एक सर्दी की सुबह, एक हाथी धूप ले रहा था। एक चूहा भी आकर उसके पास खड़ा
हो गया और धूप लेने लगा। चूहे ने बहुत चें चें की, हाथी के पैर पर इधर से
चोंच मारी, उधर से चोंच मारी हाथी का ध्यान आकर्षित करना चाहता था। बहुत
मेहनत करने के बाद आखिर हाथी को कुछ लगा कि कुछ चें चें, चें चें की कुछ
आवाज…नीचे झुक कर देखा, बामुश्किल चूहा दिखाई पड़ा। हाथी ने इतना छोटा
प्राणी कभी देखा नहीं था। उसने पूछा: अरे, तुम इतने छोटे! इतने छोटे प्राणी
भी होते हैं? चूहे ने कहा, माफ करिए, छोटा नहीं हूं, असल में छह महीने से
बीमार हूं। बीमारी की वजह से यह हाल हो गया है।
चूहे का भी अहंकार है। वह भी यह नहीं मान सकता कि मैं कोई हाथी से छोटा हूं।
मैंने एक कहानी और सुनी है कि एक हाथी पुल पर से गुजरा। पुल चर्र मर्र
होने लगा। लकड़ी का पुल था, चरमराने लगा। उस हाथी के सिर पर एक मक्खी भी
बैठी थी। उस मक्खी ने कहा, बेटा, हम दोनों का वजन बहुत भारी पड़ रहा है!
मक्खी भी यह मान नहीं सकती कि यह हाथी के वजन से चरमरा रहा है पुल। हम दोनों का वजन बहुत भारी पड़ रहा है!
अहंकार स्वीकार नहीं कर सकता कि मैं कमजोर हूं; कि अंगूर दूर हैं, मेरी
पहुंच के बाहर हैं। तो फिर क्या उपाय है अहंकार को अपनी रक्षा का? वैराग्य।
छोड़ ही दो। जिस संसार को पा नहीं सकते, कहो कि उसमें कुछ पाने योग्य ही
कहां है? हम तो पा सकते थे, पा ही लिया था, मगर कुछ पाने योग्य था ही नहीं।
कूड़ा करकट है सब। और ऐसा आदमी चौबीस घंटे समझाता रहेगा मंदिरों मस्जिदों
में बैठकर कि सब कूड़ा करकट है, तुमको भी समझाएगा कि सब कूड़ा करकट है, संसार
में कुछ है नहीं।
मैं तुमसे कहता हूं: संसार में परमात्मा है। गहरी खोज करनी पड़ेगी। हाथ
दूर तक फैलाने होंगे। नावें अज्ञात में ले जानी होंगी! मैं तुमसे कहता हूं:
अंगूर दूर हैं, लेकिन पाने योग्य हैं। और उन अंगूरों को पा लो तो शराब
बने। जीवन से भागने से नहीं, जीवन के स्वाद में ही असली शराब है!
सपना यह संसार
ओशो
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