कोई भी विधि गुणात्मक रूप से भिन्न हो जाती है जब तुम्हें उसमें
दीक्षित किया जाता है। मैं विधियों की चर्चा कर रहा हूं तुम उन्हें प्रयोग में ला सकते
हो। तुम उसकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि को और उसके ढंग—ढांचे को जान लो, तो तुम
उसे प्रयोग में ला सकते हो। लेकिन दीक्षा से उसकी गुणवत्ता बदल जाएगी। अगर मै
तुम्हें किसी विशेष विधि में दीक्षित करूं तो बात और हो जाएगी।
दीक्षा के संबंध में बहुत सी बातें समझने जैसी हैं। जब मैं तुमसे
किसी विधि की चर्चा और व्याख्या करता हूं तो तुम अपने ढंग से उसे प्रयोग में ला
सकते हो। विधि तो तुम्हें समझा दी गई है,
लेकिन वह तुम्हारे अनुकूल है या नहीं, वह तुम पर
काम करेगी या नहीं, या तुम किस ढंग के आदमी हो, ये बातें नहीं बताई गईं। वह संभव भी नहीं है।
दीक्षा में तुम विधि से अधिक महत्वपूर्ण होते हो। जब गुरु तुम्हें
दीक्षित करता है तो तुम्हारा निरीक्षण भी करता है। वह खोजता है कि तुम किस ढंग के
आदमी हो, कि
तुमने पिछले जन्मों में क्या साधना की है, कि तुम ठीक इस
क्षण कहां हो, कि इस क्षण तुम किस केंद्र पर जीते हो,
और तब वह विधि के संबंध में निर्णय लेता है, तब
वह तुम्हें तुम्हारी विधि देता है। यह व्यैक्तिक मामला है। उसमें विधि नहीं तुम महत्वपूर्ण
हो। उसमें तुम्हारा अध्ययन, निरीक्षण और विश्लेषण किया जाता
है। तुम्हारे पूर्वजन्म, तुम्हारी चेतना, तुम्हारा मन, तुम्हारा शरीर, सबको काट—पीटकर देखा जाता है। तुम अभी कहां हो,
इस बात की पूरी छानबीन की जाती है। क्योंकि यात्रा उसी बिंदु से
शुरू होती है जिस बिंदु पर तुम अभी हो।
इसलिए ऐसा नहीं है कि किसी भी विधि से काम चल जाएगा। इतनी छानबीन
के बाद गुरु तुम्हारे लिए कोई खास विधि चुनता है। और अगर उसे लगे कि तुम्हारे लिए
किसी विधि में कोई हेर—फेर की जरूरत है तो गुरु उतना हेर—फेर करके विधि को तुम्हारे
उपयुक्त बनाता है। और तब वह दीक्षा देता है। तब वह विधि देता है।
यही कारण है कि इस बात पर जोर दिया जाता है कि जब तुम किसी विधि
में दीक्षित किए जाओ तो तुम उसके बारे में किसी को कुछ मत बताओ। इसे गुप्त इसलिए रखना
है कि यह व्यैक्तिक है। किसी दूसरे को बताने से न सिर्फ उसका लाभ खो सकता है, बल्कि वह हानिकर भी सिद्ध हो
सकती है।
इसलिए गोपनीयता जरूरी है। जब तक तुम उपलब्ध न हो जाओ और तुम्हारे
गुरु न कहें कि तुम अब दूसरों को दीक्षित कर सकते हो, तब तक इसके संबंध में अपने पति,
अपनी पत्नी, या मित्र से भी एक शब्द नहीं कहना
है। यह अत्यंत गोपनीय है, क्योंकि यह खतरनाक है, यह बहुत शक्तिशाली है। यह केवल तुम्हारे लिए चुनी गई विधि है, इसलिए तुम पर ही काम करेगी।
सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति इतना अनूठा है कि उसके लिए एक अलग
विधि की जरूरत पड़ेगी। और थोड़े ही हेर—फेर के साथ कोई विधि उसके लिए उपयुक्त हो सकती है। यह जो चर्चा मैं इन एक सौ
