ध्यान तुम्हारे जीवन की शैली होनी चाहिए। उसका एक हिस्सा नहीं।
अन्यथा पाकर भी तुम उसे खो दोगे। यदि एक घंटे के लिए तुम निष्क्रिय हो तो
तेईस घंटे के लिए तुम सक्रिय होओगे। सक्रिय शक्तियां अधिक होंगी और
निष्क्रिय में जो तुम भी पाओगे वे उसे नष्ट कर देंगे। सक्रिय शक्तियां
उसे नष्ट कर देंगी। और अगल दिन तुम फिर वही करोगे: तेईस घंटे तुम कर्ता को
इकट्ठा करते रहोगे और एक घंटे के लिए तुम्हें उसे छोड़ना पड़ेगा। यह कठिन
होगा।
तो कार्य और कृत्य के प्रति तुम्हें दृष्टिकोण बदलना होगा।
इसीलिए यह दूसरी विधि है। कार्य को खेल समझना चाहिए, कार्य नहीं। कार्य को
लीला की तरह, एक खेल की तरह लेना चाहिए। इसके प्रति तुम्हें गंभीर नहीं
होना चाहिए। बस ऐसे ही जैसे बच्चे खेलते है। यह निष्प्रयोजन है। कुछ भी
पाना नहीं है। बस कृत्य का ही आनंद लेना है।
यदि कभी-कभी तुम खेलो तो अंतर तुम्हें स्पष्ट हो सकता है। जब
तुम कार्य करते हो तो अलग बात होती है। तुम गंभीर होते हो। बोझ से दबे होते
हो। उत्तरदायी होते हो। चिंतित होते हो। परेशान होते हो। क्योंकि परिणाम
तुम्हारा लक्ष्य होता है। स्वयं कार्य मात्र ही आनंद नहीं देता, असली
बात भविष्य में, परिणाम में होती है। खेल में कोई परिणाम नहीं होता। खेलना
ही आनंदपूर्ण होता है। और तुम चिंतित नहीं होते। खेल कोई गंभीर बात नहीं
है। यदि तुम गंभीर दिखाई भी पड़ते हो तो बस दिखावा होता है। खेल में तुम
प्रक्रिया का ही आनंद लेते हो।
कार्य में प्रक्रिया का आनंद नहीं लिया जाता। लक्ष्य, परिणाम
महत्वपूर्ण होता है। प्रक्रिया को किसी न किसी तरह झेलना पड़ता है। कार्य
करना पड़ता है। क्योंकि परिणाम पाना होता है। यदि परिणाम को तुम इसके बिना
भी पा सकते तो तुम क्रिया को एक और सरका देते और परिणाम पर कूद पड़ते।
लेकिन खेल में तुम ऐसा नहीं करोगे, यदि परिणाम को तुम बिना खेले
पा सको तो परिणाम व्यर्थ हो जाएगा। उसका महत्व ही प्रक्रिया के कारण है।
उदाहरण के लिए, दो फुटबाल की टीमें खेल के मैदान में है, बस एक सिक्का
उछाल कर वे तय कर सकते है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। इतने श्रम इतनी
लंबी प्रक्रिया से क्यों गुजरना। इसे बड़ी सरलता से एक सिक्का उछाल कर तय
किया जा सकता है। परिणाम सामने आ जाएगा। एक टीम जीत जाएगी और दूसरी टीम
हार जाएगी। उसके लिए मेहनत क्या करनी।
लेकिन तब कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। कोई मतलब नहीं रह जाएगा। परिणाम
अर्थपूर्ण नहीं है। प्रक्रिया का ही अर्थ है। यदि न कोई जीते और न कोई
हारे तब भी खेल का मूल्य है। उस कृत्य का ही आनंद है।
विज्ञान भैरव तंत्र
ओशो
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