एक सूफी फकीर रोज संध्या परमात्मा को धन्यवाद देता था कि हे प्रभु! तेरी
कृपा का कोई पारावार नहीं, तेरी अनुकंपा अपार है! मेरी जो भी जरूरत होती
है तू सदा पूरी कर देता है। उसके शिष्यों को यह बात जंचती नहीं थी क्योंकि
कई बार जरूरतें दिन-भर पूरी नहीं होती थीं, और फिर भी धन्यवाद वह यही देता
था। मगर एक बार तो बात बहुत बढ़ गयी, शिष्यों से रहा न गया। वे हज-यात्रा को
गए थे गुरु के साथ। तीन दिन तक रास्तों में ऐसे गांव मिले जिन्होंने न तो
उन्हें भीतर घुसने दिया, न ठहरने दिया।
सूफी फकीरों को मुसलमान बर्दाश्त नहीं करते, असल में सच्चे फकीर कहीं भी
बर्दाश्त नहीं किए जाते। क्योंकि सच्चे फकीरों की सच्चाई लोगों को काटती
है। उनकी सच्चाई से लोगों के झूठ नंगे हो जाते हैं। उनकी सच्चाई से लोगों
के मुखौटे गिर जाते हैं। तो तीन गांव, तीन दिन तक रास्ते में पड़े, उन्होंने
ठहरने नहीं दिया, रात रुकने नहीं दिया। भोजन-पानी तो दूर गांव के भीतर
प्रवेश भी नहीं दिया। और रेगिस्तान की यात्रा, तीन दिन न भोजन मिला, न
पानी, हालत बड़ी खराब। और रोज संध्या वह धन्यवाद जारी रहा।
तीसरे दिन शिष्यों ने कहा कि अब बहुत हो गया। जैसे ही फकीर ने कहा : “हे
प्रभु! तेरी कृपा अपार है, तेरी अनुकंपा महान है; तू मेरी जरूरतें हमेशा
पूरी कर देता है।” तो शिष्यों ने कहा : “अब ज़रा जरूरत से ज्यादा बात हो गई।
हम दो दिन से बर्दाश्त कर रहे हैं लेकिन अब हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। न
पानी, न रोटी, न सोने की जगह क्या खाक धन्यवाद दे रहे हो! कौन-सी जरूरत
पूरी की? हमने तो नहीं देखी, कोई जरूरत पूरी हुई हो।”
उस फकीर ने आंखें खोलीं, उसकी आंखों से आनंद अश्रु बह रहे हैं, वह हंसने
लगा। उसने कहा : तुम समझे नहीं। तीन दिन हमारी यही जरूरत थी कि न हमको
भोजन मिले, न पानी मिले, न ठहरने का स्थान मिले। क्योंकि वह जो करता है, वह
निश्चित ही हमारी जरूरत होगी, कसौटी ले रहा है, परीक्षा ले रहा है।
धन्यवाद में कमी नहीं पड़ सकती। उस फकीर ने कहा : वह धन्यवाद क्या? जिस दिन
रोटी मिली उस दिन धन्यवाद दिया और जिस दिन नहीं मिली रोटी उस दिन धन्यवाद न
दिया वह धन्यवाद क्या? जिसके हाथों से हमने प्यारे फल खाए, उसके हाथों से
कड़वे फल भी स्वीकार होने चाहिए। अगर कड़वे फल दे रहा है तो जरूर कुछ इरादा
होगा।
जो व्यक्ति परमात्मा पर सारे फल छोड़ देता है उसके जीवन में चिंता नहीं
हो सकती। यह सूफी फकीर कभी पागल नहीं हो सकता। असंभव, इसे कैसे पागल करोगे?
यह चिंतित नहीं हो सकता, इसे कैसे चिंतित करोगे? इसके भीतर सदा ही गहन
शांति बनी रहेगी, अखंड ज्योति जलती रहेगी। लेकिन उपक्रम जारी है। दूसरे दिन
सुबह फिर दूसरे द्वार पर गांव के दस्तक दी….उपक्रम जारी है: फिर शरण
मांगी जाएगी, फिर भोजन मांगा जाएगा, फिर पानी मांगा जाएगा। उपक्रम जारी है।
क्रम जारी रहे, श्रम जारी रहे और फलाकांक्षा परमात्मा के हाथ में हो; तो
तुम्हारे जीवन में अद्भुत समन्वय पैदा हो जाता है।
गुरु प्रताप साध की संगती
ओशो
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