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Monday, November 11, 2019

किनकी करुणा अधिक है, बुद्ध की या क्राइस्ट की?


भगवान बुद्ध को उस विधवा पर भी दया नहीं आयी जिसका इकलौता नन्हा मृत्यु ने छीन लिया था। और उन्होंने मृत्युशथ्या पर पड़े स्वर्णकार को मृत्यु की तैयारी करने का उपदेश दिया।

दूसरी तरफ जीसस क्राइस्ट ने अंधे को आँख, रोगी को आरोग्य और मृत को जीवनदान किया। फिर भी आश्चर्य है कि बुद्ध महाकारुणिक कहलाते हैं। किनकी करुणा अधिक है, बुद्ध की या क्राइस्ट की?



जिस छोटी सी कथा की ओर संकेत है, वह तुम्हें स्मरण दिला देनी उचित है। एक स्त्री का इकलौता बेटा मर गया। वही उसका सहारा था। उस पर ही उसने सारा जीवन निछावर किया था। उसके दुख का कोई पारावर न था। वह छाती पीटती और लोटती और बाल नोचती। मोहल्लेपड़ोस के लोग समझासमझाकर हार गए, लेकिन वह सुनती ही न। वह अपने बेटे की लाश भी देने को राजी नहीं। वह उसको छाती से लगाए है। उसे आशा है कि कोई चमत्कार हो जाएगा। उसे आशा है कि उसकी पीड़ा, उसका दर्द, उसके आंसू भगवान समझेगा। उसकी पुकार कहीं तो सुनायी पड़ेगी। कहीं तो न्याय होगा। उसने सुन रखा है कि उसके दरबार में देर है, अंधेर नहीं! तो वह छोड़ने को राजी नहीं है। वह उस बेटे की लाश को लेकर घूमती है। वह एक क्षण को छोड़ती नहीं। रात सोती नहीं कि कोई उसकी लाश को जला न दे। तब तो लोगों ने समझा कि वह पागल हो गयी।


कोई उपाय न था। गांव में बुद्ध का आगमन हुआ था, तो लोगों ने कहा, ऐसा कर, अगर तू सोचती है कि चमत्कार हो सकता है तो इस बेटे को लेकर बुद्ध के पास चली जा। इससे बड़ा और क्या सौभाग्य होगा! जाकर बुद्ध के चरणों में इस बेटे को रख दे। अगर हो सकता है जीवन पुन: तो हो जाएगा। गांव के लोग तो जानते थे यह होगा नहीं, यह कभी हुआ नहीं है, लेकिन शायद बुद्ध के पास जाने से इसे कुछ समझ आ जाए।


वह गयी, उसने बुद्ध के चरणों में लाश रख दी। और उसने कहा, करुणा करें; आप तो महाकारुणिक हैं। मेरे बेटे को जिला दें। बुद्ध ने कहा, ठीक, तू एक काम कर। गांव में चली जा और ऐसे घर से सरसों के बीज मांग ला, जिस घर में कोई कभी मरा न हो। वैसे बीज मिल जाएं तो यह बेटा अभी जी जाएगा।

उस स्त्री के तो आँसू सब तिरोहित हो गए, वह तो नाच उठी। उसने कहा, यह मै अभी लाती हूं, यह कोई बड़ी बात नहीं है। सरसों की ही तो खेती होती है हमारे गाँव में, घरघर सरसों है, अभी लाती हूं। उसे होश भी नहीं है कि ये बीज मिल न सकेंगे। उसे शर्त की बात खयाल में नहीं हैकि बुद्ध ने कहा, उस घर से जिसमें कोई कभी मरा न हो। वह गयी एक घर, दो घर, तीन घर, गांव के एकएक द्वार पर उसने दस्तक दी, गरीब से गरीब और राजा तक गयी। लेकिन सभी ने कहा, पागल, ऐसा घर कहं।. मिलेगा जहां कोई कभी न मरा हो! ऐसा घर तो हो ही नहीं सकता! किसी का पिता मरा है, किसी की माँ मरी है, किसी का बेटा मरा है, किसी का भाई मरा है, ऐसा घर तो हो ही नहीं सकता! जितने लोग घर में रह रहे हैं, इससे अनंतगुना लोग घर में मर चुके हैं। बाप के बाप मरे, उनके बाप मरे, कितने लोग गर चुके हैं! ऐसा तो कोई घर हो नहीं सकता जहां कोई मरा न हो। 


सांझ होतेहोते उसे बोध आया, कि मृत्यु अनिवार्य है। वह लौटी। नाचती गयी थी खुशी में कि ले आएगी सरसों के बीज, खाली हाथ लौटी, लेकिन नाचती ही लौटी। अब बेटे के जगने की तो कोई उम्मीद न थी, अब कौन सी खुशी थी? अब वह इस खुशी में लौटी कि उसके हाथ एक सत्य लग गया है कि मृत्यु अनिवार्य है। रोना व्यर्थ है। और जो थोड़े से जीवन के क्षण बचे हैं, इनका ऐसा उपयोग कर लेना जरूरी है कि आदमी अमृत को उपलब्ध हो जाए। इस देह में तो मृत्यु घटेगी, उसको खोज लेना जरूरी है जहां मृत्यु न घटती हो।


