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Tuesday, February 11, 2020

क्या सिर्फ सुनने से कोई उपलब्ध हो सकता है?


सम्यक श्रवण से समाधि उपलब्ध हो सकती है। अगर कोई परिपूर्ण, समग्र चित्त से सुन ले, उसे सुन ले, जिसे सत्य उपलब्ध हुआ हो। कृष्ण को सुन ले, बुद्ध को सुन ले, महावीर को सुन ले; और उस सुनने में अपने मन की बाधाएं खड़ी न करे, विचार न उठाए, निस्तरंग होकर सुन ले, स्थिर चित्त होकर सुन ले, तो उतने से ही संबोधि घटित हो जाती है। क्योंकि सत्य तुमने खोया थोड़े ही है, केवल तुम भूल गए हो। सत्य को कहीं तुम छोड़ थोड़े ही आए हो; उसे छोड़ने का उपाय नहीं है। सत्य तो तुम्हारा स्वभाव है।


जैसे कोई नींद में खो गया हो, भूल जाए, मैं कौन हूं। नशे में खो गया हो, भूल जाए घर, पताठिकाना, अपना नाम। उसे कुछ करना थोड़े ही पड़ेगा; सिर्फ याद दिलानी होगी।


पहले महायुद्ध की घटना है। महायुद्ध हुआ, तो अमेरिका में पहली बार राशनिंग हुई; कार्ड बने, नियंत्रण हुआ। बहुत बड़ा वैज्ञानिक थामस अल्वा एडिसन, वह तो कभी बाजार गया भी नहीं था, कभी कुछ खरीदा भी न था। लेकिन राशन कार्ड बनवाने उसे जाना पड़ा। स्वयं ही आना होगा अपना कार्ड बनवाने।


तो वह खड़ा हो गया। लंबी कतार थी। एकएक का नाम बुलाया जाता और लोग जाते। जब वह बिलकुल कतार के शुरू में आ गया और उसके आगे का आखिरी व्यक्ति भी बुलाया जा चुका, फिर आवाज आयी, थामस अल्वा एडीसन! पर वह खड़ा रहा, जैसे कि यह नाम किसी और का हो। दुबारा आवाज आयी, वह खुद भी इधरउधर देखने लगा कि किसको बुलाया जा रहा है! पीछे खड़े एक आदमी ने कहा कि महानुभाव, जहां तक मुझे याद आती है, अखबारों में आपका चित्र देखा है। तो मुझे तो लगता है, आप ही थामस अल्वा एडीसन हैं। आप किसको देखते हैं? उसने कहा कि भई, ठीक याद दिलाई, मुझे खयाल ही न रहा।


एडीसन को भूल जाने का कारण था। वह इतना प्रख्यात विचारक था, इतना बड़ा वैज्ञानिक था कि कोई उसका नाम लेकर तो बुलाता नहीं था। वर्षों से किसी ने उसका नाम तो लिया नहीं था; सम्मानित व्यक्ति था। उसके विद्यार्थी तो उसे प्रोफेसर कहते। वह भूल ही गया था, अपने काम में, धुन में, इतना लगा रहा था।


अक्सर बहुत विचारशील लोग भुलक्कड़ हो जाते हैं। इतने खो जाते हैं विचारों में कि छोटी छोटी चीजें याद नहीं रह जातीं।


अब यह बड़ा कठिन लगता है कि कोई अपना नाम भूल जाए। लेकिन नाम भी तो सिखावन ही है। तुम कोई नाम लेकर आए तो थे नहीं संसार में। सिखाया गया है कि तुम्हारा नाम एडीसन है, राम है, कृष्ण है। सिखावन है।


हर सीखी चीज भूली जा सकती है। नाम भी भूला जा सकता है। हम भूलते नहीं, क्योंकि चौबीस घंटे उसका उपयोग होता है। और हम भूलते नहीं, क्योंकि हम बड़े अहंकारी हैं और नाम के साथ हमने अहंकार जोड लिया है।


लेकिन थामस अल्वा एडीसन बड़ा सरल चित्त आदमी था। बहुत कहानियां हैं उसके भुलक्कड़पन की। वह इतना सरल चित्त था, इतना बड़ा विचारक था कि हजार उसने आविष्कार किए। लेकिन वह बड़ी मुश्किल में पड़ जाता था। वह कुछ खोज लेता, लिख देता कागज पर। फिर वह कागज न मिलता। उसके घर भर में कागज छाए हुए थे, जहां वह लिखलिखकर छोड़ता जाता। कहते हैं कि अगर उसकी पत्नी न होती, तो वह एक भी आविष्कार न कर सकता था, क्योंकि पत्नी सम्हालकर कागजात रखती। लेकिन कागजात इतने हो गए कि पत्नी भी न सम्हाल पाए।


तो मित्रों ने कहा, तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि अलगअलग फुटकर कागज पर लिखने की बजाए, डायरी में लिखो। उसने कहा, यह बात बिलकुल ठीक है। उसने डायरी में लिखी। पूरी डायरी खो गई। उसने अपने मित्रों से बडी नाराजगी जाहिर की। उसने कहा कि एकएक कागज पर लिखता था, तो एकएक कागज ही खोता था। यह पूरी डायरी ही खो गई। इसमें कोई पांच सौ सूत्र लिखे थे। यह तुम्हारा सूत्र काम न आया!।


यह आदमी भूल गया, अपनी धुन में था। लेकिन जैसे ही पीछे के आदमी ने याद दिलाई कि आपका चेहरा अखबार में देखा है, नाम आपका ही एडीसन मालूम होता है। तत्‍क्षण स्मृति आ गई।


वैसे ही परमात्‍मा को हम भूल सकते हैं, खो नहीं सकते। क्योंकि परमात्मा कोई परायी बात नहीं, तुम्हारे भीतर का अंतर्तम है, तुम्हारे ही मंदिर में विराजमान, तुम्हीं हो। तुम्हारी निजता का ही नाम है; तुम्हारे स्वभाव की ही प्रतिमा है।



इसलिए श्रवण से भी संबोधि घटित हो सकती है। कोई इतना ही कह दे कि तुम ही हो।

यही तो उपनिषद कहते हैं, तत्वमसि श्वेतकेतु! तू ही है, श्वेतकेतु।

गीता दर्शन 

ओशो

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