Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, November 14, 2019

क्यों आप युवकों को भी संन्यास दे देते हैं? संन्यास तो वृद्धों के लिए है।


मेरे पास लोग आते है, वे पूछते हैः क्यों आप युवकों को भी संन्यास दे देते हैं? संन्यास तो वृद्धों के लिए है। शास्त्र तो कहते हैं: पचहत्तर साल के बाद। तो शास्त्र बेईमानों ने लिखे होंगे, जो संन्यास के खिलाफ हैं। तो शास्त्र उन्होंने लिखें होंगे, जो संसार के पक्ष में हैं। क्योंकि सौ में निन्यानबे मौके पर तो पचहत्तर साल के बाद तुम बचोगे ही नहीं। संन्यास कभी होगा ही नहीं; मौत ही होगी। और इस दुनिया में जहां जवान को मौत आ जाती हो, वहां संन्यास को पचहत्तर साल तक कैसे टाला जा सकता है?

इस दुनिया में जहां बच्चे भी मर जाते हों, इस दुनिया में जहां जन्म के बाद बस, एक ही बात निश्चित है मृत्यु, वहां संन्यास को एक क्षण भी कैसे टाला जा सकता है? इस दुनिया में जो मौत से घिरी है जिस दिन तुम्हें मौत दिख जाएगी, जिस दिन इससे पहचान हो जाएगी, जिस दिन तुम देख लोगेः सब राख ही राख है, उसी दिन संन्यास घटेगा। फिर क्षणभर भी रुकना संभव नहीं। फिर स्थगित नहीं किया जा सकता।


उन्नीस वर्ष की उम्र में चरणदास चले गए जंगलों में रोते, चीखते, पुकारते। सब कुछ दांव पर लगा दिया। और एक अपूर्व घटना घटती है। जब तुम परमात्मा को खोजने निकलते हो, तब गुरु मिलता है। निकलते तुम परमात्मा को खोजने, मिलता गुरु है। क्योंकि परमात्मा का सीधा साक्षात नहीं हो सकता। तुम्हारे बीच और परमात्मा के बीच भूमिका का बड़ा अंतर है। गुरु कहां तुम, कहां परमात्मा? कहां तुम बाहर-बाहर, कहां परमात्मा भीतर-भीतर इन दोनों के बीच कोई सेतु नहीं, कोई संबंध नहीं।
जो भी परमात्मा को खोजने गया है, उसे गुरु मिला है। वह परमात्मा तुम्हारे प्रति सदय हुआ, तुम्हारे भाग्य खुले इसकी खबर है, इसकी सूचना है। 


मांगो परमात्मा को मिलता गुरू है। और गुरु मिल जाए, तो समझो कि तुम्हारी प्रार्थना सुनी गई; पहुंची। अब तुम अकेले नहीं हो। सेतु फैला; दोनों किनारे जुड़े।


तुम इस किनारे हो, परमात्मा उस किनारे है; गुरु सेतु है जो दोनों किनारों को जोड़ देता है। गुरु कुछ तुम जैसा, कुछ परमात्मा जैसा। एक हाथ तुम्हारे हाथ में, एक हाथ परमात्मा के हाथ में। अब इस सहारे तुम जा सकोगे। अब यह जो झूलता सा पुल है, यह जो लक्मण झूला है इससे तुम जा सकोगे।

 
दूसरा किनारा तो शायद अभी दिखाई भी नहीं पड़ता, दूसरा किनारा बहुत दूर है और दूसरे किनारे को देखनेवाली आँखे भी अभी तुम्हारी जन्मी नहीं। तुम्हारी आँखे बहुत धुंघली हैं इस संसार की धुल से।
 
 
यह जो राख ही राख है, यह राख सब तरफ उड़ रही है; इसने तुम्हारी आँखों को भी धूमिल किया है और तुम्हारा दर्पण भी राख से दब गया है। और जन्मों-जन्मों से राख पड़ रही है। तुम भूल ही गए कि तुम्हारे भीतर कहीं दर्पण भी है। ऐसी अवस्था में तुम पुकारोगे परमात्मा को, मिलेगा गुरु। यह थोड़ा समझना।


वास्तविक खोजी परमात्मा को खोजने जाता है और गुरु के चरण मिलते हैं। अगर गुरु के चरण मिल जायें, तो समझ लेनाः तुम्हारी अरजी स्वीकार हो गई; तुम्हारी खबर पहुंच गई। उस किनारे से जुड़ा हुआ कोई मिल गया।


नहीं सांझ नहीं भोर 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts