तो एक बुनियादी खयाल रखना जब मन शांत हो जब मन ही शांत
हो और भीतर के तल पर शांति न पहुंची हो तो शांत होते ही एक वासना पैदा हो
जाएगी कि यह शांति बनी रहे, मिट न जाए। अगर यह वासना पैदा हो तो समझना कि
यह मन का मामला है, क्योंकि मिटने का डर मन में ही होता है। शांति आ जाए और
यह डर न आए कि मिट तो नहीं जाएगी, तो समझना कि यह मन की नहीं है।
दसरी बात मन हर चीज से ऊब जाता है हर चीज से! दुख से ही नहीं, सुख से भी
ऊब जाता है। यह मन का यह दूसरा नियम है कि मन किसी भी थिर चीज से ऊब जाता
है। अगर आप दुख में हैं तो दुख से ऊबा रहता है और कहता है सुख चाहिए। पर
आपको पता नहीं है कि यह मन का नियम है कि सुख मिल जाए, तो सुख से ऊब जाता
है। और तब भीतरी दुख की मांग करने लगता है।
ऐसा मैं निरंतर, इतने लोगों पर प्रयोग चलते हैं तो देखता हू, कि उनको
अगर सुख भी ठहर जाए थोड़े दिन, तो वे बेचैन होने लगते हैं, अगर शांति भी
थोड़े दिन ठहर जाए, तो वे बेचैन होने लगते हैं, क्योंकि उससे भी ऊब पैदा
होती है।
मन हर चीज से ऊब जाता है। मन सदा नए की मांग करता रहता है। नए की मांग
से ही सब उपद्रव पैदा होता है। मन के बाहर आत्मिक तल पर नए की कोई मांग
नहीं है; पुराने की कोई ऊब नहीं है : जो है, उसमें इतनी लीनता है, कि उसके
अतिरिक्त किसी की कोई भाग नहीं है।
अध्यात्म उपनिषद
ओशो
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