सत्यानंद भारती, सब तुम पर निर्भर है। इस जगत की कोई परिस्थिति
निर्णायक नहीं होती, निर्णायक होती है तुम्हारी मनःस्थिति। समझदार तो नर्क
में भी परमात्मा को खोज लेते, और नासमझ स्वर्ग में भी उसे भूल जाते। सब
तुम पर निर्भर है।
सुकरात को किसी ने पूछा था कि मैं क्या करूं, शादी करूं या न करूं? और
आपसे पूछने आया हूं और बड़ी दूर से पूछने आया हूं। क्योंकि सुकरात निश्चित
ही अनुभवी था। शादी जिस स्त्री से हुई थी, पहुंची हुई स्त्री थी! सुकरात को
ऐसा सताया! और कुछ न कुछ कारण तो सुकरात भी था। आखिर दार्शनिक पति के साथ
रहना कोई आसान खेल नहीं है। सुकरात तो खोया रहता जीवन के रहस्यों में,
पत्नी का उसे होश कहां था! तो पत्नी कुढ़ती होगी, नाराज होती होगी, परेशान
होती होगी। पत्नीर् ईष्या करती होगी इस दर्शनशास्त्र से। दर्शनशास्त्र तो
उसे सौतेली पत्नी जैसा ही मालूम होता होगा कि सुकरात दर्शनशास्त्र में
ज्यादा उत्सुक है, मुझमें कम। बैठता भी होगा पत्नी के पास तो सोचता तो होगा
आकाश की। तो एकदम पत्नी का ही कसूर था, ऐसा कहना भी ठीक नहीं।
लेकिन पत्नी भी पहुंची हुई थी! सुकरात जैसे अदभुत व्यक्ति को भी उसने
बहुत सताया। एक बार तो लाकर उबलती हुई केतली चाय की भरी सुकरात के ऊपर
उंडेल दी। क्योंकि वह अपने शिष्यों से बात कर रहा था, चाय बनकर तैयार थी और
वह तीन बार बुला चुकी थी कि अब आ भी जाओ, चाय पी भी लो, ठंडी हुई जा रही
है। जब सुकरात अपने शिष्यों से बातचीत में लगा ही रहा और आया ही नहीं, आया
ही नहीं, तो फिर उसने चाय ठंडी नहीं होने दी! फिर गर्म ही चाय लाकर उसके
ऊपर उंडेल दी। कि अब ऐसे नहीं पीते, तो ऐसे पीओ। सुकरात का चेहरा सदा के
लिए आधा जल गया सो आधा जला रहा, काला हो गया था। लेकिन सुकरात चुपचाप, कुछ
बोला नहीं। पत्नी तो चली गई, क्रोध में, चाय उंडेल कर, सुकरात ने जहां बात
टूट गई थी, वहीं से बात शुरू कर दी। एक शिष्य ने पूछा, आप कुछ कहेंगे नहीं,
यह पत्नी ने जो दुर्व्यवहार किया? सुकरात ने कहा, उसका कृत्य, वह जाने। वह
सोचे। मेरा क्या लेना देना है? और आधा चेहरा काला हो गया, इससे मेरी खोज
में कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। और परमात्मा मुझे कुछ इस कारण इनकार नहीं कर
देगा। गौण है, विचारणीय नहीं है।
मगर तुम खयाल रखना, जो पति इतना ज्यादा निरपेक्ष हो कि पत्नी उस पर चाय
भी उंडेल दे और वह कुछ न बोले, तो पत्नी और आगबबूला न हो जाए तो क्या करे?
असहाय!
तो उस युवक ने कहा कि आपसे पूछने आया हूं, आप अनुभवी हैं, शादी करूं या
नहीं? सुकरात ने कहा, करो तो अच्छा! उस युवक ने कहा, आप कहते हैं करो तो
अच्छा! मैं तो इस आशा में आया था कि आप निश्चित कहेंगे कि मत करो। मैं करना
नहीं चाहता, सिर्फ आपका प्रमाणपत्र लेने आया था कि अपने मां बाप को कह
सकूं। आप क्या कहते हैं!