उसने बुद्ध के चरणों में आकर सिर रख दिया। बुद्ध ने कहा, ले आयी सरसों के बीज? वह हंसने लगी, उसने कहा, आपने भी खूब मजाक किया, लेकिन बात काम कर गयी। सरसों के बीज तो नहीं मिलेऔर लाश को हटा दिया उसने बेटे की वहां से और लोगों से कहा, ले जाओ और दफना दोंऔर बुद्ध से कहा, मुझे दीक्षा दें। मुझे संन्यस्त करें। आज हूँ कल का पता नहीं, कल हो सकता है मैं भी मर जाऊं। जब सभी मर जाते हैं, तो मैं भी ज्यादा देर टिकने वाली नहीं हूं, इसलिए अब एक क्षण भी खोना उचित नहीं है। कौन बेटा है! कौन मां है! अब मुझे उसकी तलाश करनी है जो शाश्वत है, चिरंतन है। मुझे दीक्षा दें। देर न करें।


वह दीक्षित हुई। वह बुद्ध के बडे भिक्षुओं में एक भिक्षुणी सिद्ध हुई। जो स्त्रियां बुद्ध के सानिध्य में परम सत्य को उपलब्ध हुईं, उनमें एक स्त्री वह भी थी।


तुमने पूछा है कि 'बुद्ध को महाकारुणिक कहा जाता है, और क्राइस्ट तो मुर्दों को जिला देते, अंधों को आखें देते, बीमार को स्वस्थ कर देते, कोढ़ी को चंगा कर देते, बहरा सुनने लगता, लंगड़ा चलने लगता, रता बोलने लगता, तो जीसस करुणावान हैं या बुद्ध?'


जीसस करुणावान हैं, बुद्ध महाकरुणावान। जीसस की करुणा बहुत दूर तक काम नहीं आएगी, इसलिए करुणावान। बुद्ध महाकरुणावान, उनकी करुणा अंत तक काम आएगी, अनंत तक काम आएगी।


अगर किसी मुर्दे को भी जिला दिया तो भी वह मरेगा। जीसस ने लजारस को जगा दिया थामर गया था लजारसफिर अब लजारस कहां है? फिर मर गया। एक ही बार मरा था, अब दुबारा मरा। तो करुणा का कुल परिणाम यह हुआ कि लजारस को दुबारा मरना पड़ा।


जीसस ने लोगों की आखें ठीक कर दी थीं, कहां हैं वे लोग? आखें भी गयीं, वे भी गए। गाड़ी को चला दिया था, कहां हैं वे लोग? कब्रों में सड़ गए होंगे। जीसस करुणावान हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन जीसस की करुणा कितने दूर तक काम आती है! जीसस ने जो किया है, वह तो अब डाक्टर करने लगा। अगर अभी मुर्दे को नहीं जिला पा रहा है तो वह भी इस सदी के पूरे होतेहोते जिला लेगा, वह कुछ अड़चन की बात नहीं है। तो जीसस चिकित्सक हैं ज्यादा सै ज्यादा, बुद्ध महाचिकित्सक, महाकरुणावान।


इसलिए हमने बुद्ध को करुणावान नहीं कहा है, महाकरुणावान कहा है। बुद्ध कुछ ऐसा जीवन दे देते हैं जो फिर कभी छुड़ाए न छूटेगा। कुछ ऐसी आँख दे देते हैं जो फिर कभी न फूटेगी। कुछ ऐसे कान दे देते हैं, कुछ ऐसे श्रवण की क्षमता दे देते हैं कि जो सुनने योग्य है, सुन लिया जाएगा। कुछ ऐसे पैर दे देते हैं जो कि अगम्य में गति हो जाती है, अज्ञात में प्रवेश हो जाता है। बुद्ध भी देते हैं, देह पर नहीं, आत्मा पर; बाहर नहीं, भीतर।


भारत ने इस बात को बहुत मूल्य कभी दिया नहीं कि अंधे को आँख मिल जाए, कि बहरे को कान मिल जाएं, इससे क्या होगा? इतने तो लोग हैं जिनके पास आँख हैआँख वालों के पास भी आँख कहां! एक और अंधे को आँख मिल गयी, इससे क्या होगा? इतने तो लोग हैं कान वाले, इन्हें कुछ भी तो सुनायी नहीं पड़ा अब तक। कौन सा संगीत सुना इन्होंने? कौन सा सत्य सुना इन्होंने? और जीसस को खुद ही तो बारबार अपने शिष्यों से कहना पड़ता हैआँखे हों तो देख लो, कान हों तो सुन लो। उनके पास आँखे भी थीं, कान भी थे, लेकिन जीसस को बारबार कहना पड़ता हैसुनो, कान खोलकर सुनोआँखों का उपयोग करो।


बुद्ध भी आँख देते हैं, महावीर भी आँख देते हैं, कृष्ण भी आँख देते हैंसूक्ष्म की आँख, अंतर्दृष्टि। ऐसी आँख जो एक बार खुल जाए तो फिर कभी बंद नहीं होती। बुद्ध भी जगाते हैं, मृत्यु से नहीं, जीवन से जगाते हैं। इसलिए महाकरुणा। मृत्यु से जगाया हुआ तो फिर मरेगा, फिर पैदा होगाजीवन से जगा देते हैं कि फिर न कोई जन्म हो और न कोई मृत्यु हो। महाजीवन में जगा देते हैं।

एस धम्मो सनंतनो 

ओशो

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