एक शराबी निकला है शराबघर से। लड़खड़ाता। और एक बदशक्ल, बहुत मोटी महिला
ने घृणा से उस शराबी की तरफ देख कर कहा कि अरे मूढ़, क्यों शराब पी पी कर
अपना जीवन नष्ट कर रहा है? वह इतनी चिल्ला कर बोली; आवाज रही होगी उसकी
बुलंद! मोटी औरत थी बदसूरत भी कि शराबी को भी एक क्षण को होश आ गया। उसने
गौर से देखा, हंसने लगा। उसने कहा, देखकर हंसते क्या हो? रोओगे, पछताओगे!
उस शराबी ने कहा कि देवी, मेरा नशा तो सुबह उतर जाएगा, मगर तू सुबह भी ऐसी
की ऐसी रहेगी। तू मुझ से बदतर हालत में है। यह जो तुझ पर चढ़ा है, यह
उतरनेवाला नहीं। यह इतना आसानी से उतरनेवाला नहीं। और तू अपनी शकल तो आईने
में देख! यद्यपि मेरी आंखें धुंधली धुंधली हो रही हैं, मुझे कुछ साफ साफ
दिखाई नहीं पड़ रहा है, मगर तू अपनी शकल तो आईने में देख! अभी मैं लड़खड़ा रहा
हूं, मगर सुबह ठीक संभलकर चलने लगूंगा। मगर तेरी दुर्गति तो सदा रहनेवाली
है।
जिसने शराब पी है, वह तो सुबह होश में आ जाएगा, जिसने राजनीति पी है, वह
शायद होश में आए ही न। उसकी सुबह शायद हो ही न। जिसने धन का नशा पीया है,
पद का नशा पीया है इसलिए तो हमने धन मद, पद मद कहा है इनको; मद, मदिरा!
जिन्होंने कहा है, ठीक शब्द खोजे हैं। ये मूर्छा लाते हैं। ये अहंकार को
फुला देते हैं।
पीछे गिरने का उपाय नहीं है। सब उपाय असफल हो जानेवाले हैं। लेकिन जितनी
देर तुम पीछे गिरने के उपाय करते हो, उतना समय गंवाते हो। उपाय तो आगे
बढ़ना है। आग से गुजरना है और आग के पार जाना है।
अहंकार से गुजरना ही होगा। अहंकार अनिवार्य प्रक्रिया है, परमात्मा से
दूर होने की, परमात्मा से छिटक जाने की, परमात्मा से भटक जाने की। उस भटकाव
में ही संताप होगा, विरह होगा; याद आएगी, तलाश शुरू होगी, प्रार्थना
जगेगी, पूजा का आविर्भाव होगा। ध्यान की अभीप्सा पैदा ही न हो अगर तुम्हें
पता न चले कि परमात्मा चूक गया है। यह तो अहंकार देगा कष्ट, छेदेगा
तुम्हारे प्राणों को, भरेगा तुम्हें न मालूम कितने रोगों से, इस सारी पीड़ा
से ही तुम जागोगे, नींद तुम्हारी टूटेगी। और तब तुम चलोगे परमात्मा के
निकट उसके निकट जिससे तुम आए हो। मूल स्रोत की तरफ लौटोगे।
अहंकार का यही प्रयोजन है।
अहंकार का प्रयोजन है ताकि तुम्हें याद आ जाए परमात्मा की। मछली को सागर
की याद आ जाए। भटके भूले को अपने घर की याद आ जाए। यह अहंकार का प्रयोजन
है।
राम दुवारे जो मरे
ओशो
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