सुकरात ने कहा, इसलिए, कि अगर पत्नी अच्छी मिली,
तो जीवन में सुख जानोगे, संगीत जानोगे, प्रेम जानोगे, रस जानोगे। और रस,
प्रेम, संगीत, उत्सव जीवन की गहराइयों में जाने के द्वार हैं। और अगर मेरे
जैसी पत्नी मिल गई मेरी पत्नी अदभुत है अगर मेरी जैसी पत्नी मिल गई तो
वैराग्य का उदय होगा। वैराग्य भी परमात्मा को पाने का एक उपाय है। राग से
भी उसी तरफ जाते लोग राग में डुबकी मार लेते, परमात्मा को पाने का वह भी
एक मार्ग है और वैराग्य से भी लोग जाते हैं। पत्नी बुरी मिली तो भी अच्छा,
अच्छी मिली तो भी अच्छा।
सत्यानंद, तुम पर निर्भर है। बिना पत्नी के भी लोग परेशान हैं। पत्नी के
साथ भी लोग परेशान हैं। पत्नी हो, तो भी नहीं चलता, पत्नी न हो, तो भी
नहीं चलता। लोगों के चित्त ऐसे हैं कि जो हो, वही व्यर्थ मालूम होता है।
इसलिए शादीशुदा सोचता है, धन्य हैं वे जिनकी शादी नहीं हुई। और
गैर शादीशुदा सोचता है, कब सौभाग्य मिलेगा कि शादी हो जाए! यह दुनिया बड़ी
अदभुत है! यहां हर आदमी सोच रहा है कि दूसरा मजा कर रहा है।
मुल्ला नसरुद्दीन की बीबी गुलजान ने एक दिन बताया कि हमारे पड़ोसी पंडित
मटकानाथ ब्रह्मचारी ने नर्कों की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, शासन व्यवस्था और
नर्कों के प्रकार, कोटियां तथा दंड विधान इत्यादि विषयों पर एक विवरणात्मक
सचित्र किताब लिखी है। नसरुद्दीन ने कहा, सब झूठ है, बकवास है। गुलजान
बोली, एकदम से तुम यह कैसे कह सकते हो? हो सकता है सच ही हो। फिर तुमने
किताब भी नहीं पढ़ी। मुल्ला बोला, कभी सच नहीं हो सकता! अरे, उस कायर ने
शादी तक नहीं की, नर्कों के बारे में वह क्या जाने समझे!
कायरता के कारण अगर शादी से बचे, तो बच न पाओगे। शादी कहीं पीछे के
दरवाजे से आ जाएगी। कायर तो बच ही नहीं सकता। समझ बचा सकती है। लेकिन समझ
कहां से लाओगे? मैं तो कह दूं कि न करो शादी, लेकिन वह मेरी समझ हुई।
तुम्हारी समझ कैसे बनेगी? और मैं ऐसी भूल न करूंगा कि तुमसे कहूं: न करो
शादी; क्योंकि तुम जिंदगी भर फिर मुझे गाली दोगे! कि अहा, प्रत्येक व्यक्ति
मजा लूट रहा है, एक हम मूढ़ ब्रह्मचारी हुए बैठे हैं! किस अशुभ घड़ी में
प्रश्न पूछ बैठे!
अगर मैं कहूं, कर लो शादी, तो भी मुश्किल। क्योंकि तब भी तुम जिंदगी भर
मुझे गाली दोगे। जब भी पत्नी को देखोगे, तभी मेरी याद आएगी। कि न पूछा होता
प्रश्न, न फंसते इस झंझट में।
तुमने मुझे मुश्किल में डाल दिया। शादी का मामला ही ऐसा है। करने वाले तो ठीक, इस संबंध में उत्तर तक देना बड़ी झंझट का काम है!
नसरुद्दीन की पत्नी मरणशय्या पर थी। नसरुद्दीन छाती पीट पीटकर कह रहा
था, ऐ गुलजान, तेरे मरते ही मैं पागल हो जाऊंगा। सच कहता हूं, बिलकुल पागल
हो जाऊंगा। गुलजान ने आंखें खोलीं, वह बोली, मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती
हूं, मैं आज मरी और कल तुम दूसरी शादी कर लोगे; क्यों झूठ बोलते हो? मुल्ला
ने तैश में आकर कहा, क्या बात कहती हो, गुलजान? मैं पागल जरूर हो जाऊंगा,
मगर इतना नहीं कि दूसरी शादी कर लूं!
