विचार से होगा नहीं छुटकारा। आपको कुछ करना है। कुछ करना है तो विचार से
छुटकारा कैसे होगा? वह कुछ करना है, उसकी योजना विचार है। अगर आपको विचार
से छुटकारा भी करना है, तो भी छुटकारा नहीं होगा; क्योंकि वह उसकी योजना
में विचार लगा रहेगा।
लोग मुझसे कहते हैं कि हम बैठते हैं, बड़ी कोशिश करते हैं कि निर्विचार हो जाएं।
निर्विचार होने की योजना विचार के लिए मौका है। तो मन यही सोचता रहता
है, कैसे निर्विचार हो जाएं? अभी तक निर्विचार नहीं हुए! कब होंगे? होंगे
कि नहीं होंगे?
ध्यान रखिए, वासना है कोई भी स्वर्ग की, मोक्ष की, प्रभु की तो विचार
जारी रहेगा। विचार का कोई कसूर नहीं है। विचार का तो इतना ही मतलब होता है
कि आप जो वासना करते हैं, मन उसका चिंतन करता है कि कैसे पूरा करे। जब तक
कुछ भी पाने को बाकी है, विचार जारी रहेगा। जिस दिन आप राजी हैं इस बात के
लिए कि मुझे कुछ पाना ही नहीं निर्विचार भी नहीं पाना आप अचानक पाएंगे कि
विचार विदा होने लगे; उनकी कोई जरूरत न रही। जब भीतर सब शून्य हो जाता है,
कोई योजना नहीं रहती, कुछ पाने को नहीं बचता, कहीं जाने को नहीं रहता, सब
यात्रा व्यर्थ मालूम पड़ने लगती है। और चेतना बैठ जाती है रास्ते के किनारे,
मंजिल वंजिल की बात छोड़ देती है मंजिल मिल जाती है।
अध्यात्म उपनिषद
ओशो
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