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Friday, May 27, 2016

परमात्मा का उपहार

जीवन पर हमारा कोई दावा नहीं है। क्या तुमने कभी इस बात पर गौर किया है कि हमारे पास दावा करने जैसा कुछ है ही नहीं। यदि हम थे ही नहीं, तो न तो हमारे वहां होने का ही कुछ उपाय होता और न किसी तरह की अपील करने का कोई रास्ता होता। उसके विरुद्ध शिकायत करने का भी कोई उपाय न होता। यदि तुम दो ही नहीं, तो तुम नहीं हो। अगले ही क्षण तुम विलुप्त हो सकते हो। जीवन बहुत नाजुक है, और बिना किसी दावे का है। हमने इसे अर्जित नहीं किया है। जब हम कहते हैं कि यह एक उपहार है, तो यही इसका अर्थ है। उपहार कुछ इस तरह की चीज होता है, जिसे तुम अर्जित नहीं करते और इसीलिए तुम्हारा उस पर कोई अधिकार नहीं होता। तुम यह नहीं कह सकते कि उसे पाने का तुम्हें कोई अधिकार है। एक उपहार तो कुछ ऐसी चीज है, जो तुम्हें दी गई है।


जीवन एक उपहार है। वह तुम्हें बिना किसी कारण दिया गया है। तुम उसे अर्जित नहीं कर सकते थे क्योंकि तुम थे ही नहीं, तो तुम अर्जित करते कैसे? जीवन एक उपहार है, लेकिन हम इसे भूले चले जाते हैं। और हम उसके प्रति धन्यवाद तक प्रकट नहीं करते। हम उसके प्रति कृतज्ञ भी नहीं होते। निश्चित रूप से हम एक हजार एक शिकायतें करते हैं, जिनके बाबत हम यह सोचते हैं कि हम जीवन में उन्हें चूके जा रहे हैं, लेकिन हम कभी भी स्वयं जीवन के प्रति अहोभाव का अनुभव नहीं करते।


तुम्हें यह शिकायत हो सकती है कि तुम्हारा घर अच्छा नहीं है बरसात आ गई है और वह टपक रहा है। तुम्हें शिकायत हो सकती है कि तुम्हारा वेतन पर्याप्त नहीं है। तुम्हें शिकायत हो सकती है कि तुम्हारे पास एक सुंदर शरीर नहीं है। तुम शिकायत कर सकते हो कि तुम्हारे साथ ऐसा या वैसा क्यों नहीं हो रहा? तुम्हारी एक हजार एक शिकायतें हो सकती हैं। लेकिन क्या कभी तुमने इस बात पर ध्यान दिया है कि तुम्हारे पूरे जीवन की सभी संभावनाएं कि तुम ठीक से सास ले सकते हो, देख, सुन और समझ सकते हो, स्पर्श कर सकते हो, प्रेम कर सकते हो और प्रेम पा सकते हो, क्या यह सब कुछ बहुत बड़ा उपहार नहीं है? यह सब कुछ तुम्हें दिया गया है, क्योंकि परमात्मा के द्वारा बहुत कुछ तुम्हें दिया गया है, क्योंकि परमात्मा के पास बहुत कुछ देने को है, यह इस कारण नहीं है कि तुमने इसे अर्जित किया है।

प्रेम योग 

ओशो 


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