साक्रेटीज के पास अगर कोई पूछने जाता था, तो फिर दुबारा पूछने नहीं जाता
था। क्यों? क्योंकि साक्रेटीज उत्तर तो देता ही नहीं था। आप पूछकर अगर फंस
बैठे, तो आपसे इतने प्रश्न पूछता था कि दुबारा आप कभी उस रास्ते नहीं
निकलते, जहां साक्रेटीज रहता है। साक्रेटीज को एथेंस के लोगों ने जहर दिया,
उसमें सबसे बड़ा कारण यही था कि साक्रेटीज ने एथेंस के हर आदमी को अज्ञानी
सिद्ध कर दिया था, प्रश्न पूछ-पूछकर।
अगर आप पूछते कि ईश्वर है? तो साक्रेटीज पहले पूछता, ईश्वर से आपका क्या
अर्थ है? अब आप फंसे। आप कहेंगे, अर्थ ही मालूम होता, तो हम पूछते ही
क्यों? साक्रेटीज कहता है, जिस शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम, उसका तुम
प्रश्न कैसे बनाओगे?
एथेंस के एक-एक आदमी को उसने उलझन में डाल दिया था। आखिर एथेंस गुस्से
में आ गया। उस नगर ने कहा कि यह आदमी इस तरह का है कि जवाब तो देता नहीं,
और उलटे हम सबको अज्ञानी सिद्ध कर दिया है।
छोटी-मोटी बातों पर अज्ञान सिद्ध हो जाता है। कोई पूछता नहीं, इसीलिए
आपका ज्ञान चलता है। इसलिए छोटे बच्चे बहुत परेशान करने वाले मालूम पड़ते
हैं। इसलिए नहीं कि वे आपसे कुछ भी अनर्गल पूछते हैं। असल में वे ऐसे सवाल
पूछते हैं कि पूछते से ही आपके जवाब डगमगा जाते हैं। कोई पूछता नहीं है,
इसलिए चलता है।
संत अगस्तीन कहता था कि कई सवाल ऐसे हैं कि जब तक तुम नहीं पूछते, तब तक
मुझे जवाब मालूम होते हैं। तुमने पूछा कि जवाब गया! वह कहता था, मुझे
अच्छी तरह पता है कि व्हाट इज़ टाइम–समय क्या है, मैं जानता हूं। बट दि
मोमेंट यू आस्क मी; पूछा नहीं तुमने कि सब गड़बड़ हुआ!
आप भी जानते हैं कि समय क्या है। लेकिन आपको पता होना चाहिए, आइंस्टीन
भी उत्तर नहीं दे सकता कि व्हाट इज़ टाइम? समय क्या है? और आप सब जानते हैं
कि समय क्या है। हम सबको पता है। समय से ट्रेन पर पहुंचते हैं, समय से घर
आते हैं, दफ्तर जाते हैं। कौन ऐसा आदमी होगा जिसको पता नहीं कि समय क्या
है! लेकिन आइंस्टीन भी जवाब नहीं दे सकता कि समय क्या है। पूछ लो, तो
मुश्किल खड़ी हो जाती है।
अज्ञान छिपा-छिपा चलता है, जब तक कोई पूछता नहीं। पूछना कोई शुरू कर दे, अज्ञान के अतिरिक्त हाथ में कुछ नहीं रह जाता।
सुकरात ने लोगों को पूछकर दिक्कत में डाल दिया। जवाब तो दिए नहीं। शायद
सुकरात बुद्ध से भी ज्यादा अनुभवी हो चुका था। उसने सोचा कि इसके पहले कि
तुम पूछो, बेहतर है कि हम ही पूछ लें!
लेकिन कृष्ण इस लिहाज से अदभुत हैं। शायद गैर-अनुभव के कारण ही, क्योंकि
वे ज्यादा प्राचीन हैं! वे उत्तर दिए चले जाते हैं। वे अर्जुन को टोकते भी
नहीं कि तू क्या पूछ रहा है? क्यों पूछ रहा है? और इसका जवाब मैं दे चुका
हूं। नहीं, वे फिर से उत्तर देने को राजी हो जाते हैं। कृष्ण ने जो उत्तर
दिया है, वह हम समझें।
अर्जुन का पहला प्रश्न है, ब्रह्म क्या है? कृष्ण ने कहा, जिसका कभी नाश न हो।
फिर तो साफ हो गई बात कि इस जगत में ब्रह्म कहीं भी नहीं है। यहां तो जो
भी है, सभी का नाश है। आपने कोई ऐसी चीज देखी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी
कोई ऐसी चीज सुनी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी कोई ऐसा अनुभव हुआ है,
जिसका कभी नाश न हो?
यहां तो जो भी है, सभी नाशवान है। यहां तो होने की शर्त ही विनाश है।
होने की एक ही शर्त है, न होने की तैयारी। जन्म होने के साथ मृत्यु के साथ
समझौता करना पड़ता है। जन्म के साथ ही दस्तखत कर देने होते हैं मौत के सामने
कि मरने को तैयार हूं।
यहां तो कुछ पाया कि खोने के अतिरिक्त और अब कुछ होने वाला नहीं है।
यहां तो कोई मिला, तो बिछुड़ना होगा। यहां गले मिलने का इंतजाम, सिर्फ गले
को अलग कर लेने के लिए है। यहां सभी कुछ नाशवान है। यहां जो बनता हुआ दिखाई
पड़ रहा है, एक तरफ से देखो तो मालूम होता है बन रहा है, दूसरी तरफ से देखो
तो मालूम होता है कि बिगड़ रहा है।
एक धर्मगुरु के एक छोटे लड़के ने उससे पूछा है एक दिन कि यह आदमी कैसे
बना? और यह आदमी जब मिटता है, तो क्या हो जाता है? तो उस धर्मगुरु ने कहा,
डस्ट अनटु डस्ट; मिट्टी में मिट्टी मिल जाती है। मिट्टी से ही आदमी बनता
है, मिट्टी में ही आदमी गिर जाता है।
दूसरे ही दिन सुबह वह धर्मगुरु अपने तख्त पर बैठकर अपनी किताब पढ़ता है।
उसका छोटा बेटा आया, तख्त के नीचे घुस गया, और उसने वहां से चिल्लाया कि
पिताजी, जरा नीचे आइए। ऐसा लगता है कि या तो कोई बन रहा है, या तो कोई मिट
रहा है! एक मिट्टी का ढेर लगा हुआ है। तख्त के नीचे धूल इकट्ठी हो गई है।
बेटे ने कहा कि या तो कोई बन रहा है, या कोई मिट रहा है; जल्दी नीचे आइए!
धूल के ढेर को, अगर आदमी सिर्फ धूल है, तो दोनों तरह से देखा जा सकता
है–या तो कोई बन रहा है, या कोई मिट रहा है। असल में जब भी कोई बन रहा है,
तभी कोई मिट भी रहा है। और कहीं दूर नहीं, वहीं। जहां बनना चल रहा है, वहीं
मिटना चल रहा है।
यहां तो सभी कुछ विनाश है। यहां ठहराव नहीं है। यहां तो सभी कुछ नदी की
धार की तरह बह रहा है। छू भी नहीं पाते किनारा कि छूट जाता है। मिलन हो भी
नहीं पाता कि विदा की घड़ी आ जाती है।
और कृष्ण कहते हैं, वह जिसका विनाश नहीं है, वह है ब्रह्म।
गीता दर्शन
ओशो
गीता दर्शन
ओशो
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