अच्छा हो तुम खुद ही सोचो विचारो। पत्नियों के लाभ भी हैं, नुकसान भी
हैं। पतियों के लाभ भी हैं, नुकसान भी हैं। इस जिंदगी में कोई परिस्थिति
ऐसी नहीं है जो एक पहलू वाली हो।
अमरीका के एक करोड़पति एन्ड्रु कारनेगी से किसी ने पूछा कि आप इतने
करोड़पति कैसे हो सके? गरीब घर में पैदा हुए और दुनिया के सबसे बड़े धनपति
होकर मरे एन्ड्रु कारनेगी। मरे तो दस अरब नगद रुपए छोड़ गए थे बैंक में।
किसी ने पूछा कि आप को ऐसी कौन सी बात थी, जिसने पागल की तरह धन की दौड़ में
लगा दिया? एन्ड्रु कारनेगी ने कहा कि मैंने किसी को यह बात बताई नहीं,
लेकिन अब मरने के करीब मैं बता सकता हूं अब डर भी क्या? मगर तुम से मेरा
एक निवेदन है कि मेरे मरने के बाद ही लोगों को बताना।
कम से कम मेरी पत्नी
को खबर न हो। वह आदमी बोला, मामला क्या है? वह पास सरक आया, उसने कहा कि
मेरे कान में कहें, बिलकुल सम्हाल कर रखूंगा, जब आप चले जाएंगे तभी प्रगट
करूंगा। उसके कान में फुसफुसाकर एन्ड्रु कारनेगी ने कहा कि मैं असल में धन
की दौड़ में इसलिए पड़ा कि मैं देखना चाहता था कि क्या ऐसी भी कोई धन की
अवस्था हो सकती है, जिससे मेरी पत्नी तृप्त हो जाए? मगर नहीं, इतना धन है
मगर मैं पत्नी को तृप्त नहीं कर पाया। यह सिर्फ एक जानकारी के लिए मैं
कोशिश में लगा था कि क्या ऐसा कुछ हो सकता है, इतना धन भी हो सकता है क्या
कि मेरी पत्नी तृप्त हो जाए? मगर मैं हार गया। पत्नी तृप्त नहीं हुई सो
नहीं हुई। मगर एक फायदा रहा कि मैं दुनिया का सबसे बड़ा अरबपति हो गया।
फिर पत्नियों पत्नियों में भी भेद है।
सुना है, ढब्बू जी की पत्नी ने उन्हें शादी के एक साल अंदर ही लखपति बना
दिया। अच्छा, यह ढब्बू जी कौन है, भाई? बड़े सौभाग्यशाली हैं! क्या उन्हें
बहुत ज्यादा दहेज मिला था? नहीं, दहेज तो कुछ नहीं मिला। तो क्या उनकी बीबी
के नाम कोई लाटरी फंस गई? नहीं। अच्छा तो फिर मैं समझा, शायद उनकी बीबी का
कोई रिश्तेदार मरते समय उनके नाम वसीयत लिख गया होगा! अरे, नहीं भाई,
ढब्बू जी की बीबी ने स्वयं ही खून पसीना एक करके उन्हें एक साल में लखपति
बना दिया; एक साल पहले वह करोड़पति थे।
पत्नियों पत्नियों में भी भेद है।
इसलिए पता नहीं, सत्यानंद, कैसी पत्नी की तुम तलाश कर रहे हो कैसी
पत्नी तुम्हारी तलाश कर रही है? किस जाल में फंसोगे, कुछ साफ नहीं है। मगर
इतना मैं तुमसे कहूंगा, कि पूछते हो प्रश्न, इसलिए मन में कहीं न कहीं
आकांक्षा होगी। नहीं तो पूछते ही नहीं।
मैं रायपुर में था, एक युवक ने आकर मुझसे पूछा ठीक वही सुकरात वाली
कहानी घटी उसने मुझसे पूछा थोड़ासा फर्क था प्रसंग में, संदर्भ में उसने
पूछा कि मैं शादी करूं या नहीं? मैंने कहा, तुम जरूर करो! उसने कहा, मैं
तो आपके पास आया था इसलिए कि आप निश्चित कहेंगे कि मत करो। अगर शादी करना
ठीक है तो आपने क्यों नहीं की? तो मैंने उससे कहा कि मैं कभी किसी से पूछने
नहीं गया उलटे लोग मुझे समझाने आते थे, कि कर लो!
