मनुष्य के भीतर तीन तत्व हैं। एक तो उसकी
आत्मा है, जो उसका अंतर्तम है, जिसको पाना है। जैसे एक त्रिकोण हो। वह जो तीसरा कोण है ऊपर, वह तो आत्मा है। और वे जो दो आधार पर कोण हैं, उनमें एक मन है और एक शरीर है। तीसरे कोण तक जाने के लिए या
तो शरीर से जाना होगा या मन से जाना होगा। दो उपाय हैं। तीसरा कोई उपाय नहीं है।
पतंजलि भी शरीरवादी हैं। उनकी भी प्रक्रिया शरीर से शुरू होती है--यम, नियम, प्राणायाम, आसन, इत्यादि। शुरू
करते हैं शरीर से और महावीर भी पतंजलि ही जैसे व्यक्ति हैं। उनकी प्रक्रिया भी
शरीर से शुरू होती है।
एक अर्थ में महावीर जैसे पतंजलि से राजी
हैं। अगर आधुनिक जगत में हम महावीर का कोई समर्थन खोजना चाहें, तो पावलोव, रूस का
मनोवैज्ञानिक। स्क्निर--अमरीका का मनोवैज्ञानिक। देलगादो। ये तीन व्यक्ति हैं
आधुनिक युग में जो महावीर से राजी होंगे। इन तीनों को कहा जाता है--बिहेवियरिस्ट; व्यवहारवादी। ये व्यक्ति के व्यवहार को बदलते हैं, उसके शरीर की कीमिया को बदलते हैं। और शरीर की कीमिया की
बदलाहट से उसके अंतर्तम को बदला जा सकता है।
एक अर्थ में तो महावीर वैज्ञानिक हैं, बहुत वैज्ञानिक हैं। लेकिन उनका विज्ञान शरीर से शुरू होता
है। पहुंचता आत्मा पर है। इसलिए महावीर की प्रक्रिया ध्यान की नहीं, तप की है। शरीर को शुद्ध करना है उपवास से...। इतना शुद्ध
करना है शरीर को, कि शरीर की सारी की सारी वासनाएं क्षीण हो
जाएं। और जब शरीर की सारी वासनाएं क्षीण हो जाती हैं, तो उसके साथ ही मन में पड़ती हुई शरीर की प्रतिछायाएं क्षीण
हो जाती हैं।
तुम्हारे भीतर कामवासना उठती है, उसके दो अंग होते हैं: एक तो मन और एक शरीर। अगर तुम बहुत
गौर से देखोगे, तो तुम पाओगे कि दोनों तत्वों का सम्मिलन
होता है कामवासना में--शरीर का और मन का। अगर शरीर साथ न दे, तो भी मन कुछ कर नहीं सकता। और अगर मन साथ न दे, तो शरीर कुछ कर नहीं सकता। शरीर और मन एक ही सिक्के के बाहर
और भीतर के पहलू हैं। इस सिक्के को फेंकने के दो ढंग हैं। या तो शरीर का पहलू फेंक
दो, दूसरा पहलू अपने आप फिंक जाएगा। और या फिर मन का पहलू फेंक
दो। शरीर का पहलू फेंकना कठिन है, दुर्गम है।
इसलिए महावीर की साधना दुर्गम है। तभी तो उन्हें महावीर कहा। यह उनका नाम नहीं है।
उनका नाम तो था वर्धमान। लेकिन उनको महावीर कहा, क्योंकि
उन्होंने दुर्धर्ष साधना की बारह वर्ष। शरीर को यूं शुद्ध किया की शरीर की सारी
केमिस्ट्री, शरीर का पूरा रसायन बदल दिया।
जो बोले सो हरी कथा
ओशो
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