सुना है मैंने, एक नगर में एक बहुत बडा दानी आदमी था, जिसने कभी एक पैसा
भी दान नहीं किया। लेकिन दानी वह बडा था। उसके दान की बड़ी कथा थी। और कभी
उसने एक पैसा दान नहीं किया। लेकिन गांव में किसी को भी दान चाहिए हो तो
पहले उसी बड़े दानी के पास जाना पड़ता था। वह दानी लिखवा देता था लाख, दो
लाख, पांच लाख; क्योंकि उसे देना कभी भी नहीं पड़ता था, देता वह कभी भी नहीं
था। मगर जब वह पांच लाख लिखवा देता था, तो पूरे गांव के धनपतियों के
प्राणों में आग लग जाती थी, उनको भी लिखाना पड़ता था। वह कभी देता नहीं था।
यही उसका दान था कि वह पांच लाख लिखवा देता था, दस्तखत कर देता था। फिर
गांव भर के पैसे वाले कुछ न कुछ देते थे। क्योंकि फिर पीड़ा मालूम होने लगती
है।
और ऐसे दानी आपको हर गांव में मिल जाएंगे। और जो लोग दान इकट्ठा करते
हैं, वे भलीभांति जानते हैं कि दो चार नाम होने चाहिए लिस्ट पर। फिर किसी
के पास जाओ तो उसके अहंकार को भी चोट लगती है, अब उसे भी कुछ न कुछ देना ही
पड़ता है। साधारण भिखमंगा भी जानता है कि जब घर से निकलता है, तो अपने
पात्र में कुछ पैसे डाल लेता है, खुद के ही। क्योंकि जब वह पैसे बजाता है
अपने पात्र में, तो आपको भी लगता है कि कोई दे चुका है। खाली पात्र में तो
आप भी डालने को राजी न होंगे, क्योंकि कोई अहंकार को चोट नहीं लगेगी। कोई
दे चुका है तो पीड़ा मालूम पड़ती है कि अगर अब मैंने न दिया तो इस भिखमंगे के
सामने मैं दीन हो रहा हूं।
भिखमंगा भी समझता है कि जब आप अकेले हों तो आपसे नहीं मांगना है, जब चार
आदमी सामने मौजूद हों तब आपका पैर पकड़ लेगा, क्योंकि चार के सामने अब
इज्जत का सवाल है। दूसरे को दुख देने के लिए हम दान भी दे सकते हैं। दूसरे
को दुख देने के लिए हम मंदिर भी बना सकते हैं। दूसरे को दुख देने के लिए हम
कुछ भी कर सकते हैं। तब सब पाप हो जाता है।
आनंद पुण्य है, क्योंकि जब आप आनंदित होते हैं, तो जो भी आप करते हैं,
उससे आनंद ही बहता है। जो भी आप करते हैं, जब तक उससे आनंद न बहने लगे, तब
तक आप समझना कि पुण्य की आपको कोई प्रतीति नहीं है। पर पाप के अंकुर उखाड़ न
फेंके जाएं, तो पुण्य का जन्म भी न होगा। क्योंकि पाप के पत्थर पुण्य के
झरनों को रोके रखते हैं।
तो एक बात खयाल रखना कि जहां भी पता चले कि मैं दुख की वृत्ति में पड़
रहा हूं किसी भी कारण से, तो देर मत करना, उसे तत्क्षण उखाड़ कर फेंक देना।
उसके साथ थोड़ी सी भी दोस्ती उचित नहीं है। क्योंकि थोड़ी देर भी आप रुक गए,
तो दुख जड़ें फैला लेगा, आपके भीतर प्रवेश कर जाएगा। बड़े साहस की जरूरत है।
साधना सूत्र
ओशो
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