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Tuesday, December 3, 2019

काम बड़ी घटना है


मैंने कहा, काम बड़ी घटना है। अगर हम मनसशास्त्रियों से पूछें, तो वे कहते हैं कि मनुष्य काम के लिए ही जी रहा है। अगर हम फ्रायड से पूछें, तो वह कहेगा, काम ही मनुष्य का सब कुछ है, उसकी आत्मा है। और जहां तक साधारण मनुष्य का संबंध है, फ्रायड बिलकुल ही ठीक कहता है। धन भी कमाते हैं इसलिए कि काम खरीदा जा सके। यश भी पाते हैं इसलिए कि काम खरीदा जा सके। चौबीस घंटे दौड़ हमारी, गहरे में अगर खोजें, तो किसी से सुख पाने की दौड़ है।


सुना है मैंने कि फ्रेंक वू करके एक मनोचिकित्सक के पास एक आदमी आया है। अति क्रोध से पीड़ित है। क्रोध ही बीमारी है उसकी। क्रोध ने ही उसे जला डाला है भीतर। क्रोध ने उसे सुखा दिया है। उसके सारे रस-स्रोत विषाक्त हो गए हैं। आंखों में क्रोध के रेशे हैं। चेहरे पर क्रोध की रेखाएं हैं। नींद खो गई है। हिंसा ही हिंसा मन में घूमती है।


फ्रेंक वू उसे बिठाता है, और उसके मनोविश्लेषण के लिए एक छोटा-सा प्रयोग करता है। हाथ में उठाता है अपना रूमाल ऊंचा, और उस आदमी से कहता है, इसे देखो। और रूमाल को छोड़ देता है। वह रूमाल नीचे गिर जाता है। फ्रेंक वू उस आदमी से कहता है, आंख बंद करो और मुझे बताओ कि रूमाल के गिरने से तुम्हें किस चीज का खयाल आया? तुम्हारे मन में पहला खयाल क्या उठता है रूमाल के गिरने से?


वह आदमी आंख बंद करता है और कहता है, आई एम रिमाइंडेड आफ सेक्स--मुझे तो कामवासना का खयाल आता है।


फ्रेंक वू थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि रूमाल के गिरने से कामवासना का क्या संबंध? फ्रेंक वू ने पास में पड़ी एक किताब उठाई और कहा, इसे मैं खोलता हूं; गौर से देखो। किताब खोलकर रखी, कहा, आंख बंद करो और मुझे कहो कि किताब खुलती देखकर तुम्हें क्या खयाल आता है?


उसने कहा, आई एम अगेन रिमाइंडेड आफ सेक्स--मुझे फिर कामवासना की ही याद आती है!


फ्रेंक वू और हैरान हुआ। उसने टेबल पर पड़ी हुई घंटी बजाई और कहा कि घंटी को ठीक से सुनो! आंख बंद करो। क्या याद आता है? उसने कहा, आई एम रिमाइंडेड आफ सेक्स--वही कामवासना का खयाल आता है!


फ्रेंक वू ने कहा, बड़ी हैरानी की बात है कि तीन बिलकुल अलग चीजें तुम्हें एक ही चीज की याद कैसे दिलाती हैं! रूमाल का गिरना, किताब का खुलना, घंटी का बजना--इतनी विभिन्न बातें हैं! तुम्हें इन तीनों में एक ही बात का खयाल आता है; कारण क्या है?


उस आदमी ने कहा, तुम्हारी चीजों से मुझे कोई संबंध नहीं। मुझे सिवाय सेक्स के और कोई खयाल आता ही नहीं। तुम्हारी चीजों से कोई संबंध नहीं है। तुम रूमाल गिराओ कि पत्थर गिराओ। तुम घंटी बजाओ कि घंटा बजाओ। तुम किताब खोलो कि बंद करो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो सिवाय काम के कुछ सोचता ही नहीं।


यह आदमी पागल मालूम पड़ेगा। लेकिन दुनिया में सौ में से निन्यानबे आदमी इस भांति के हैं। उन्हें पता हो या न पता हो। और जिन्हें पता है, उनकी तो चिकित्सा हो सकती है; जिन्हें पता नहीं है, वे बड़ी खतरनाक हालत में हैं।


हमें लगेगा कि यह तो बात ठीक नहीं है। रूमाल के गिरने से हमें क्यों खयाल आएगा? लेकिन अगर आप अपने मन का थोड़ा-सा अंतर्विश्लेषण करेंगे सुबह से रात सोने तक, थोड़ा भीतर झांककर देखेंगे, तो आप हैरान होंगे कि कहीं अंतस्तल पर एक पर्त कामवासना की पूरे समय चलती रहती है।


