तुम्हारे पास एक हजार एक समस्याएं हैं, और तुम उन्हें हल करने का प्रयास करते हो, लेकिन एक भी समस्या सुलझती नहीं है। वह
सुलझ भी नहीं सकती, क्योंकि पहली
बात तो यह वहां एक हजार एक समस्याएं न होकर केवल एक ही समस्या है; और यदि तुम एक हजार एक समस्याओं की ओर
देखो तो तुम उस एक समस्या को भी नहीं देख पाओगे, जो वास्तव में है।
तुम उन चीजों की ओर देखे चले जाओगे, जो हैं ही नहीं, और उनके ही कारण तुम उसे देखने से चूक
जाते हो, जो वास्तव में
है। इसलिए पहली बात, जो बुनियादी
है, उसे समझ लेना है, केवल वही एक समस्या है। वह लगभग निरंतर
बने रहने वाली समस्या हैं। वह न तो तुम्हारी व्यक्तिगत समस्या है, और न मेरी; अथवा न किसी अन्य की। वह मनुष्य मात्र की समस्या है।
उसका जन्म तुम्हारे जन्म के साथ ही होता
है, और दुर्भाग्य से जैसी
स्थिति लाखों-करोड़ों मनुष्यों की है,
वह समस्या तुम्हारे साथ ही मर जाएगी।
यदि वह समस्या तुम्हारे मरने से पहले ही
मर जाए तो तुम बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओगे।
और धर्म का पूरा प्रयास इस समस्या को
मिटाने में है इससे पहले कि वह तुम्हें पूरी तरह मार दे, तुम्हारी सहायता करना है। इस बारे में एक
ऐसे मनुष्य की सम्भावना है, जो बिना
समस्याओं के हो, और ऐसा मनुष्य
धार्मिक होता है। उसकी कोई समस्याएं होती ही नहीं, क्योंकि उसने बुनियादी समस्या हल कर ली है। उसने समस्याओं
की जड़ ही काट दी है।
इसी कारण-तिलोपा कहता है: मन को जड़ से काट
दो। पत्तियों और शाखाओं को काटने मत जाओ,
वे लाखों हैं, और उनको काटकर
भी, तुम जड़ काटने में
समर्थ न हो सकोगे, और वृक्ष
विकसित होता जाएगा। यदि तुम पत्तियों की छंटाई करते रहे, तो वृक्ष और भी अधिक घना, मोटा और विशाल बनेगा। पत्तियों के बारे
में पूरी तरह भूल जाओ। समस्याएं वे नहीं हैं। समस्या तो कहीं जड़ में है। जड़ को
काटी; और वृक्ष धीमे- धीमे
नष्ट हो जाएगा, सूख जाएगा।
इसलिए मन की मूल समस्या आखिर है कहां? यह न तो तुम्हारी है और न किसी अन्य की है; यह तो मनुष्य जैसा है, उसकी है। जिस क्षण तुम जन्म लेते हो, यह तभी अस्तित्व में आती है, लेकिन तुम्हारे से पूर्व यह घुल कर मिट
सकती है।
यदि तुम इस समस्या को ठीक से समझना चाहते
हो, तो कदम-कदम मेरा अनुसरण करते चलो, वह तुरंत हल हो जाएगी, क्योंकि
समस्या स्वयं अपने साथ उसका समाधान भी लिए हुए है। समस्या है एक बीज के समान और उसका समाधान है एक फूल के समान, जो बीज ही में छिपा हुआ है।
यदि तुम बीज को ठीक तरह से और पूरी तरह
समझ लो, समाधान वहां पहले ही से उपस्थित है। एक समस्या को सुलझाना, वास्तव में उसको हल करना न होकर, उसे समझना है। उसका समाधान उससे कहीं बाहर
नहीं है, वह उसी में
अंतर्निहित है। वह उसी में छिपा हुआ है। इसलिए उसे हल करने क्री ओर मत देखो, केवल समस्या
की गहराई में झांक कर देखो, और उसकी जड़
खोजो।
वास्तव में जड़ को भी काटने की जरूरत नहीं
है। एक बार तुमने उसे समझ लिया, तो वह समझ ही जड़ का कटना बन जाती है। इसलिए कदम-कदम मेरे पीछे चलते हुए देखते
रहो कि समस्या का किस तरह जन्म होता है; और उसके
समाधान में कोई भी दिलचस्पी मत लो-
क्योंकि इसी तरह से संसार में दर्शनशास्त्र का जन्म होता है।
उस जगह कोई समस्या है, मन उसका हल खोजना शुरू कर देता है, और दार्शनिक प्रश्न उत्पन्न होने लगते
हैं। वहां कोई समस्या है, मन उसे समझने का प्रयास करता है, तो धर्म का
जन्म होता है।
ऋतु आये फल होय
ओशो
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