तुम्हारा परमात्मा तुम्हारा ही प्रतिबिंब है। जब तक तुम हो तब तक
तुम्हारा परमात्मा तुम्हारी ही छाया होगा। तुम्हारे मंदिरों में तुम्हारी
ही मूर्तिया विराजमान हैं, क्योंकि तुमने उन मूर्तियों को अपनी ही कल्पना
में गढ़ा है। तुम्हारी मस्जिदों में तुम्हारी ही प्रार्थनाएं की जा रही
हैं-तुम्हारे ही द्वारा। और तुम्हारे चर्चों में तुम अपने ही सामने, अपने
ही प्रतिबिंबों के सामने घुटने टेके खड़े हो।
जब तक ‘मैं ‘ शेष है तब तक तुम जो भी करोगे उसमें भ्रांति कायम रहेगी।
एक ही सूत्र है-परम सूत्र : ‘मैं ‘ को विदा कर दो! शून्य हो जाओ, रिक्त हो
जाओ।
घबड़ाहट होगी रिक्तता में बहुत, बेचैनी होगी बहुत, डर लगेगा बहुत। लगेगा
के मृत्यु हो गई। मृत्यु हो गई। मृत्यु है भी वह। अहंकार की
मृत्यु-महामृत्यु है! लेकिन उसी मृत्यु में महा-जीवन का अवतरण होता है।
धन्य हैं वे जो अहंकार की दृष्टि से मर जाते हैं, क्योंकि उनके जीवन में परमात्मा उतरता है।
तुम जब तक हो, परमात्मा नहीं है। तुम जहां नहीं वहां परमात्मा है। तुम
खो जाओ तो परमात्मा मिल जाये। तुम बने रहो तो परमात्मा खोया रहेगा।
परमात्मा का पाना सहज है। पहले पाने की गहन आकांक्षा करो, फिर पाने की आकांक्षा छोड़ दो!
दुनिया में दो तरह के लोग हैं। मेरी बात को सुनकर एक तो वे हैं, जो
कहेंगे : मिलेगा। और दूसरे वे हैं, जो कहते हैं : जब आकांक्षा को करना ही
है पूरा-पूरा, तो फिर छोड़ना क्या, छोड़ना क्यों? उनको भी परमात्मा नहीं
मिलेगा।
परमात्मा का गणित जरा दुरूह है। पहले जकड़ों पूरा-पूरा। और पकड़ो इसलिए कि
छोड़ सको। पकड़ो इतना पूरा-पूरा के कुछ कंजूसी न रह जाये। और तब छोड़ दो और
हाथ खाली हो जाने दो। और तुम चकित हो जाओगे, विस्मयविमुग्ध-रस का सागर तुम
में उतर आयेगा!
बूंद ही सागर में नहीं गिरती, सागर भी बूंद में गिरता है-लेकिन उस बूंद
में सागर गिरता है जो शून्य में नहीं गिरती, सागर को समा पायेगी; नहीं तो
छोटी-सी बूंद सागर को कैसे समायेगी?
संतोष, अभी तुम बूंद हो- भरी- भरी! खाली हो जाओ। सागर फिर तुम्हारा है। फिर कोई रुकावट नहीं है।
खाली होना सूत्र है। शून्य होना सूत्र है। शून्य होना साधना है। और जो
शून्य है वह पूर्ण होकर विद्ध हो जाता है। शून्य होना साधना है-पूर्णता
सिद्धि है।
हंसा तो मोती चुने
ओशो
हंसा तो मोती चुने
ओशो
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