एक तो आदमी होते हैं, जिन्हें कहने का मजा होता है। जिन्हें
इससे प्रयोजन नहीं होता कि आपका कोई हित होगा, इसलिए कह रहे हैं। जिन्हें कहना है, जैसे कि खुजली खुजलानी है। उन्हें कुछ
कहना है, वे कह रहे
हैं। दिनभर हम जानते हैं चारों तरफ लोगों को,
जो सुबह अखबार पढ़ लिए और फिर निकले किसी से कहने!
उनको कहना है। कहना उनके लिए बीमारी है।
बिना कहे उनसे नहीं चलेगा। अगर उनको चार दिन अकेले बंद कर दो, तो वे दीवालों से बातचीत शुरू कर देंगे।
जाना गया है ऐसा।
कारागृह में कैदी बंद होते हैं, तो थोड़े दिन के बाद दीवालों से बातचीत
शुरू कर देते हैं। मकड़ी हो ऊपर,
तो उससे बातचीत करने लगते हैं;
छिपकली हो, तो उससे
बातचीत करने लगते हैं। कोई न हो,
तो अपने को ही दो हिस्सों में बांट लेते हैं। एक तरफ से प्रश्न उठाते हैं, दूसरी तरफ से जवाब देते हैं।
हम सभी करते रहते हैं। कोई न मिले, जरूरी भी नहीं। हमेशा श्रोता मिलना आसान
नहीं। और जैसे दिन खराब आते जा रहे हैं,
श्रोता बिलकुल नाराज है; सुनने को कोई
राजी नहीं है। पति कुछ कहना चाहता है,
पत्नी सुनने को राजी नहीं है। मां कुछ कहना चाहती है, बेटा सुनने को राजी नहीं है। बाप कुछ कहना
चाहता है, कोई सुनने को
राजी नहीं है! श्रोता मुश्किल होता जा रहा है। और बोलना है, कहना है! एक बीमारी है।
बर्ट्रेड रसेल ने इक्कीसवीं सदी की कहानी
लिखी है एक। उसमें उसने लिखा है कि जगह—जगह हर बड़े
नगर में तख्तियां लगी हैं, जो बड़ी अजीब
हैं। उन तख्तियों पर लिखा हुआ है कि आपको कुछ भी कहना हो, तो हम सुनने को राजी हैं। सुनने की इतनी
फीस! और अभी ऐसा हो रहा है। पश्चिम में जिसको साइकोएनालिसिस कहते हैं, मनोविश्लेषण कहते हैं, वह कुछ भी नहीं है, आपकी बकवास सुनने की फीस! सालों चलता है
एनालिसिस। पैसा जिनके पास है, वे एक बड़े
मनोवैज्ञानिक के पास सप्ताह में तीन दफा,
चार दफा जाकर घंटेभर, जो उनको बकना
है, बकते हैं। वह बड़ा
मनोवैज्ञानिक शांति से सुनता है।
सालभर की इस बकवास से मरीजों को लाभ होता
है। लाभ इलाज से नहीं होता है,
इस बकवास के निकल जाने से होता है। यह बीमारी है; कैथार्सिस हो जाती है सालभर। और एक
बुद्धिमान आदमी, प्रतिष्ठित
आदमी, योग्य आदमी, सुशिक्षित आदमी बड़ी लगन से आपकी बात सुनता
है, क्योंकि आप उसको सुनने
के पैसे देते हैं। वह आपकी लगन से बात सुनता है। आप कुछ भी कहिए, वह उसको ऐसे सुनता है, जैसे कि परम सत्य का उदघाटन किया जा रहा
हो!
तो पश्चिम में बड़े घरों के लोग एक—दूसरे से पूछते हैं, कितनी बार साइकोएनालिसिस करवाई? कितने दिन तक? पैसे वाले का लक्षण आज अमेरिका में यही है; खास कर स्त्रियों का। पैसे वाली स्त्रियों
का लक्षण यही है कि उन्होंने कितने बड़े मनोवैज्ञानिक के साथ कितने साल तक
मनोविश्लेषण करवाया है!