बारह विधियों के संबंध में कर रहा हूं वे सामान्य विधियां हैं, सामान्यीकृत विधियां हैं। वे विधियां हैं जिन पर प्रयोग हुए हैं। यह उनका सामान्य
रूप है ताकि तुम उनसे परिचित हो सको, ताकि तुम प्रयोग कर
सको। यदि उनमें से कोई तुम्हें जंच जाए, तो तुम उसे जारी रख
सकते हो।
लेकिन यह विधि में दीक्षा नहीं है। दीक्षा तो गुरु और शिष्य के बीच
बिलकुल व्यैक्तिक बात है। दीक्षा एक गुह्य संप्रेषण है। इतना ही नहीं, दीक्षा में और अनेक बातें
निहित हैं। तब गुरु को विधि देने के लिए एक सम्यक क्षण का चुनाव करना पड़ता है,
ताकि विधि तुम्हारे अचेतन की गहराई में उतर सके।
जब मैं इनकी चर्चा कर रहा हूं तो तुम्हारा चेतन मन सुन रहा है। तुम
उन्हें भूल जाओगे। जब चर्चा समाप्तं होगी,
तब इन एक सौ बारह विधियों के तुम नाम भी नहीं बता सकोगे। अनेक को
तुम पूरी तरह भूल जाओगे। और जो थोड़ी सी विधियां याद रहेंगी वे एक—दूसरे में इतनी उलझी होंगी कि तुम्हें कहना मुश्किल होगा कि कौन क्या है।
इसलिए गुरु को ठीक क्षण खोजना पड़ता है जब कि तुम्हारा अचेतन ग्राहक
हो, तभी वह विधि
बताता है। ऐसा करने से विधि अचेतन की गहराई में उतर जाती है। इसलिए अनेक बार नींद
में दीक्षा दी जाती जब तुम्हारा चेतन मन बिलकुल सोया होता है और अचेतन मन खुला
होता है।
यही कारण है कि दीक्षा में समर्पण बहुत जरूरी है। जब तक तुम समर्पित
नहीं होते तब तक दीक्षा नहीं दी जा सकती। इसका कारण कि समर्पण के बिना चेतन मन सजग
बना रहता है। समर्पण के बाद चेतन मन को छुट्टी दे दी जाती है और अचेतन मन सीधे—सीधे गुरु के संपर्क में
होता है। इसलिए दीक्षा का क्षण चुनना बहुत महत्वपूर्ण है।
इतना ही नहीं,
दीक्षा के लिए तैयारी भी उतनी ही जरूरी है। तुम्हें तैयार करने में महीनों
लग सकते हैं। उसके लिए सम्यक भोजन चाहिए, सम्यक नींद चाहिए।
और सब चीजों को एक शांत बिंदु पर इकट्ठा होना चाहिए। तभी तुम्हें दीक्षा दी जा
सकती है। दीक्षा एक लंबी प्रक्रिया है, व्यैक्तिक प्रक्रिया
है। जब तक कोई पूरी तरह समर्पित होने को तैयार नहीं है तब तक दीक्षा संभव नहीं है।
तो मैं यहां तुम्हें इन विधियों में दीक्षित नहीं कर रहा हूं मैं
सिर्फ तुम्हें उनसे परिचित करा रहा हूं। अगर किसी को लगे कि कोई विधि उसको गहन रूप
से छूती है और उसे उस विधि में दीक्षित होना चाहिए तो ही मैं उसे दीक्षित कर सकता
हूं। लेकिन तब यह एक लंबी प्रक्रिया होगी। तब तुम्हारी व्यैक्तिकता को पूरी तरह
जानना होगा। तब तुम्हें पूरी तरह नग्न हो जाना पड़ेगा, ताकि कुछ भी छिपा न रहे। और
तब चीजें आसान हो जाती हैं। क्योंकि जब किसी सम्यक व्यक्ति को किसी सम्यक क्षण में
कोई सम्यक विधि दी जाती है तो वह विधि तुरंत कारगर होती है।
तंत्र सूत्र
ओशो
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