यह ध्यान विधि ओशो द्वारा
अविष्कृत है। दुनियाभर में इस ध्यान विधि की धूम है। बहुत से धार्मिक और
योग संगठन अब इस ध्यान विधि को थोड़ा सा बदलकर नए नाम से कराते हैं और
उन्होंने इसके माध्यम से करोड़ों रुपए का व्यापार खड़ा कर रखा है।
एक घंटे की अवधि के सक्रिय ध्यान के पांच चरण हैं। यह अकेले भी किया
जा सकता है। और यदि इसे समूह में किया जाये तो यह और भी सशक्त हो जाता है।
यह आपका निजी अनुभव है अत: आप अपने आस-पास दूसरे व्यक्तियों को भूल जायें
और पूरा समय आँखें बंद रखें। बेहतर होगा यदि आप आँख पर पट्टी बांध लें। इसे
खाली पेट व ढीले वस्त्रों में करना श्रेयस्कर होगा।
“इस
ध्यान में आपको पूरा समय सजग, होशपूर्ण व सचेत रहना होगा। साक्षी बनें
रहें। भटक मत जायें। जब आप तीव्र श्वास ले रहे हैं तो संभव है आप भूल जायें
- श्वास के साथ इतना तादात्मय कर लें कि साक्षी होना भूल जायें। तब आप चूक
गये।
“तीव्र से तीव्र श्वास लें, गहरे से गहरा;
अपने पूरे प्राण लगा दें। जो भी घट रहा है उसे ऐसे देखें जैसे आप मात्र
दर्शक हैं, जैसे यह सब किसी और को घट रहा हो, जैसे यह सब शरीर में घट रहा
हो। चेतना के केंद्र पर साक्षी बनें रहें।
“साक्षी
को तीनों चरणों तक लेकर जाना है और जब सब रुक जाता है तो चौथे चरण में आप
पूर्णतया शिथिल हो जाते हैं, थम जाते हैं और आपकी सजगता अपने चरम शिखर को
छू लेती है।”
प्रथम चरण : 10 मिनट
नाक
से अराजक श्वास लें और ज़ोर हमेशा श्वास बाहर फेंकने पर हो। शरीर स्वयं
श्वास भीतर लेने की चिंता ले लेगा। श्वास फेफड़ों तक गहरी जानी चाहिये।
श्वास जितनी शीघ्रता से ले सकें, लें और ध्यान रहे कि श्वास गहरी रहे। इसे
यथाशक्ति अपनी अधिकतम समग्रता से करें - और फिर थोड़ी और शक्ति लगायें, जब
तक कि आप वस्तुत: श्वास ही न हो जाएं। ऊर्जा को ऊपर ले जाने के लिये अपनी
स्वाभाविक दैहिक क्रियाओं को प्रयोग में लायें। ऊर्जा को बढ़ता हुआ अनुभव
करें परंतु पहले चरण में अपने को ढीला मत छोड़ें।
दूसरा चरण : 10 मिनट
विस्फोट
हो जाएं! उस सब को अभिव्यक्त करें जो बाहर फेंकने जैसा है। पूर्णतया पागल
हो जायें। चीखें, चिल्लाएं, रोएं, कूदें, शरीर हिलायें-डुलायें, नाचें,
गाएं, हंसें; स्वयं को खुला छोड़ दें। कुछ भी न बचाएं; अपने पूरे शरीर को
प्रवाहमान होने दें। कई बार थोड़ा सा अभिनय भी आपको खुलने में सहायता देता
है। जो भी हो रहा है उसमें मन को हस्तक्षेप करने की अनुमति न दें। समग्र हो
रहें, पूरे प्राण लगा दें, जान लगा दें।
तीसरा चरण: 10 मिनट
पूरा
समय अपने बाजू ऊपर उठा कर रखें और जितनी गहराई से संभव हो "हू! हू! हू!"
की ध्वनि करते हुए ऊपर नीचे कूदें । प्रत्येक बार जब आपके पांव धरती पर
आयें तो पूरे पांव के तलवे को धरती को छूने दें, ताकि ध्वनि आपके
काम-केंद्र पर गहराई से चोट कर सके। आप अपना सर्वस्व लगा दें, कुछ भी पीछे
बचायें नहीं।
वीडियो में आप तीसरे और चौथे चरण की झलक देख पाते हैं।
चौथा चरण: 15 मिनट
रुक
जायें! जहाँ भी, जिस स्थिति में भी स्वयं को पायें, उसी में स्थिर हो
रहें। शरीर को किसी तरह से भी संभालें नहीं। खांसी अथवा कोई भी क्रिया -
कुछ भी, आपकी ऊर्जा की गति में बिखराव ले आयेगा और आपका अब तक का पूर्ण
प्रयास व्यर्थ चला जायेगा। जो भी आपके साथ घट रहा है उसके प्रति साक्षी
रहें।
डैमो देखें: ऊपर तीसरे चरण की वीडियो झलक देखें।
पांचवां चरण: 15 मिनट
अस्तित्व के प्रति अपना अनुग्रह प्रगट करते हुए नृत्य करें, उत्सव मनायें। इस अनुभव को दिन भर की अपनी चर्या में फैलने दें।
यदि
उस स्थान पर जहाँ आप ध्यान कर रहे हैं, शोर करना मना है तो इसे चुपचाप
करने का विकल्प इस प्रकार है: आवाजों को बाहर फेंकने की बजाय दूसरे चरण में
अपना रेचन शारीरिक मुद्राओं द्वारा करें। तीसरे चरण में “हू” ध्वनि की चोट
अपने भीतर ही करें।
ओशो
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