..... हरिद्वार गए। वहां देखा कि लोग पित्र पूजा
कर रहे हैं। लोग एक कुएं पर पानी भर कर और पितरों को चढ़ा रहे हैं। वे भी
एकदम से कुएं पर पहुंचे, किसी से बालटी मांगी, भरा पानी और पास ही कुएं के
डाला और कहा: पहुंच मेरे खेत में! भीड़ इकट्ठी हो गई कि यह क्या मामला है?
खेत कहां? दूसरी बाल्टी, तीसरी बाल्टी…जब वे भरते ही गए तो लोगों ने कहा,
भाई रुको, तुम्हारा खेत कहां है? खेत तो मेरा पंजाब में है। तो तुम होश में
हो? हरिद्वार की सड़क पर पानी डाल रहे हो और पंजाब के खेत पर पहुंचेगा!
उन्होंने कहा, यह मुझे पहले मालूम ही नहीं था। जब मर गए पित्रों तक पहुंच
रहा है तुम्हारे पित्र कहां हैं? कोई नर्क में होगा…ज्यादातर तो नर्क में
ही होंगे, कोई एकाध स्वर्ग में पहुंच गया होगा…जब वहां तक पहुंच रहा है
पानी, तो पंजाब तो कोई बहुत दूर नहीं है। मैं तो तुम्हारी इस अदभुत कला को
देखकर सोचा कि यह तो खूब मजे की रही! अब पंजाब जाने की जरूरत भी नहीं। नहीं
तो जाना पड़ता है बार बार। अब जहां रहे वहीं से डाल देंगे।
नानक याद दिला रहे हैं उन्हें कि तुम क्या मूढ़ता कर रहे हो! सारे संत
तुम्हें याद दिलाते रहे हैं कि तुम जोर कर रहे हो धर्म के नाम पर, मूढ़ता
है। लेकिन लोग क्यों कर रहे हैं? लोकलाजवश। और सब लोग कर रहे हैं, न करो,
अच्छा नहीं लगता। लोग पूछते हैं, क्यों, तुमने क्यों नहीं किया? लोग चाहते
हैं कि तुम ठीक उनकी कार्बनकापी रहो। वे तुम्हें मौलिक व्यक्तित्व नहीं
देना चाहते। तुम उनसे अलग थलग खड़े होओ, लोग बर्दाश्त नहीं करते। लोग चाहते
हैं, जैसा वे करें, वैसा तुम करो। ताजिया उठाएं तो ताजिया उठाओ। छाती
पीटें—याऽअलेऽऽयाऽअलेऽऽ, तो तुम भी छाती पीटो: याऽअलेऽऽयाऽअलेऽऽ…।
जो लोग
करें, वही तुम करो; तो लोग प्रसन्न होते हैं। क्योंकि तुम उनका समर्थन कर
रहे हो। समर्थन से क्यों प्रसन्न होते हैं? क्योंकि उन्हें भी शक है कि वे
जो कर रहे हैं, वह सच है कि नहीं? जितना समर्थन मिलता है, उतना ही उनको
ढाढ़स बंधता है कि ठीक ही होगा, जब तो इतने लोग कर रहे हैं। अगर ठीक न होता
तो इतने लोग कैसे करते? उनके पास सत्य का कोई अनुभव तो नहीं है। उनके पास
सत्य के लिए सिर्फ एक ही आधार है अधिक लोग कर रहे हों; जब इतने लोग कर रहे
हैं तो सभी मूढ़ तो नहीं हो सकते। अपने मन में वे सोचते हैं: हो सकता है मैं
मूढ़ हूं, मैं नासमझ हूं, मैं अज्ञानी, मगर सारी दुनिया तो अज्ञानी नहीं
है। जब इतने लोग कर रहे हैं तो ठीक ही कर रहे होंगे। और मजा यह है कि ऐसा
ही बाकी लोग भी सोच रहे हैं।
सपना यह संसार
ओशो
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