धन का रस धन में नहीं है। धन का रस उन लोगों में है जिनके पास आपसे कम
धन है। धन का रस निर्धन में छिपा है। एक बड़ा महल आप बना रहे थे। अब सारे
महल आपके होंगे; सारी पृथ्वी पर कोई भी नहीं है। लेकिन ये सारे महल बेकार
हैं। क्योंकि बड़ा महल तब सुख देता है जब पास में छोटा मकान हो। आप
सिंहासनों पर बैठने के लिए दौड़ रहे थे। सिंहासन सब आपको उपलब्ध होंगे।
सिंहासन के ऊपर सिंहासन, सिंहासन के ऊपर सिंहासन रख कर आप अकेले बैठ सकते
हैं। लेकिन कोई भी रस न होगा, सिर्फ मेहनत मालूम पड़ेगी, पसीना बहता हुआ
मालूम पड़ेगा, कोई सार मालूम नहीं होगा। क्योंकि सिंहासन पर होने का मजा तब
है जब सिंहासन के नीचे कोई तड़फ रहा हो, सिंहासन को पाने के लिए कोई तड़फ रहा
हो; कतार लगी हो लाखों लोगों की सिंहासन को पाने के लिए और आप पा लिए हों
और दूसरे न पा सके हों। सिंहासन का रस दूसरों की आंखों में है।
निजता का अर्थ है: आप अगर सारा जगत न रह जाए तो जैसे होंगे। साधक, जगत
के रहते हुए, इस भांति जीना शुरू करता है अपने भीतर कि जैसे जगत नहीं रह
गया। और उन-उन बातों को छोड़ता जाता है, तोड़ता जाता है, जो दूसरों से
संबंधित हैं, और सिर्फ उसको ही बचाता है जो सबके खो जाने पर भी बचेगा। वही
निजता है, वही आत्मा है।
ओशो
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