मन से छूटने का उपाय यह है कि जब सुख मन दे रहा हो, तब भी साक्षी बने
रहना और उसको पकड़ना मत। जैसे आप यहां ध्यान कर रहे हैं, ध्यान में कभी
अचानक शांति का झरना फूट पड़ेगा। तो उस वक्त उसको आलिंगन मत कर लेना, खड़े
देखते रहना दूर, कि शांति घट रही है, मैं साक्षी हूं। सुख का झरना टूट
पड़ेगा, भीतर रोएं रोएं में सुख व्याप्त हो जाएगा किसी क्षण, तो उसको भी दूर
खड़े होकर ही देखते रहना, उसको पकड़ मत लेना जोर से कि ठीक आ गई मुक्ति,
उसको खड़े होकर साक्षी भाव से देखते रहना, कि मन में सुख घट रहा है,
पकडूगां नहीं।
मजे की बात यह है कि जो सुख को नहीं पकड़ता, उसके दुख समाप्त हो जाते
हैं; जो शांति को नहीं पकड़ता, उसकी अशांति सदा के लिए मिट जाती है। शांति
को पकड़ने में ही अशांति का बीजारोपण है, और सुख को पकड़ने में ही दुख का
जन्म है। पकड़ना ही मत। पकड़ का नाम मन है। क्लिगिंग, पकड़ का नाम मन है। कुछ न
पकड़ना। खुली मुट्ठी! और आप मन के पार हट जाएंगे और उसमें प्रवेश हो जाएगा,
जहां से फिर वृत्तियां दुबारा जन्म नहीं पातीं; परम लय हो जाता है। उस परम
लय को कहा है उपरति, विश्राम।
‘ऐसा स्थितप्रज्ञ यति सदा आनंद को पाता है।’
अध्यात्म उपनिषद
ओशो
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