कभी आपने नहीं सोचा होगा, इतने पेन्टर हुए, इतने मूर्तिकार हुए,
इतने चित्रकार, इतने कवि, इतने आर्किटेक्ट, लेकिन स्त्री कोई एक बड़ी
चित्रकार नहीं हुई! कोई एक स्त्री बडी आर्किटेक्ट, वास्तुकला में अग्रणी
नहीं हुई! कोई स्त्री ने बहुत बड़े संगीत को जन्म नहीं दिया! कोई एक
स्त्री ने कोई बहुत अदभुत मूर्ति नहीं काटी! सृजन का सारा काम पुरुष ने
किया है। और कई बार पुरुष को ऐसा खयाल आता है कि क्रिएटिव, सृजनात्मक शक्ति हमारे पास है। स्त्री के पास कोई सृजनात्मक शक्ति नहीं है।
लेकिन बात उलटी है। स्त्री पुरुष को पैदा करने मैं इतना बड़ा श्रम
कर लेती है कि और कोई सृजन करने कि जरूरत नहीं रह जाती। स्त्री के पास
अपना एक क्रिएटिव एक्ट है। एक सृजनात्मक कृत्य है, जो इतना बड़ा कि न,
पत्थर की मूर्ति बनाना और एक जीवित व्यक्ति को बड़ा करना.. लेकिन स्त्री के
काम को हमने सहज स्वीकार कर लिया है। और इसीलिए स्त्री की सारी
सृजनात्मक शक्ति उसके मां बनने में लग जाती है। उसके पास और कोई सृजन की न
सुविधा बचती है, न शक्ति बचती है। न कोई आयाम, कोई डायमेंशन बचता है। न
सोचने का सवाल है।
एक छोटे से घर को सुंदर बनाने में लेकिन हम कहेंगे, छोटे से घर को
सुंदर बनाना, कोई माइकल एंजलो तो पैदा नहीं हो सकता, कोई वानगाग तो पैदा
नहीं हो जायेगा। कोई इजरा पाउंड तो पैदा नहीं होगा। कोई कालिदास तो पैदा
नहीं होगा। एक छोटे से घर को… लेकिन मैं कुछ घरों में जाकर ठहरता रहा हूं।
एक घर में ठहरता था, मैं हैरान हो गया। गरीब घर है। बहुत सम्पन्न
नहीं है। लेकिन इतना साफ सुथरा, इतना स्वच्छ मैंने कोई घर नहीं देखा। लेकिन
उस घर की प्रशंसा करने कोई कभी नहीं जायेगा। घर की गृहणी उस घर को ऐसा
पवित्र बना रही है कि कोई मंदिर भी उतना स्वच्छ और पवित्र नहीं मालूम पड़ता
है। लेकिन उसकी कौन फिक्र करेगा? कौन माइकेल एंजलो,कालिदास और वानगाग में
उसकी गिनती करेगा? वह खो जायेगी। या : एक ऐसा काम कर रही है, जिसके लिए कोई
प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। क्यों नहीं मिलेगी? नहीं मिलेगी यह, यह दुनियां
पुरुषों की दुनिया है।
स्त्री के विकास, स्त्री की संभावनाओं, स्त्रियों की जो
पोटेशियलिटीज हैं, उनके जो आयाम, ऊंचाइयां हैं, उनको हमने गिनती में ही
नहीं लिया है। अगर एक आदमी गणित में कोई नयी खोज कर ले तो नोबल प्राइज मिल
सकता है। लेकिन स्रियां निरंतर सृजन के बहुत नये नये आयाम खोजती हैं। कोई
नोबल प्राइज उनके लिए नहीं है! या : स्रियों की दुनिया नहीं हैं। स्रियों
को सोचने के लिए, स्रियों को दिशा देने के लिए, उनके जीवन में जो हो, उसे
भी मूल्य देने का हमारे पास कोई आधार नहीं है।
हम सिर्फ पुरुषों को आधार देते हैं! इसलिए अगर हम इतिहास उठाकर
देखें तो उसमें चोर, डकैत, हल।, बड़े बड़े आदमी मिल जायेंगे। उसमें चंगेज
खां, तैमूर लंग और हिटलर और स्टैलिन और माओ सबका स्थान है। लेकिन उसमें
हमें ऐसी स्त्रियां खोजने में बड़ी मुश्किल पड़ जायेगी। उनका कोई उल्लेख ही
नहीं है जिन्होंने सुन्दर घर बनाया हो। जिन्होंने एक बेटा पैदा किया हो और
जिसके साथ, जिसे बड़ा करने में सारी मां की ताकत, सारी प्रार्थना, सारा
प्रेम लगा दिया हो। इसका कोई हिसाब नहीं मिलेगा।
पुरुष की एक तरफा अधूरी दूनिया अब तक चली है। और जो पूरा इतिहास
है, वह पुरुष का ही इतिहास है, इसलिये युद्धों का, हिंसाओं का इतिहास है।
जिस दिन स्त्री भी स्वीकृत होगी और विराट मनुष्यता में उतना ही
समान स्थान पा लेगी, जितना पुरुष का है, तो इतिहास भी ठीक दूसरी दिशा लेना
शुरू करेगा।
संभोग से समाधि की ओर
ओशो
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