योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई
से कोई संबंध नहीं है। लेकिन चाहे जीसस, चाहे मोहम्मद, चाहे पतंजलि, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, कोई भी व्यक्ति जो सत्य को उपलब्ध हुआ है, बिना योग से गुजरे हुए उपलब्ध नहीं होता। योग के अतिरिक्त
जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे
विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की
दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है।
इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह
यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं।
योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए
किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है। नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह
प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है।
विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के
कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के
बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता
है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट
की अपेक्षा करता है।
विज्ञान कहता है, करो, देखो। विज्ञान
के सत्य चूंकि वास्तविक सत्य हैं, इसलिए किन्हीं
श्रद्धाओं की उन्हें कोई जरूरत नहीं होती है। दो और दो चार होते हैं, माने नहीं जाते। और कोई न मानता हो तो खुद ही मुसीबत में
पड़ेगा; उससे दो और दो चार का सत्य मुसीबत में
नहीं पड़ता है।
विज्ञान मान्यता से शुरू नहीं होता; विज्ञान खोज से, अन्वेषण से
शुरू होता है। वैसे ही योग भी मान्यता से शुरू नहीं होता; खोज, जिज्ञासा, अन्वेषण से शुरू होता है। इसलिए योग के लिए सिर्फ प्रयोग
करने की शक्ति की आवश्यकता है, प्रयोग करने
की सामर्थ्य की आवश्यकता है, खोज के साहस
की जरूरत है; और कोई भी जरूरत नहीं है।
योग विज्ञान है, जब ऐसा कहता हूं, तो मैं कुछ
सूत्र की आपसे बात करना चाहूं, जो
योग-विज्ञान के मूल आधार हैं। इन सूत्रों का किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है, यद्यपि इन सूत्रों के बिना कोई भी धर्म जीवित रूप से खड़ा
नहीं रह सकता है। इन सूत्रों को किसी धर्म के सहारे की जरूरत नहीं है, लेकिन इन सूत्रों के सहारे के बिना धर्म एक क्षण भी
अस्तित्व में नहीं रह सकता है।
योग: नये आयाम
ओशो
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