तर्क अपने आप में तो बिल्कुल व्यर्थ है, अपने आप में बिल्कुल ही व्यर्थ है। तर्क
अपने आप में बूढ़े हो गए बच्चों का खेल है,
उससे ज्यादा नहीं। हां, तर्क के साथ
प्रयोग मिल जाए, तो विज्ञान का
जन्म हो जाता है। और तर्क के साथ योग मिल जाए, तो धर्म का जन्म हो जाता है। तर्क अपने आप में शून्य की
भांति है। शून्य का अपने में कोई मूल्य नहीं है। एक के ऊपर रख दें, तो दस बन जाता है, नौ के बराबर मूल्य हो जाता है। अपने में
कोई भी मूल्य नहीं, अंक पर बैठ कर
मूल्यवान हो जाता है। तर्क का अपने में कोई मूल्य नहीं। प्रयोग के ऊपर बैठ जाए तो
विज्ञान बन जाता है, योग के ऊपर
बैठ जाए, तो धर्म बन
जाता है। अपने आप में कोरा खोल है,
शब्दों का जाल है।
मैंने सुना है, एक बहुत बड़े महानगर में एक आदमी ने गांव
में आकर विज्ञापन करवाया। डूंडी पिटवाई। एक ऐसा घोड़ा प्रदर्शित किया जाएगा आज
संध्या, जैसा घोड़ा न कभी हुआ
और न कभी देखा गया है। उस घोड़े की खूबी यह है कि घोड़े का मुंह वहां है, जहां उसकी पूंछ होनी चाहिए पूंछ वहां है, जहां उसका मुंह होना चाहिए।
सारे लोग उस गांव के उस भवन की तरफ टूट
पड़े, जहां सांझ उस घोड़े का
प्रदर्शन था। महंगी टिकटें थीं,
वे उन्होंने खरीदीं। अगर आप भी उस गांव में रहे होंगे, तो जरूर उस भवन में गए होंगे। गांव में
कोई समझदार आदमी बचा ही नहीं, जो उस घोड़े को
देखने न गया हो।
भीड़ बाहर-भीतर, और घोड़े की तीव्र प्रतीक्षा और वह आदमी
बार-बार मंच पर आकर कहने लगा कि थोड़ा सा ठहर जाएं, थोड़ा ठहर जाएं,
फिर सांस लेने को भी जगह न रही। और लोग चिल्लाने लगे कि अब जल्दी करो! और जब
पर्दा उठा, तो सामने एक
साधारण घोड़ा खड़ा था। एक क्षण तो सब चैंक कर रह गए। घोड़ा बिल्कुल साधारण था। गौर से
देखा, फिर लोग चिल्लाए कि
धोखा है यह! यह घोड़ा तो बिल्कुल साधारण है।
उस आदमी ने कहाः ठीक से देखो। जो मैंने
कहा था, वह बात पूरी है। घोड़े
के मुंह में जो तोगड़ा बांधा जाता है,
वह घोड़े की पूंछ में बांधा हुआ था। और उस आदमी ने कहा कि देख लो, मैंने जो खबर की थी, वह यह थी कि घोड़े का मुंह वहां है, जहां पूंछ होनी चाहिए, और पूंछ वहां है जहां मुंह होना चाहिए।
तोगड़े में पूंछ थी, जहां मुंह
होना चाहिए था। और उसने कहा कि अगर तुम तर्क को थोड़ा भी समझते हो, तो चुपचाप वापस लौट जाओ।
उस भवन से लोगों को चुपचाप पैसे खोकर वापस
लौट आना पड़ा। तर्क सही था, लेकिन तर्क बस
इतना ही कर सकता है कि जहां घोड़े का मुंह हो वहां पूंछ डाल दे। जहां पूंछ हो, वहां मुंह डाल दे, तोगड़ा बदल दे। इससे ज्यादा तर्क कुछ भी
नहीं कर सकता है।
और तर्क के साथ मजा यह है कि तर्क ऐसी
तलवार है, जिसमें दोनों
तरफ धार है। वह एक तरफ ही नहीं काटती,
वह दोनों तरफ काटती है। इसलिए ऐसा कोई तर्क नहीं जो तर्क से नहीं कट जाता हो।
इसलिए जो आस्तिक तर्क देकर ईश्वर को सिद्ध करते हैं, वे आस्तिक तर्क से ईश्वर को असिद्ध करवा देते हैं। जिन
आस्तिकों ने ईश्वर के लिए तर्क दिया है,
उन्होंने वे नास्तिक पैदा किए,
जिन्होंने ईश्वर को खंडित किया है। नास्तिक उन आस्तिकों ने पैदा किए हैं, जिन्होंने ईश्वर के लिए तर्क दिया है।
दुनिया में जिस दिन तर्क देने वाले आस्तिक
विदा हो जाएंगे, उसी दिन तर्क
देने वाले नास्तिक समाप्त हो जाएंगे। जब तक दुनिया में आस्तिक हैं, तब तक नास्तिक नहीं मर सकता, क्योंकि नास्तिक आस्तिक के तर्क का उत्तर
है और अगर दुनिया को धार्मिक बनना है,
तो आस्तिकों को मर जाना चाहिए। ताकि नास्तिक समाप्त हो जाएं। दुनिया उस दिन
धार्मिक होगी, जिस दिन ईश्वर
के लिए, सत्य के लिए तर्क देना
नासमझी ज्ञात होगी।
जीवन क्रांति के सूत्र
ओशो
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