मैंने सुना है कि एक गांव के बहार एक फकीर रहता था। एक रात उसने
देखा की एक काली छाया गांव में प्रवेश कर रही हे। उसने पूछा कि तुम कौन हो।
उसने कहां, मैं मोत हुं ओर शहर में महामारी फैलने वाली है। इसी लिये में
जा रही हूं। एक हजार आदमी मरने है, बहुत काम है। मैं रूक न सकूँगा। महीने
भर में शहर में दस हजार आदमी मर गये। फकीर ने सोचा हद हो गई झूठ की मोत खुद
ही झूठ बोल रही है। हम तो सोचते थे कि आदमी ही बेईमान है ये तो देखो मौत
भी बेईमान हो गई। कहां एक हजार ओर मार दिये दस हजार। मोत जब एक महीने बाद
आई तो फकीर ने पूछा की तुम तो कहती थी एक हजार आदमी ही मारने है। दस हजार
आदमी मर चुके और अभी मरने ही जा रहे है।
उस मौत ने कहां, मैंने तो एक हजार ही मारे है। नौ हजार तो घबराकर
मर गये हे। मैं तो आज जा रही हूं, और पीछे से जो लोग मरेंगे उन से मेरा कोई
संबंध नहीं होगा और देखना अभी भी शायद इतनी ही मेरे जाने के बाद मर जाए।
वह खुद मर रहे है। यह आत्म हत्या है। जो आदमी भरोसा करके मर जाता है। यदि
मर गया वह भी आत्म हत्या हो गयी। ऐसी आत्मा हत्याओं पर मंत्र काम कर
सकते है ताबीज काम कर सकते है, राख काम कर सकती है। उसमें संत वंत को कोई
लेना-देना नहीं है। अब हमें पता चल गया है कि उसकी मानसिक तरकीबें है, तो
ऐसे अंधे है।
एक अंधी लड़की मुझे भी देखने को मिली,जो मानसिक रूप से अंधी है।
जिसको डॉक्टरों ने कहा कि उसको कोई बीमारी नहीं है। जितने लोग लक़वे से
परेशान है, उनमें से कोई सत्तर प्रतिशत लो लगवा पा जाते है। पैरालिसिस
पैरों में नहीं होता। पैरालिसिस दिमाग में होता है। सतर प्रतिशत।
सुना है मैंने एक घर में दो वर्ष से एक आदमी लक़वे से परेशान
है उठ नहीं सकता है, न हिल ही सकता है। सवाल ही नहीं है उठने का सूख गया
है। एक रात आधी रात, घर में आग लग गयी हे। सारे लोग घर के बाहर पहुंच गये
पर प्रमुख तो घर के भीतर ही रह गया। पर उन्होंने क्या देखा की प्रमुख तो
भागे चले आ रहे है। यह तो बिलकुल चमत्कार हो गया। आग की बात तो भूल ही
गये। देखा ये तो गजब हो गया। लकवा जिसको दो साल से लगा हुआ था। वह भागा चला
आ रहा है। अरे आप चल कैसे सकते है। और वह वहीं वापस गिर गया। मैं चल ही
नहीं सकता।
अभी लक़वे के मरीजों पर सैकड़ों प्रयोग किये गये। लक़वे के मरीज
को हिप्रोटाइज करके, बेहोश करके चलवाया जा सकता है। और वह चलता है, तो उसका
शरीर तो कोई गड़बड़ नहीं करता। बेहोशी में चलता है। और होश में नहीं चल
पाता। चलता है, चाहे बेहोशी में ही क्यों न चलता हो एक बात का तो सबूत है
कि उसके अंगों में कोई खराबी नहीं है। क्योंकि बेहोशी में अंग कैसे काम कर
रहे है। अगर खराब हो। लेकिन होश में आकर वह गिर जाता है। तो इसका मतलब साफ
है।
बहुत से बहरे है, जो झूठे बहरे है। इसका मतलब यह नहीं है कि उनको
पता नहीं है क्योंकि अचेतन मन ने उनको बहरा बना दिया है। बेहोशी में सुनते
है। होश में बहरे हो जाते है। ये सब बीमारियाँ ठीक हो सकती है। लेकिन
