'मैं कौन हूं यह महामंत्र है। और जल्दी उत्तर मत देना; क्योंकि तुम्हारे पास उत्तर तैयार है। तो 'मैं कौन
हूं—तुम भीतर से कहते हो, मैं आत्मा
हूं। यह उत्तर काम न आयेगा। यह तो तुम्हें पता ही है। इससे तुम्हारी जिंदगी बदली
नहीं। ज्ञान आग है; वह तुम्हें जला देगा। —जब तुम कहते हो— 'मैं कौन हूं,
और भीतर से आवाज आती है, वह भीतर की आवाज नहीं
है। वह तुम्हारा सिर बोल रहा है; सिर में छिपे शाख बोल रहे
हैं; स्मृति बोल रही है। जब तुम कहते हो कि मैं आत्मा हूं तो
यह दो कौड़ी का है; इसका कोई मूल्य नहीं है। क्योंकि इससे तुम
बदले नहीं; यह आग नहीं है, यह राख है।
इसमें कभी अंगारा रहा होगा—किसी ऋषि को इसमें अंगारा रहा
होगा—तुम्हारे लिए तो यह सिर्फ राख है। जिसके लिये अंगारा
रहा, वह तो खो गया इस जगत से, अब तुम
सिर्फ राख को ढो रहे हो।
'मैं कौन हूं, —इसको तुम पूछते जाना और उधार उत्तर मत
देना। जब भी उधार उत्तर आये, कहना कि यह मेरा उत्तर नहीं,
मैंने जाना नहीं, मेरा कैसे हो सकता है! जो
मैं जानता हूं वही केवल मेरा हो सकता है। जो तुम उपलब्ध करोगे अपने श्रम से,
वही केवल तुम्हारी संपदा है। ज्ञान में चोरी नहीं चल सकती और न
ज्ञान में भिखमंगापन चलता है। न तुम भीख मांग सकते हो, न तुम
चोरी कर सकते हो। यहां डकैती नहीं चल सकती। हां तो तुम्हें स्व—श्रम से ही स्वयं को निर्मित करना होगा।
दूसरा सूत्र है स्व में स्थिति शक्ति है। जैसे ही विस्मय पैदा
हो, भीतर की तरफ
चलना, डूबना और स्व में स्थित हो जाने की चेष्टा करना।
क्योंकि जब तुम पूछते हो— 'मैं कौन हूं,
तो कब तुम्हें उत्तर मिलेगा। अगर इसका उत्तर तुम्हें चाहिए तो भीतर
स्व में ठहरना पड़ेगा। उसको ही हमने स्वास्थ्य कहा है—स्वयं
में ठहर जाना। और, जब कोई व्यक्ति स्वयं में ठहर जायेगा,
तभी तो देख पाएगा; दौड़ते हुए तुम कैसे देख
पाओगे?
तुम्हारी हालत ऐसी है कि तुम एक तेज रफ्तार की कार में जा रहे
हो। एक फूल तुम्हें खिड़की से दिखायी पड़ता है। तुम पूछ भी नहीं पाते कि यह क्या है
कि तुम आगे निकल गये। तुम्हारी रफ्तार तेज है और वासना से तेज रफ्तार दुनिया में
किसी और यान की नहीं। चांद पर पहुंचना हो,
राकेट भी वक्त लेता है; तुम्हारी वासना को
इतना भी वक्त नहीं लगता, इसी क्षण तुम पहुंच जाते हो। वासना
तेज से तेज गति है। और, जो वासना से भरा है, उसका अर्थ है कि वह गहरा हुआ नहीं है; भाग रहा है,
दौड़ रहा है। और, तुम इतनी दौड़ में हो कि तुम
पूछो भी कि 'मैं कौन हूं,, तो उत्तर
कैसे आयेगा?
यह दौड़ छोड़नी होगी। स्व में स्थित होना होगा। थोड़ी देर के लिए
सारी वासना, सारी
दौड़, सारी यात्रा बंद कर देनी होगी। लेकिन, एक वासना समाप्त नहीं हो पाती कि तुम पच्चीस को जन्म दे लेते हो; एक यात्रा पूरी नहीं हो पाती कि पच्चीस नये रास्ते खुल जाते हैं और तुम
फिर दौड़ने लगते हो। तुम्हें बैठना आता ही नहीं। तुम रुके ही नहीं हो जन्मों से।
मैंने सुना है कि एक सम्राट ने एक बहुत बुद्धिमान आदमी को वजीर
रखा। लेकिन वजीर बेईमान था और उसने जल्दी ही साम्राज्य के खजाने से लाखों—करोड़ों रुपये उड़ा दिये। जिस
दिन सम्राट को पता चला, उसने वजीर को बुलाया और उसने कहा कि
मुझे कहना नहीं है। जो तुमने किया है, वह ठीक नहीं और ज्यादा
मैं कुछ कहूंगा नहीं। तुमने भरोसे को तोड़ा है। बस, इतना ही
कहता हूं कि अब तुम मुंह मुझे मत दिखाओ। इस राज्य को छोड्कर चले जाओ। और, व्यर्थ की बातचीत इसमें न फैले, इसलिए किसी को भी इस
संबंध में कुछ न कहूंगा। तुम्हें भी कोई किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं।
वजीर ने कहा,
'सुनें; कहेंगे, चला
जाऊंगा। यह पकी है बात कि मैंने करोड़ों रुपये चुराये हैं। लेकिन, फिर भी एक सलाह वजीर होने के नाते मैं आपको देता हूं। और वह यह कि अब मेरे
पास सब कुछ है। बड़ा महल है, पहाड़ पर बंगले हैं, समुद्र के किनारे बंगले है—सब कुछ मेरे पास है।
पीढियो—दर—पीढियो तक अब मुझे कुछ कमाने
की जरूरत नहीं। आप मुझे अलग करके दूसरे आदमी को वजीर रखेंगे, उसको फिर अ, ब, स से शुरू करना
पड़ेगा। सम्राट बुद्धिमान था, उसकी बात समझ में आ गयी।
ऐसा क्षण तुम्हारे जीवन में कभी नहीं आता जब तुम कह सको कि अब
सब मेरे पास है। जिस दिन यह क्षण आ जायेगा,
उसी दिन दौड़ बंद होगी। अन्यथा तुम हर घड़ी अ, ब,
स से शुरू कर रहे हो। हर घड़ी नयी वासना पकड़ लेती है, नया चोर आ जाता है, नया लुटेरा खजाना तोड्ने लगता
है। और एकाध लुटेरा हो तो ऐसा भी नहीं; बहुत वासनाएं हैं।
तुम एक साथ बहुत दिशाओं में दौड़ रहे हो। तुम एक साथ बहुत—सी
चीजों को पाने की कोशिश कर रहे हो। तुमने कभी बैठकर यह भी नहीं सोचा कि उसमें से कई
चीजें तो विपरीत हैं, उनको तुम पा ही नहीं सकते; क्योंकि एक तुम पाओगे तो दूसरी खोयेगी दूसरी को पाओगे तो पहली खो जायेगी।
तुम दुर्बल हो,
दीन हो, दुखी हो—इसका
कारण यह नहीं कि तुम्हारे पास रुपये कम है, मकान नहीं है,
धन नहीं है, धन—दौलत
नहीं है। तुम दीन हो, दुखी हो; क्योंकि,
तुम स्वयं में नहीं हो। स्वयं में होना ऊर्जा का स्रोत है।वहां
ठहरते ही व्यक्ति महाऊर्जा से भर जाता है।
शिव सूत्र
ओशो
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