एक वकील तो मेरे इतने पीछे पड़ गए थे, कि उन्होंने अपनी सारी वकालत की
समझदारी ही एक काम में लगा दी, जैसे उनकी जिंदगी में यही एक कर्तव्य था जो
उन्हें पूरा करना था। सुबह सांझ, बस आकर बैठ जाएं, घंटों। मैंने उनसे कहा
भी कि यह कोई आपके जीवन का लक्ष्य है, कि मेरी शादी? आखिर मैंने आपका क्या
बिगाड़ा? किन जन्मों का फल चुका रहे हो? क्यों इतना समय जाया करते हो? मैं
कोई आपका मुवक्कल हूं, क्या हूं, मामला क्या है? सुबह शाम आपको चैन ही नहीं
पड़ती। आप शादी करके कोई मुसीबत में पड़ गए हो बात क्या है? मुझे भी फंसाना
है! क्योंकि अक्सर ऐसा हो जाता है, जिसकी पूंछ कट जाती है, वह दूसरे की
कटवाना…मामला क्या है? एकाध दफे कह दिया, चलो समझ में आ जाता है, मगर यह
नियमित क्रम बन गया कि सुबह मैं उठा नहीं कि आप मौजूद हैं! शाम मैं कालेज
से लौटा नहीं कि आप पहले से ही आकर बैठे हैं! अदालत वगैरह जाते हैं कि
नहीं? और भी कोई धंधा करते हैं कि बस यही धंधा है? मगर उनने जिद्द बांध रखी
थी। उनके अहंकार…वह बड़ी बड़ी दलीलें खोजकर लाते थे: क्यों शादी करनी? शादी
करने में क्या फायदा? क्या लाभ? क्या क्या परिणाम?
मैंने उनसे कहा कि देखें; आप वकील हैं, आप समझ सकते हैं। एक मजिस्ट्रेट
को और कल बुला लाएं, एक दफा इसका निपटारा हो जाए। तो उन्होंने कहा,
मजिस्ट्रेट इसमें क्या करेगा? मैंने कहा, मजिस्ट्रेट इसमें यह करेगा, कि
उसे निर्णय देना होगा कि कौन जीता? आप शादी के पक्ष में दलीलें दें, मैं
विपक्ष में दलीलें दूंगा। और मजिस्ट्रेट जो निर्णय दे दे! अगर उसने कह दिया
कि शादी करनी उचित, तो मैं शादी करूंगा। अगर उसने कह दिया शादी करनी उचित
नहीं, तो तुम्हें तलाक देना पड़ेगा। बस उस दिन से वह जो नदारद हुए......
तो फिर
मैं सुबह शाम उनके घर जाने लगा! आखिर उनकी पत्नी ने कहा, मैं हाथ जोड़ती
हूं, वह आपकी वजह से सुबह शाम घर नहीं आते! आखिर क्यों मेरे पति के पीछे
पड़े हैं? उन्होंने आपका क्या बिगाड़ा है? आपको कोई दूसरा काम नहीं है? वह
एकदम सुबह जल्दी से उठ कर घर से निकलने लगते हैं, कि वह आते ही होंगे! और
शाम को भी बाहर से आकर देख लेते हैं कि आप बैठे तो नहीं, नहीं तो आगे बढ़
जाते हैं। क्यों हमारा जीवन तहस नहस किए दे रहे हैं?
तो मैंने उस युवक को कहा कि मैं तो किसी से पूछने कभी गया नहीं। तुम
मुझसे पूछने आए हो, पूछना ही बताता है कि अच्छा यही होगा कि तुम अनुभव से
गुजरो। अनुभव के अतिरिक्त और कोई उत्तर नहीं है।
सत्यानंद, तुम पूछते हो: मेरी शादी होने वाली है। मामला लगता है तय ही
हो गया है। ऐसे भी बहुत देर हो चुकी। इससे मेरी सत्य की खोज कुंठित होगी या
इससे सहयोग मिलेगा? तुम पर निर्भर है। सत्य की खोज कुंठित भी हो सकती है,
सहयोग भी मिल सकता है। मगर तुम शादी करो। कम से कम मुझे एक संन्यासिनी
मिलेगी, और जो होगा हो! तुम अपनी फिक्र करो, मैं अपनी फिक्र करता हूं!
सपना यह संसार
ओशो
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