आज की संध्या मैं आपसे यह कहना चाहूँगा कि जो व्यक्ति सत्य की खोज करना चाहता हो- और ऐसा कोई भी व्यक्ति खोजना मुश्किल है जो किसी न किसी रूप में सत्य की खोज में न लगा हो- उसे इन सारे शास्त्रों को, इन सारे संप्रदायों को, इन सारे विचार के पंथो को छोड़ देना होगा। इन्हें छोड़कर ही कोई सत्य के आकाश में गति कर सकता है। जो इनसे दबा है, इनके भार से दबा है, वह पर्वत पर नहीं चढ़ सकेगा। वह इतना भारी है कि उसका ऊपर उठना असंभव है।
सत्य को पाने के लिए निर्भार होना अत्यंत जरूरी है। जो लोग भारग्रस्त हैं, वे सत्य की ऊंचाइयों पर नहीं उड़ सकेंगे। उनके पंख टूट जायेंगे और नीचे गिर जायेंगे। यदि हम उत्सुक हैं और चाहते हैं कि सत्य का कोई अनुभव हो तो मैं आपसे कहूं कि जो व्यक्ति सत्य के अनुभव को उपलब्ध नही होगा, उसके जीवन में न तो संगीत होता है, न उसके जीवन में शांति होती है, न उसके जीवन में कोई आंनद होता है।
ये इतने लोग दिखाई पड़ते हैं-अभी रास्ते से मैं आया और भी हजारों रास्तों से निकलना हुआ है लाखों लोगों के चेहरे दिखाई पड़ते हैं, पर कोई चेहरा ऐसा दिखाई नहीं पड़ता जिसके भीतर संगीत हो। कोई आँख ऐसी दिखाई नहीं पड़ती कि जिसके भीतर कोई शांति हो। कोई भाव ऐसा प्रदर्शित नहीं होता कि भीतर आलोक का और प्रकाश का अनुभव हुआ हो।
हम जीते हैं, लेकिन इस जीवन में कोई आनंद, कोई शांति और कोई संगीत अनुभव नहीं होता। सारी दुनिया एक तरह की विसंगति से भर गयी है, सारी दुनिया के लोग ऐसी पीड़ा और संताप से भर गये हैं कि उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा है-जो ज्यादा विचारशील हैं, उन्हें दिखाई पड़ता है-कि जीवन का तो कोई अर्थ नहीं है। इससे तो मर जाना बेहतर है। और बहुत-से लोगों ने पिछले पचास वर्षों में, बहुत से विचारशील लोगो ने आत्महत्याएं की हैं। वे लोग नासमझ नहीं थे, जिन्होंने अपने को समाप्त किया है।
आज जीवन की यह जो स्थिति है, आज जीवन की यह जो परिणति है, आज जीवन का जो दुख और पीड़ा है, इसे देखकर, कोई भी अपने को समाप्त कर लेना चहेगा। ऐसी स्थिति में, केवल नासमझ ही जी सकते हैं। इस पीड़ा और तनाव को, केवल अज्ञानी ही झेल सकते हैं। जिसे थोड़ा भी बोध हेगा, वह अपने को समाप्त कर लेना चाहेगा। इसका तो अर्थ यह हुआ कि जिनको बोध होगा, वे आत्महत्या कर लेंगे? लेकिन महावीर ने बुद्ध ने आत्महत्या नही की, और क्राइस्ट ने आत्महत्या नहीं की, कन्फ्यूशियस और लाओत्से ने आत्महत्या नहीं की। दुनिया में ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने आत्महत्या के अतिरिक्त एक और मार्ग सोचा और जाना।
मनुष्य के सामने दो ही विकल्प हैं-या तो आत्महत्या है या आत्मसाधना है। जो व्यक्ति इन दोनों में से कोई विकल्प नहीं चुनता, उसे जानना चाहिए कि वह एक व्यर्थ के बोझ को ढो रहा है। वह जीवन के अनुभव नहीं कर पायेगा। वह करीब-करीब मृत हे, उसे जीवित भी नहीं कहा जा सकता।
आनंद गंगा
ओशो
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