Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Tuesday, December 3, 2019

सत्य के लिए प्यास


मेरे प्रिय आत्मन्!


बोलते समय, बोलने के पहले मुझे यह सोच उठता है हमेशा, किसान सोच लेता है कि जिस जमीन पर हम बीज फेंक रहे हैं उस जमीन पर बीज अंकुरित होंगे या नहीं? बोलने के पहले मुझे भी लगता है, जिनसे कह रहा हूं वे सुन भी सकेंगे या नहीं? उनके हृदय तक बात पहुंचेगी या नहीं पहुंचेगी? उनके भीतर कोई बीज अंकुरित हो सकेगा या नहीं हो सकेगा? और जब इस तरह सोचता हूं तो बहुत निराशा मालूम होती है। निराशा इसलिए मालूम होती है कि विचार केवल उनके हृदय में बीज बन पाते हैं जिनके पास प्यास हो और केवल उनके हृदय सुनने में समर्थ हो पाते हैं जिनके भीतर गहरी अभीप्सा हो। अन्यथा हम सुनते हुए मालूम होते हैं, लेकिन सुन नहीं पाते। अन्यथा हमारे हृदय पर विचार जाते हुए मालूम पड़ते हैं, लेकिन पहुंच नहीं पाते और उनमें कभी अंकुरण नहीं होता है।

प्यास के बिना कोई भी सुनना संभव नहीं है। इसलिए जरूरी नहीं है कि जितने लोग बैठे हैं वे सभी सुनेंगे। यह भी जरूरी नहीं है कि उन तक मेरी बात पहुंचेगी। लेकिन इस आशा में कि शायद किसी के पास पहुंच जाएगी, तो भी ठीक है। अगर एक के पास भी बात पहुंच जाए तो परिणाम, तो परिणाम होगा, निश्चित होगा।


पर मैं आशा करूं कि सबके पास पहुंच सकेगी और यह विश्वास करूं कि सब प्यास लेकर इकट्ठे हुए होंगे। हुआ ऐसा है कि दुनिया में प्यास सत्य के लिए, परमात्मा के लिए कम होती जा रही है। सत्य के लिए हमारी अभीप्सा कम होती जा रही है। यह मैं क्यों कह रहा हूं? यह मैं इसलिए कह रहा हूं, धर्म के लिए हमारी प्यास कम होती जा रही है। यह मैं क्यों कह रहा हूं? यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि अगर आपकी धर्म के लिए प्यास हो, तो आप किसी धर्म के सदस्य नहीं हो सकते हैं। अगर आपकी धर्म के लिए प्यास हो, तो आप हिंदू, जैन, मुसलमान और ईसाई नहीं हो सकते हैं।


जिसके भीतर प्यास होगी, वह खोज करेगा, वह साहस करेगा, अनुसंधान करेगा, वह साधना करेगा और सत्य तक पहुंचने के लिए संघर्ष करेगा। जिनके भीतर प्यास नहीं होती, वे मां-बाप जो विचार दे देते हैं, उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और उनको ढोते रहते हैं। जिनका धर्म जन्म से निश्चित होता है, जानना चाहिए उन्हें धर्म की कोई प्यास नहीं है। अन्यथा हम दूसरों के दिए भोजन से तृप्त नहीं होते और हम दूसरों के पहने हुए कपड़े पहनने को राजी नहीं होते। लेकिन हम, दूसरों के उधार विचार स्वीकार कर लेते हैं और हम परंपरा से सहमत हो जाते हैं। और जन्म का आकस्मिक संयोग हमें जिस घर में पैदा कर देता है हम उस धर्म को अंगीकार कर लेते हैं। ये हमारे भीतर बुझी हुई प्यास के लक्षण हैं।


जिनके भीतर परंपरा के प्रति संदेह नहीं उठता, जिनके प्रति प्रचलित धारणाओं और मान्यताओं के प्रति जिज्ञासा और प्रश्न खड़े नहीं होते हैं, उनके भीतर कोई प्यास नहीं है। अगर उनके भीतर प्यास हो, तो प्यास की अग्नि उन्हें विद्रोह में ले जाएगी।


धर्म बुनियादी रूप से या सत्य या धर्म और सत्य की खोज एक विद्रोह है। वह एसेंसियली रिबेलियस है। तो आपके भीतर अगर विद्रोह पैदा नहीं होता है और आप चुपचाप सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं, जो परंपरा ने और अतीत ने आपको दिया है, आप कभी धार्मिक नहीं हो सकते हैं। महावीर ने वह स्वीकार नहीं किया जो उन्हें दिया गया था और न बुद्ध ने स्वीकार किया और न क्राइस्ट ने स्वीकार किया। दुनिया में जो भी लोग सत्य को उपलब्ध हुए हैं, उन्होंने परंपरा से दिए गए सत्यों को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहाः हम खोजेंगे, हम जानेंगे, हम पहचानेंगे, हम अनुभूति करेंगे तो स्वीकार करेंगे। अनुभूति के पहले जो स्वीकार करने को तैयार है, उसकी प्यास झूठी है। और भी प्यास इसलिए झूठी मालूम होती है, अगर कोई आदमी कहे कि मुझे बहुत प्यास लगी है और पानी शब्द से ही तृप्त हो जाए, तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे, प्यास नहीं है। हम आत्मा, परमात्मा और इन सारे शब्दों से तृप्त हो जाते हैं। इसका अर्थ है, हमारे भीतर कोई जलती हुई प्यास नहीं है, अन्यथा प्यास हो तो पानी चाहिए।

आठो पहर यूँ झूमिए 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts