... ओशो हमारे साथ
डाइनिंग टेबल पर बैठकर भोजन लेना पसंद करते हैं। सोहन सच ही बहुत बढ़िया
खाना बनाती है। सुबह के प्रवचन के बाद हम लोग 10:15 बजे के करीब घर
पहुंचते हैं। एक ही घंटे में सोहन बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ
भोजन तैयार कर लेती है। 11:30 बजे तक हम सभी लोग बीच में फूलों से सजी बड़ी
सी डाइनिंग टेबल के इर्द गिर्द बैठ जाते हैं। हर भोजन बड़ी दावत जैसा होता है। ओशो खाना खाते समय चुटकुले सुनाना पसंद करते हैं और अपने चारों ओर हंसी बिखेर देते हैं।
आज इतने सारे व्यंजन हैं कि समझ ही नहीं आ रहा कहां से शुरु, करें। सोहन
ओशो के पास खड़ी हुई है और अलग अलग डोगौ से चीजें निकालकर उन्हें परोसने
लगती है। ओशो अपने मनपसंद भोजन की प्रशंसा करने में कभी कोई कंजूसी नहीं
करते। आज, उन्हें दही बड़े बहुत अच्छे लगते हैं। वे सोहन को कहते हैं, सोहन,
दही बड़े बहुत ही स्वादिष्ट हैं।’ सोहन कहती है, इसका मतलब है बाकी की
चीजें स्वादिष्ट नहीं हैं।’ ओशो हैरानी से सोहन की ओर देखते हैं और कहते
हैं, ‘नहीं, नहीं। मेरा यह मतलब नहीं है। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूं
ताकि तू समझ सके कि मेरा क्या मतलब है।’
फिर वे यह कहानी सुनाते हैं:
मुल्ला नसरुद्दीन दो सुंदर. स्त्रियों के प्रेम में था। वह दोनों से
अलग अलग कहा करता था, तुम सबसे सुंदर हो। एक दिन दोनों स्त्रियों का आपस
में मिलना हो जाता है और उन्हें पता लगता है कि वह उन दोनों से ही बात कह
रहा है। वे दोनों इकट्ठी मुल्ला के पास जाती हैं और कहती हैं, ‘अब हमें
सच सच बताओ’, हम दोनों में से सुंदर कौन है?’ मुल्ला एक क्षण के लिए सोचकर
कहता है, तुम दोनों ही एक दूसरे से बढ़कर सुंदर हो।’
हम सब हंसते हंसते लोट पोट हो जाते हैं और ओशो कहते हैं, सोहन तेरे सारे
पकवान एक से बढ़कर एक हैं।’ सोहन को अब बात समझ आ जाती है और वह भी हंसने
लगती है।
दस हज़ार बुद्धो की सो गाथाए
ओशो
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