और मनोविश्लेषण का कुल मतलब इतना है कि
मनोवैज्ञानिक कहता है, लेट जाओ इस
कोच पर, और जो भी मन में आए, फ्री एसोसिएशन ऑफ थॉट्स, जो भी मन में आए, कहे चले जाओ। जो भी आए! संगत—असंगत का कोई सवाल नहीं। लोग बड़े हल्के
होकर लौटते हैं।
एक तो कहने वाले वे लोग हैं, जिन्हें कहना एक बीमारी है। उनके भीतर कुछ
भरा है, उसे निकालना है। लेकिन
उससे दूसरे का हित कभी नहीं होता।
कृष्ण कहते हैं, मैं तेरे हित के लिए कहूंगा। कुछ कहने का
सवाल नहीं है। लेकिन तेरे सुनने की घड़ी आ गई,
तेरे सुनने का क्षण आ गया,
वह परिपक्क मौका आ गया, जब तेरा हृदय
राजी है, तो मैं तुझसे परम
सत्य कहूंगा। और यह परम सत्य, इस सूत्र की
व्याख्या होगी अंतत:, कि जीवन
अजन्मा है, अनादि है।
अस्तित्व का न कोई प्रारंभ है,
न कोई अंत। और हम इस अस्तित्व में छोटी लहरों से ज्यादा नहीं। हमारे कृत्य इस
परम विस्तार को ध्यान में रखकर सोचे जाएं,
तो लीला मात्र, खेल मात्र रह
जाते हैं।
अगर इस परम विस्तार को छोड़ दिया जाए, तो हमारे कृत्य बड़ी महिमा ले लेते हैं, बड़ी गरिमा ले लेते हैं, बड़े महत्वपूर्ण हो जाते हैं। और हम सबकी
नजर इतनी छोटी है कि इस विस्तार को हम नहीं देख पाते।
अपने घर में आप बैठे हैं अपनी कुर्सी पर, अपने कमरे के भीतर, तो आप सम्राट मालूम होते हैं। थोड़ा बाहर
आइए; फिर फैले हुए इस विराट
आकाश को देखिए, फिर इन चांद—तारों को देखिए, तब आपको अपना अनुपात अलग मालूम पड़ेगा। तब
आपके छोटे—से कमरे में
आप जो सम्राट मालूम होते थे, वह अब नहीं
मालूम पड़ेंगे। यह छोटे—छोटे दड़बों
में आदमी बंद है, फ्लैट्स में, छोटी—छोटी कोठरियों में आदमी बंद है, उसकी वजह से उसकी अकड़ बहुत बढ़ गई है। उसे
थोड़ा खुले आकाश के नीचे लाना चाहिए,
तो उसे पता चले कि अपना अनुपात कितना है!
विराट आकाश! और जितना आकाश आपको दिखता है, उतना ही नहीं है, यह तो आपकी आँख की कमजोरी की वजह से इतना
दिखता है। यह आकाश और भी विराट है। तो एक बड़े दूरदर्शी यंत्र से देखिए। तब आपको
दिखाई पड़ेगा कि जितने तारे आपको दिखाई पड़ते हैं, ये तो कुछ भी नहीं हैं। आपने हालांकि सोचा होगा, क्योंकि हमारी गणना कितनी है! आप रात में
तारे देखते हैं? तो कहते हैं, असंख्य! गलती में मत पड़ना।
आम आँख से आदमी चार हजार तारों से ज्यादा
तारे नहीं देखता। अच्छी से अच्छी आँख चार हजार तारे देखती है, बस। चूंकि आप गिन नहीं पाते, इसलिए सोचते हैं, असंख्य। लेकिन दूरदर्शक यंत्र से देखिए, तो तीन अरब तारे अब तक देखे जा चुके हैं।
लेकिन वे तीन अरब तारे जगत की सीमा नहीं हैं। जगत उनके भी पार, उनके भी पार, उनके भी पार है। अब वैज्ञानिक कहते हैं, हम कहीं भी तय न कर पाएंगे कि जगत की सीमा
है।
अगर इस असीम का पता चले, तो आपको अपना कमरा और आपका राजा होना उस
कमरे में, कितना
मूल्यवान मालूम पड़ेगा? अगर आपको इस
अनंत विस्तार का पता चले, तो पड़ोसी से
आपकी एक इंच जमीन के लिए जो अदालत में मुकदमा चल रहा है, वह मुकदमा कितना मूल्यवान मालूम पड़ेगा? उसकी कोई रेलिवेंस, उसकी कोई संगति मालूम नहीं पड़ेगी।
अगर आप पीछे लौटकर देखें, तो अरबों— अरबों लोग इस जमीन पर रहे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि जहां
आप बैठे हैं, उस जगह पर कम
से कम दस आदमियों की कब्र बन चुकी है,
हर जगह पर। जहां आप बैठे हैं,
वहां दस मुर्दे गड़े हैं। इतने आदमी हो चुके हैं कि अगर हम पूरी जमीन पर भी
गड़ाएं, तो हर इंच पर दस
मुर्दे गड़ जाएंगे! उनके भी झगड़े थे,
उनकी भी अकड़ थी, उनकी भी
राजनीति थी, उनके भी छोटी—छोटी बातों पर बड़े—बड़े विवाद थे, वे सब खो गए। आज उनका कोई विवाद नहीं है।
कल हमारा भी कोई विवाद नहीं होगा।
अगर हम इस सातत्य को, इस विस्तार को अनुभव करें, तो कहां टिकेगा पाप? कहां टिकेगा पाप? कहां टिकेगा अहंकार? कहां टिकूंगा मैं? वे सब खो जाएंगे। और उनके खो जाने पर
व्यक्ति नहीं बचता, परमात्मा ही
बचता है।
गीता दर्शन
ओशो
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