मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने बाल बनवाने एक नाई की दूकान पर
गया है। दाढ़ी पर साबुन लगा दी गई है, गले में कपड़ा बांध दिया गया है–और नाई
बिलकुल तैयार ही है काम शुरू करने को कि एक लड़का भागा हुआ आया और उसने
कहा “शेख, तुम्हारे घर में आग लगी है।’ नसरुद्दीन ने कपड़ा फेंका, भूल गया
अपना कोट उठाना भी, चेहरे पर लगी हुई साबुन, और उस लड़के के पीछे भागा
घबड़ाकर। लेकिन पचास कदम के बाद अचानक ठहर गया, और कहा कि “मैं भी कैसा पागल
हूं! क्योंकि पहले तो मेरा नाम शेख नहीं, मेरा नाम मुल्ला नसरुद्दीन है;
और दूसरा, मेरा कोई मकान नहीं जिसमें आग लग जाये!’
ऐसे क्षण आपके जीवन में भी हैं। आपको भी न तो अपने नाम का पता है और न
अपने घर का पता है। न तो आपको पता है कि आप कौन हैं और न आपको पता है कि आप
कहां से आते हैं और कहां जाते हैं। न आप अपने मूल स्रोत से परिचित हैं और न
अपने अंतिम पड़ाव से और नाम जो आप जानते हैं कि आपका है, वह बिलकुल काम
चलाऊ है, दिया हुआ है। राम की जगह कृष्ण भी दिया जाता, तो भी चल जाता काम।
कृष्ण की जगह मोहम्मद दिया जाता, तो भी चल जाता काम। नाम दिया हुआ है, नाम
कोई अस्तित्व नहीं है।
लेकिन इस झूठे नाम को हम मानकर जी लेते हैं कि मैं
हूं। और एक घर बना लेते हैं, जो कि घर नहीं है। क्योंकि जो छूट जाये, उसे
घर कहना व्यर्थ है। और जिसे बनाना पड़े, वह मिटेगा भी।
उस घर की तलाश ही
धर्म की खोज है, जो हमारा बनाया हुआ नहीं है और जो मिटेगा भी नहीं। और जब
तक हम उस घर में प्रविष्ट न हो जायें जिसे महावीर “मोक्ष’ कहते हैं; जिसे शंकराचार्य “ब्रह्म’ कहते हैं; जिसे जीसस ने “किंगडम आफ गाड’ कहा है जब तक उस घर
में हम प्रविष्ट न हो जायें तब तक जीवन एक बेचैनी और एक दुख की एक यात्रा
रहेगी।
महावीर वाणी
ओशो
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