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Friday, February 28, 2020

प्रेम प्रभु को उपलब्ध करने का द्वार है


बहुत पुरानी घटना है एक गुुरुकुल से तीन विद्यार्थी अपनी समस्त परीक्षाएं उतीर्ण करके वापस लौटते थे। लेकिन उनके गुुरु ने पिछले वर्ष बार-बार कहा था कि तुम्हारी एक परीक्षा शेष रह गई है। उन्होंने बहुत बार पूछा कि वह कौन सी परीक्षा है? गुरु ने कहा, वह परीक्षा बिना बताए ही लिए जाने की है, उसे बताया नहीं जा सकता। और सारी परीक्षाएं तो बता कर ली जा सकती हैं, लेकिन जीवन की एक ऐसी परीक्षा भी है जो बिना बताए ही लेनी पड़ती है। समय पर तुम्हारी परीक्षा हो जाएगी, लेकिन स्मरण रहे, उस परीक्षा को बिना पास किए, बिना उत्तीर्ण हुए तुम उत्तीर्ण नहीं समझे जा सकोगे।

फिर उनकी सारी परिक्षाएं हो गईं, उन्हें परीक्षाओं में प्रमाणपत्र भी मिल गए, फिर उनके विदा का दिन भी आ गया, दीक्षांत-समारोह भी हो गया और वे विद्यार्थी बार-बार सोचते रहे कि वह अंतिम परीक्षा कब होगी? अब तो अंतिम विदा का दिन भी आ गया। तीन विद्यार्थी जो उस विश्वविद्यालय की, उस गुरुकुल की सारी परिक्षाएं उत्तीर्ण कर चुके थे वे उस सांझ विदा भी हो गए। रास्ते में उन्होंने एक-दो बार सोचा भी, पूछा भी एक-दूसरे से एक परीक्षा शेष रह गई। गुरु बार-बार कहते थे एक परीक्षा लेनी है। लेकिन अब वह परीक्षा कब होगी, अब तो वे गुरुकुल से विदा भी ले चुके?

सूरज ढलने को था, गुरुकुल पीछे छूट गया, घना जंगल आगे था। वे तेजी से जंगल पार कर रहे थे ताकि शीघ्र गांव में पहुंच जाएं। एक झाड़ी के पास से निकलते समय पगडंडी पर दिखाई पड़ा बहुत से कांटे पड़े हैं, एक युवक जो आगे था छलांग लगा कर निकल गया। दूसरा युवक पगडंडी से नीचे उतर कर पार कर गया। लेकिन तीसरा युवक अपने सामान को, अपने ग्रंथों को नीचे रख कर कांटे बीनने लगा। उन दो युवकों ने उससे कहा, पागल हुए हो! समय खोने का मौका नहीं है, रात हुई जाती है, घना जंगल है, रास्ता भटक सकता है अंधेरे में, फिर गांव हमें जल्दी पहुंच जाना चाहिए। यह समय कांटे बीनने का नहीं है।

उस युवक ने कहा, इसीलिए कांटे बीन रहा हूं, क्योंकि सूरज ढला जाता है फिर रात हो जाएगी हमारे पीछे जो भी पथिक आएगा उसे कांटे दिखाई नहीं पड़ सकेंगे। देखते हुए हम कांटों को बिना बीने निकल जाएं और रात होने को है पीछे कोई भी आएगा उसे फिर कांटे दिखाई नहीं पड़ेंगे, इसलिए मैं कांटे बीन लूं। तुम चलो मैं थोड़ा दौड़ कर तुम्हे मिला लूंगा। वह कांटे बीन ही रहा है, वे दोनों युवक चलने को हुए तभी वे तीनों हैरान रह गए पास की झाड़ी से उनका गुरु बाहर निकल आया। उस गुरु ने कहा, जो दो युवक आगे निकल गए हैं वे वापस लौट आएं। वे अंतिम परीक्षा में असफल हो गए हैं। जिसने कांटे बीने हैं वह जा सकता है, वह अंतिम परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो गया है।

उनके गुरु ने कहा, ज्ञान की परीक्षाएं अंतिम नहीं हैैं अंतिम परीक्षा तो प्रेम की है। और जो प्रेम को उपलब्ध नहीं होता उसका सब ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। नेहरू विद्यालय के भारतीय सप्ताह के इस उदघाटन में मैं यही प्रार्थना करूंगा कि यह विद्यालय केवल ज्ञान देने का माध्यम नहीं बनेगा बल्कि प्रेम देने का भी क्योंकि प्रेम की परीक्षा में जो उत्तीर्ण नहीं है, उसका सब ज्ञान व्यर्थ है। और जो प्रेम की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है, वह जो प्रेम के ढाई अक्षर भी सीख लेता है वह सारे ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है क्योंकि प्रेम प्रभु को उपलब्ध करने का द्वार है।

नए मनुष्य का धर्म 

ओशो 


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