फेंक दी। उसने कहा, यह रसोइया पागल है। अरे भिंडी जहर है!
शास्त्रों में तो साफ लिखा है कि जवान खाएं तो बूढ़े हो जाएं; और बूढ़े खाएं कि मरे। बच्चों ने खाई है, बाल सफेद हो गए हैं।
नवाब ने कहा, अरे नसरुद्दीन, और सात दिन पहले तो तुम कुछ और कहते थे!
नसरुद्दीन ने कहा, मालिक, मैं आपका गुलाम हूं,
भिंडी का नहीं। मैं तनख्वाह आपसे पाता हूं, भिंडी से नहीं। अरे भिंडी से मुझे क्या लेना-देना है? आप जिसमें खुश, मैं उसमें खुश।
झूठ सदा तुम्हारे सामने हाथ जोड़े खड़ा
रहेगा। झूठ के सामने तुम्हें झुकना ही नहीं होता। झूठ तो खुद ही झुका है। झूठ तो
तुम्हें फुसलाता है। झूठ तो तुम्हारे ऊपर जितना मक्खन चढ़ा सके चढ़ाता है; जितनी पूजा-अर्चना तुम्हारी कर सके करता
है। तब तो तुम्हें अपने लिए राजी कर पाता है। नहीं तो झूठ के लिए कौन राजी होगा!
झूठ के साथ कौन चलेगा!
झूठ बड़े सुंदर वस्त्र पहन कर आता है। झूठ
बड़े सुंदर रूप रख कर आता है। झूठ शास्त्रों के सहारे लेकर आता है। कहावत है कि
शैतान शास्त्रों का उल्लेख करता है। झूठ डरा हुआ है कि अगर किसी ने गौर से देख
लिया, वस्त्र उघाड़ कर देख
लिए, तो भीतर का खोखलापन
दिखाई पड़ जाएगा। इसलिए झूठ सब आयोजन करता है कि तुम्हें उसकी सचाई दिखाई न पड़े।
झूठ तो तुम्हारे चरण दबाता है। झूठ तो बड़ा सेवक है।
उत्सव आमार जाती आनंद आमर गोत्र
ओशो
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