मनोवैज्ञानिक उस राज को पकड़ लिए हैं, इसलिए सारी दुनिया के विज्ञापनदाताओं को उन्होंने कह दिया है कि आदमी को कोई भी चीज बेचनी हो, सेक्स के साथ जोड़ दो; बिकेगी। अन्यथा नहीं बिकेगी। कार बेचनी हो, तो एक नग्न स्त्री को कार के साथ खड़ा करो। कोई संबंध नहीं है। सिगरेट बेचनी हो, तो एक स्त्री को खड़ा करो। कुछ भी बेचना हो, तो नग्न स्त्री को बीच में लाओ। जिसका कोई भी संबंध नहीं है, तो भी खड़ा करो। क्यों? आदमी के मन की अंतर्धारा का पता चल गया है। हर चीज उसी की याद दिलाती है। तो अगर स्त्री को खड़ा कर दो, तो वह चीज उसके मन में गहरे संयुक्त हो जाएगी, गहरी उतर जाएगी। फिर वह चीज नहीं खरीदेगा। खरीदेगा चीज, और समझेगा कि किसी जाने-अनजाने रास्ते स्त्री खरीदी है।


यह काम से भरा हुआ चित्त अगर चौबीस घंटे क्रोध से भरता है, तो आश्चर्य नहीं है। यह काम चौबीस घंटे हजार बाधाएं पाता है, रुकावटें पाता है। यह पूरा नहीं हो पाता। पीड़ा देता है। भीतर उबल जाते हैं प्राण। ऊर्जा काम में बहना चाहती है, रुकावटें पाती है हजार तरह की। इसलिए तो जहां सुविधा बन जाएगी, वहां लोग रुकावटों को तोड़ना शुरू कर देंगे। जैसा अमेरिका में हुआ।


जब तक दुनिया गरीब थी, तो आदमी समाज से डरता था। क्योंकि भूखा मरेगा, अगर समाज के खिलाफ गया तो। नौकरी, रोजी-रोटी खो जाएगी। जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा। आज अमेरिका में धन काफी है। कोई भय नहीं रहा समाज का उतना। इसलिए सेक्स के संबंध में समाज के सारे नियम, सारी व्यवस्था टूटी जा रही है।


जितनी दुनिया समृद्ध होगी, उतनी सेक्स के मामले में सब सीमाएं तोड़ती चली जाएगी। इससे कुछ ऐसा नहीं है कि कुछ बड़ी उपलब्धि हो जाएगी। एक तरफ अमेरिका जैसे समृद्ध समाज में सेक्स के सब व्यवधान टूट गए, और दूसरी तरफ विफलता और विषाद घना होता जाता है और आत्महत्याएं बढ़ती चली जाती हैं।


समाज के पास दो ही उपाय हैं। या तो वह आपकी काम की वासना को पूरा होने की खुली छूट दे दे; तो भी आप पागल हो जाएंगे--विषाद में, फ्रस्ट्रेशन में। जैसा अमेरिका में हुआ है। यौन के संबंध में पूरी स्वतंत्रता पैदा हो गई है। और इसका परिणाम यह हुआ कि यौन में रस भी कम हो गया; विरस हो गया; काम की गहराई भी खो गई; काम का मूल्य भी खो गया; और आदमी विषाद में खड़ा है। अब कोई दूसरा सेंसेशन चाहिए, कोई दूसरा वेग, कोई दूसरी उत्तेजना। वह दिखाई नहीं पड़ती।


इसलिए काम के विकृत रूप सारे पश्चिम में फैलने शुरू हो गए। होमोसेक्सुअलिटी इतने जोर से बढ़ती है, जैसा कि दुनिया में कभी भी नहीं बढ़ी थी। क्योंकि स्त्री के साथ पुरुष ने देख लिया, स्त्री ने पुरुष के साथ देख लिया। रस नहीं है कुछ बहुत। अब क्या करें! अब नए आविष्कार करने पड़ते हैं। विक्षिप्त आविष्कार पैदा होते हैं; विकृतियां, परवरशंस पैदा होते हैं।


अगर समाज बिलकुल खुला छोड़ दे सेक्स, तो परवर्ट होगा। और अगर समाज बिलकुल खुला न छोड़े, तो सप्रेशन होगा। और जितना दमन होगा, उतना क्रोध पैदा होगा। या तो काम को खुला छोड़ो, तो विषाद फैल जाता है; जीवन रसहीन हो जाता है। लोग थके-हारे, अर्थहीन हो जाते हैं। एंप्टीनेस पकड़ लेती है। सब रिक्त, कुछ भी नहीं है जिंदगी में। और यदि काम को रोको, तो क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध हजार-हजार रूपों में प्रकट होता है।

गीता दर्शन 

ओशो

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