मैं एक आदमी को देखा जो ग्यारह वर्षों से खड़ा हुआ है। उनका नाम ही खड़ेश्री बाबा हो गया है। मैंने पूछा, लेकिन इस आदमी पर क्या मुसीबत आ पड़ी?
यह खड़ा क्यू हो गया? मेरे ड्राइवर एक सरदार जी थे, बड़े ज्ञानी थे। गाड़ी कम
चलाते थे, जपुजी ज्यादा पढ़ते थे। बोले कि कुछ नहीं हुआ, इसकी पत्नी ने इससे
कहां खड़े रहो और खुद किसी दूसरे पति के साथ भाग गयी। तब से यह बेचारा खड़ा
है। अब कोई इसको बिठाए तो बैठे। धर्म धर्म है, उसका पालन तो करना ही पड़ता
है। पत्नी किसी और को अभ्यास करवा रही होगी धर्म का, आध्यात्मिक का। यह
बेचारा यही अभ्यास कर रहा है। खड़ा हुआ है। इमैन्युअल कांट के लिए मैं कोई
आलोचना नहीं करता। लेकिन तुमसे मैं यह कहता हूं कि अगर तुम्हारे जीवन में
कभी भी कोई प्रकाश की जरा सी भी किरण दिखाई पड़े, सुगंध की कोई जरा सी झोंक,
तो वही दिशा है, वही मार्ग है। फिर हिम्मत करना, फिर रुकना मत। सोचने का
काम बाद में कर लेंगे। और यह मेरा अनुभव है कि जो इस रास्ते पर बढ़े हैं,
उन्होंने फिर सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी। क्योंकि हर अनुभव और गहरा होता
गया। हर अनुभव नयी छलांग, नयी चुनौती और नए परिवर्तन और नयी-नयी क्रांति
पर ले जाता रहा।
तो जो तुम्हें हो रहा है, बिलकुल ठीक हो रहा है। सोचो मत। सोचने से रुक
जाएगा। क्योंकि जीवन के सारे गहरे अनुभव हृदय से होते हैं, बुद्धि से नहीं
होते। और सोचना बुद्धि से होता है। और बुद्धि और हृदय का कोई मेल नहीं
बैठता तो बुद्धि तुम्हें पागल कहेगी कि यह क्या पागलपन है कि शरीर में
झुरझुरी आ रही है। जाओ किसी डाक्टर को दिखाओ। यह क्या पागलपन है? कि अकेले
बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे हो। चलो, किसी मनोवैज्ञानिक को दिखा आओ। यह दुनिया
बहुत अजीब है। यहां अगर तुम शांति से बैठकर कुछ भी नहीं कर रहे हो तो हर
आदमी टोकेगा। क्यों जी, क्यों फिजूल बैठे हुए हो? शर्म नहीं आती? दुनिया
मरी जा रही है और तुम बैठे हो। हजार काम करने को पड़े हैं और तुम बैठे हो।
कोई जाकर एडोल्फ हिटलर को नहीं कहता कि तुम क्या कर रहे हो? छह करोड़ लोगों
कि हत्या-लेकिन काम बड़ा कर रहा है। संख्या बड़ी है, सम्मान के योग्य है। अगर
तुम बैठे-बैठे गुनगुना रहे हो तो लोग कहेंगे कि जिंदगी बरबाद कर रहे हो।
जैसे कि उन्हें जिंदगी मिल गई। बीड़ी पीओ! दम मारो दम! बैठे-बैठे मुस्कुरा
रहे हो। किसी ने देख लिया तो नाहक बदनामी होगी।
अंग्रेजी कहावत है, इट इज बैटर टू डू समथिंग दैन नथिंग। और मैं तुमसे यह
कह रहा हूं, इट इज़ बैटर टू डू नथिंग। कोई चौबीस घंटे कुछ न करो, यह नहीं कह
रहा हूं। रोटी तो कमानी होगी, कपड़े तो कमाने होंगे। लेकिन घंटा भर तो निकाल
सकते हो, जब कि तुम मन को कह दो कि बस, अब तुम चुप हो जाओ। मगर मुझे घड़ीभर
हृदय के साथ जी लेने दो। इतना मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मन के
पास तेईस घंटे और हृदय के पास एक घंटा : जीत हृदय की होने वाली है।
कोपलें फिर फूट आई
ओशो
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