इसमें चमत्कार कुछ भी नहीं है। चमत्कार नहीं है, विज्ञान जो भीतर काम कर
रहा है। साइकोलाजी, वह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। आज नहीं कल, पूरी तरह
स्पष्ट हो जायेगा और तब ठीक ही बातें हो जायें।
आप एक साधु के पास गये। उसने आपको देखकर कह दिया,आपका फलां नाम
है? आप फलां गांव से आ रहे है। बस आप चमत्कृत हो गये। हद हो गयी। कैसे पता
चला मेरा गांव, मेरा नाम, मेरा घर? क्योंकि टेलीपैथी अभी अविकसित विज्ञान
है। बुनियादी सुत्र प्रगट हो चुके है। अभी दूसरे के मन के विचार को पढ़ने
कि साइंस धीरे-धीरे विकसित हो रही है। और साफ हुई जा रही है। उसका सबूत है,
कुछ लेना देना नहीं है। कोई भी पढ़ सकेगा,कल जब साइंस हो जायेगी, कोई भी
पढ़ सकेगा। अभी भी काम हुआ है। और दूसरे के विचार को पढ़ने में बड़ी आसानी
हो गयी हे। छोटी सी तरकीब आपको बता दूँ, आप भी पढ़ सकते है। एक दो चार दिन
प्रयोग करें। तो आपको पता चल जायेगा, और आप पढ सकते है। लेकिन जब आप खेल
देखेंगे तो आप समझेंगे की भारी चमत्कार हो रहा है।
एक छोटे बच्चे को लेकर बैठ जायें। रात अँधेरा कर लें। कमरे में।
उसको दूर कोने में बैठा लें। आप यहां बैठ जायें और उस बच्चे से कह दे कि
हमारी तरफ ध्यान रख। और सुनने की कोशिश कर, हम कुछ ने कुछ कहने की कोशिश
कर रहे है। और अपने मन में एक ही शब्द ले लें और उसको जोर से दोहरायें।
अंदर ही दोहरायें, गुलाब, गुलाब, को जोर से दोहरायें, गुलाब, गुलाब,
गुलाब…….दोहरायें आवाज में नहीं मन में जोर से। आप देखेंगे की तीन दिन में
बच्चे ने पकड़ना शुरू कर दिया। वह वहां से कहेगा। क्या आप गुलाब कह रहे
है। तब आपको पता चलेगा की बात क्या हो गयी।
जब आप भीतर जोर से गुलाब दोहराते है। तो दूसरे तक उसकी विचार
तरंगें पहुंचनी शुरू हो जाती है। बस वह जरा सा रिसेप्टिव होने की कला
सीखने की बात है। बच्चे रिसेप्टिव है। फिर इससे उलट भी किया जा सकता है।
बच्चे को कहे कि वह एक शब्द मन में दोहरायें और आप उसे तरफ ध्यान रखकर,
बैठकर पकड़ने की कोशिश करेंगें। बच्चा तीन दिन में पकड़ा है तो आप छह दिन
में पकड़ सकते है। कि वह क्या दोहरा रहा है। और जब एक शब्द पकड़ा जा सकता
है। तो फिर कुछ भी पकड़ा जा सकता है।
हर आदमी के अंदर विचार कि तरंगें मौजूद है, वह पकड़ी जा रही है।
लेकिन इसका विज्ञान अभी बहुत साफ न होने की वजह से कुछ मदारी इसका उपयोग कर
रह है। जिनको यह तरकीब पता है वह कुछ उपयोग कर रहे है। फिर वह आपको
दिक्कत में डाल देते है।
यह सारी की सारी बातों में कोई चमत्कार नहीं है। न चमत्कार कभी पृथ्वी पर हुआ नहीं। न कभी होगा। चमत्कार सिर्फ एक है कि अज्ञान है, बस और कोई चमत्कार नहीं है। इग्नोरेंस हे, एक मात्र मिरेकल है। और अज्ञान में सब चमत्कार हिप्नोटिक होते रहते हे। प्रत्येक चीज का कार्य है, कारण है, व्यवस्था है। जानने में देर लग सकती है। जिस दिन जान जी जायेगी उस दिन हल हो जायेगी उस दिन कोई कठिनाई नहीं रह जायेगी।
भारत के जलते प्रश्न
ओशो
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