मुल्ला नसरुद्दीन मरता था तो उसने अपने बेटे को कहा कि अब मैं तुझे दो
बातें समझा देता हूं। मरने के पहले ही तुझे कह जाता हूं इन्हें ध्यान में
रखना। दो बातें हैं। एक आनेस्टी (ईमानदारी) और दूसरी है—विजडम
(बुद्धिमानी)। तो, दुकान तू सम्हालेगा, काम तू सम्हालेगा। दुकान पर तखती
लगी है आनेस्टी इज द बैस्ट पालिसी। (ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।) इसका तू
पालन करना। कभी किसी को धोखा मत देना। कभी वचन भंग मत करना। जो वचन दो,
उसे पूरा करना।
बेटे ने कहा, ‘ठीक, दूसरा क्या है? बुद्धिमानी, उसका क्या अर्थ है?’
नसरुद्दीन ने कहा, ‘ भूलकर कभी किसी को वचन मत देना।’
बस, ऐसा ही विपरीत बंटा हुआ जीवन है। ईमानदारी भी और बुद्धिमानी भी,
दोनों संभालने की कोशिश है। वचन पूरा करना ईमानदारी का लक्ष्य है। वचन कभी न
देना बुद्धिमानी का लक्ष्य है। इधर तुम चाहते हो कि लोग तुम्हें संत की
तरह पूर्जे और उधर तुम चाहते हो कि तुम पापी की तरह मजे भी लूटो। बड़ी
कठिनाई है। इधर तुम चाहते हो कि राम की तरह तुम्हारे चरित्र का गुणगान हो;
लेकिन उधर तुम रावण की तरह दूसरे की सीता को भगाने में तत्पर हो। तुम
असंभव संभव करना चाहते हो। तुम होना तो रावण जैसा चाहते हो; प्रतिष्ठा राम
जैसी चाहते हो। बस, तब तुम मुश्किल में पड़ जाते हो। तब विपरीत दिशाओं में
तुम्हारी यात्रा चलती है और अनंत तुम लक्ष्य बना लेते हो। उन सब में तुम
बंट जाते हो। टुकड़े टुकड़े हो जाते हो। जीवन के आखिर में तुम पाओगे जो भी
तुम लेकर आये थे, वह खो गया।
एक बहुत बड़ा जुआरी हुआ। बहुत समझाया पत्नी ने, परिवार ने, मित्रों ने;
लेकिन उसने सुना नहीं, धीरे धीरे सब खो गया। एक दिन ऐसी हालत आ गयी कि
सिर्फ एक रुपया घर में बचा। पली ने कहा, ‘अब तो चौंको। अब तो सम्हलो।’ पति
ने कहा, ‘जब इतना सब चला गया है और एक रुपया ही बचा है तो आखिरी मौका मुझे
और दे। कौन जाने, एक रुपये से भाग्य खुल जाए।’ जुआरी सदा ऐसा ही सोचता है।
और फिर उसने कहा कि जब लाखों चले गये, अब एक ही बचा तो अब एक के लिए क्या
रोना धोना। और एक रुपया चला ही जायेगा, कोई बचनेवाला नहीं है। लगा लेने दे
दाव पर उसे भी।
पत्नी ने भी सोचा कि अब जब सब ही चला गया, एक ही बचा है और एक कोई
टिकनेवाला वैसे भी क्या है; सांझ के पहले खत्म हो जायेगा। तो ठीक है, तू
अपनी आखिरी इच्छा भी पूरी कर।
जुआरी गया जुए के अड्डे पर। बड़ा चकित हुआ। हर बाजी जीतने लगा। एक के
हजार हुये, हजार के दस हजार हुये, दस हजार के पचास हजार हुये, पचास हजार के
लाख हो गये; क्योंकि वह इकट्ठे ही दांव पर लगाता गया। फिर उसने लाख भी लगा
दिये और कहा कि बस, अब आखिरी हल हो गया सब। और वह सब हार गया। वह घर लौटा।
पली ने पूछा, ‘क्या हुआ?’ उसने कहा कि एक रुपया भी चल गया।
क्योंकि तुम वही खो सकते हो, जो तुम लेकर आये थे। लाख की क्या बात करनी!
उसने कहा, ‘एक रुपया खो गया, कोई चिंता की बात नहीं। वह दांव खराब गया।’
पर उसने यह बात न कही कि लाख हो गये थे। ठीक ही किया; क्योंकि, जो तुम्हारे
नहीं थे, उनके खोने का सवाल भी क्या है! मरते वक्त तुम पाओगे कि जो आत्मा
तुम लेकर आये थे, वह तुम गंवाकर जा रहे हो। बस, एक खो जायेगा! बाकी तुमने
जो गंवाया, जोड़ा, मिटाया, बनाया, उसका कोई बड़ा हिसाब नहीं है; अंतिम हिसाब
में उसका कोई मूल्य नहीं। तुमने लाखों जीते हों तो भी मौत के वक्त तो वे सब
छूट जायेंगे; हिसाब एक का रह जायेगा। वह एक तुम हो। और अगर तुम उस एक में
ठहर गये तो तुम जीत गये। अगर तुम उस एक में आ गये, रम गये; उसके लिए शिव कह
रहे है: स्व में स्थिति शक्ति है।
तुम दुर्बल हो, दीन हो, दुखी हो इसका कारण यह नहीं कि तुम्हारे पास
रुपये कम है, मकान नहीं है, धन नहीं है, धन दौलत नहीं है। तुम दीन हो, दुखी
हो; क्योंकि, तुम स्वयं में नहीं हो। स्वयं में होना ऊर्जा का स्रोत
है।वहां ठहरते ही व्यक्ति महाऊर्जा से भर जाता है।
शिव सूत्र
ओशो
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