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Friday, November 8, 2019

आजकल की दुनिया खराब हो गई है। इस खराब दुनिया को ठीक रास्ते पर कैसे लाया जाए?




इस प्रश्न में दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। एक तो यह कहना कि आजकल की दुनिया खराब हो गई है, इस बुनियादी भ्रम पर खड़ा हुआ है कि पहले की दुनिया अच्छी थी। यह बात इतनी बुनियादी रूप से गलत है जिसका कोई हिसाब नहीं। पहले की दुनिया भी आज से अच्छी नहीं थी। आज का आदमी खराब हो गया है, इससे ऐसा ख्याल पैदा होता है कि पहले का आदमी बहुत अच्छा था। शायद आपको पता नहीं कि इस तरह के ख्याल के पैदा हो जाने का कारण क्या है।


जमीन पर जो पुरानी से पुरानी किताबें उपलब्ध हैं, सबसे पुरानी किताब चीन में उपलब्ध है, जो कोई छह हजार वर्ष पुरानी है। उस पुरानी किताब में भी यह लिखा हुआ है कि आज की दुनिया खराब हो गई है, पहले के लोग बहुत अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? आज तक एक भी ऐसी किताब नहीं मिली है, जिसने यह कहा हो--अभी के लोग अच्छे हैं, जो लोग मौजूद हैं, ये अच्छे हैं। अब तक मनुष्य-जाति के पास ऐसा एक भी उल्लेख नहीं, जो यह कहता हो--अभी के लोग अच्छे हैं। पहले के लोग अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? बुद्ध और महावीर यह कहते हैं कि जमाना खराब हो गया, लोग बुरे हैं, पहले के लोग अच्छे थे। क्राइस्ट यह कहते हैं कि लोग बुरे हैं, पहले के लोग अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? और अगर अच्छे लोग जमीन पर थे, तो अच्छे लोगों से बुरे लोग पैदा कैसे हो गए? वह अच्छी संस्कृति से बुरी संस्कृति पैदा कैसे हो गई? उस अच्छे से विकार कैसे पैदा हो गया?

नहीं, सच्चाई कुछ और है। सच्चाई बिल्कुल उलटी है। अगर पहले के लोग अच्छे थे तो युद्ध कौन करता था? हिंसा कौन करता था? पुरानी से पुरानी युद्ध की कथा हमारी महाभारत की है, वे लोग अच्छे लोग थे? अपनी पत्नियों को दांव पर लगाने वाले लोग अच्छे थे? आज एक साधारण आदमी भी अपनी पत्नी को दांव पर लगाने में दो दफा विचार करेगा, सोचेगा--यह उचित है? लेकिन उस समय, जिसको हम कहें कि जो धर्म का बहुत विचारशील आदमी था, वह भी विचार नहीं कर रहा है पत्नी को दांव पर लगाते वक्त। जुआ खेलने में कोई संकोच नहीं हो रहा है उसे। अपने ही भाई की पत्नियों को नंगा करने में किसी को कोई संकोच नहीं हो रहा है बीच सभा में। और वहां जो लोग बैठे हैं, वे बड़े विचारशील हैं, धर्म के ज्ञाता हैं, वे भी बैठे देख रहे हैं। ये लोग अच्छे थे? तो फिर महाभारत क्यों हो गया? इतना संघर्ष, इतना रक्तपात क्यों हो गया, अच्छे लोग थे तो?

अच्छे लोग एक मिथ, एक कल्पना और कहानी है। नहीं तो बुद्ध ने किन लोगों को समझाया कि चोरी मत करो? महावीर ने किनको समझाया कि हिंसा मत करो? अगर लोग अहिंसक थे, तो महावीर पागल थे, ढाई हजार साल पहले किसको समझा रहे थे कि चोरी मत करो, हिंसा मत करो, दूसरे की स्त्री पर बुरी नजर मत रखो? लोग रखते होंगे, तभी तो समझा रहे थे, नहीं तो समझाएंगे कैसे? यह ब्रह्मचर्य का उपदेश किसको दे रहे थे? अगर सारे लोग ब्रह्मचर्य को मानते थे, तो ब्रह्मचर्य का उपदेश किसके लिए था? और अगर सारे लोग ईमानदार थे, तो ईमानदारी की शिक्षाएं हमारे ग्रंथों में क्यों लिखी हुई हैं? किसके लिए लिखी हुई हैं? लोग बेईमान रहे होंगे, तब तो ईमानदारी की शिक्षा की बात लिखी है ग्रंथों में, नहीं तो कौन लिखता? जरूरत रही होगी जिंदगी को कि ईमानदारी कोई सिखाए। लोग बेईमान रहे होंगे, लोग हत्यारे रहे होंगे, लोग चोर रहे होंगे, तब तो अचौर्य समझाया जा रहा है, अहिंसा समझाई जा रही है। और लोग एक-दूसरे को घृणा करते रहे होंगे, तब तो प्रेम के इतने उपदेश दिए गए हैं, नहीं तो किसको दिए जाते?

लेकिन भ्रम कुछ और बातों से पैदा हो जाता है। हर युग में अच्छे लोग होते हैं। उन थोड़े से अच्छे लोगों की कथा बच रहती है, बाकी लोगों के जीवन का कोई हिसाब नहीं बचता। हमारे युग में गांधी थे। दो हजार साल बाद, हम जो लोग बैठे हैं, हमारी कोई कथा बच रहेगी? लेकिन गांधी की बच रहेगी। और दो हजार साल बाद लोग गांधी को कहेंगे, इतना अच्छा आदमी था, उस युग के लोग कितने अच्छे रहे होंगे! गांधी से वे सारे युग को तौल लेंगे, जो कि बिल्कुल झूठी तौल होगी। गांधी अपवाद था, नियम नहीं था। और दो हजार साल बाद, जब हम सबकी कोई कथा शेष नहीं रह जाएगी और गांधी की कथा शेष होगी, तो गांधी के आधार पर हम सबके बाबत जो निर्णय लिया जाएगा, वह बिल्कुल झूठा होगा। हम तो गांधी के हत्यारे हैं। लेकिन दो हजार साल बाद लोग कहेंगेः गांधी इतना अच्छा आदमी था, उसके समाज के लोग कितने अच्छे नहीं रहे होंगे!

तो राम और कृष्ण, बुद्ध और महावीर, दो-चार नामों के आधार पर हम उस जमाने के लोगों के बाबत सोचते हैं। वह सोचना बिल्कुल फैलेसी है, बिल्कुल झूठ है। ये आदमी अपवाद थे। ये नियम नहीं थे। जहां तक सामान्य आदमी का संबंध है, आदमी विकसित हुआ है, उसका पतन नहीं हुआ है, उसका कोई ह्नास नहीं हुआ है। आदमी, सामान्य आदमी विकसित हुआ है। उसके जीवन में पीछे के आदमी से गति हुई है, उसके विचार में गति हुई है, उसकी चेतना में विकास हुआ है।

अपने माहीं टटोल 

ओशो

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