ज्ञान पाने के लिए अगर अर्जुन यह कहे, तो कृष्ण पहले आदमी होंगे, जो उससे
राजी हो जाएंगे। लेकिन वह फाल्स जस्टीफिकेशन, एक झूठा तर्क खोज रहा है। वह
कह रहा है कि मुझे भागना है, मुझे निष्क्रिय होना है। और आप कहते हैं कि
ज्ञान ही काफी है, तो कृपा करके मुझे कर्म से भाग जाने दें। उसका जोर कर्म
से भागने में है, उसका जोर ज्ञान को पाने में नहीं है। यह फर्क समझ लेना
एकदम जरूरी है, क्योंकि उससे ही कृष्ण जो कहेंगे आगे, वह समझा जा सकता है।
अर्जुन का जोर इस बात पर नहीं है कि ज्ञान पा ले, अर्जुन का जोर इस बात
पर है कि इस कर्म से कैसे बच जाए। अगर सांख्य कहता है कि कर्म बेकार है, तो
अर्जुन कहता है कि सांख्य ठीक है, मुझे जाने दो। सांख्य ठीक है, इसलिए
अर्जुन नहीं भागता है। अर्जुन को भागना है, इसलिए सांख्य ठीक मालूम पड़ता
है। और इसे, इसे अपने मन में भी थोड़ा सोच लेना आवश्यक है।
हम भी जिंदगीभर यही करते हैं। जो हमें ठीक मालूम पड़ता है, वह ठीक होता
है इसलिए मालूम पड़ता है? सौ में निन्यानबे मौके पर, जो हमें करना है, हम
उसे ठीक बना लेते हैं। हमें हत्या करनी है, तो हम हत्या को भी ठीक बना लेते
हैं। हमें चोरी करनी है, तो हम चोरी को भी ठीक बना लेते हैं। हमें बेईमानी
करनी है, तो हम बेईमानी को भी ठीक बना लेते हैं। हमें जो करना है, वह पहले
है, और हमारे तर्क केवल हमारे करने के लिए सहारे बनते हैं।
फ्रायड ने अभी इस सत्य को बहुत ही प्रगाढ़ रूप से स्पष्ट किया है। फ्रायड
का कहना है कि आदमी में इच्छा पहले है और तर्क सदा पीछे है, वासना पहले
है, दर्शन पीछे है। इसलिए वह जो करना चाहता है, उसके लिए तर्क खोज लेता है।
अगर उसे शोषण करना है, तो वह उसके लिए तर्क खोज लेगा। अगर उसे स्वच्छंदता
चाहिए, तो वह उसके लिए तर्क खोज लेगा। अगर अनैतिकता चाहिए, तो वह उसके लिए
तर्क खोज लेगा। आदमी की वासना पहले है और तर्क केवल वासना को मजबूत करने
का, स्वयं के ही सामने वासना को सिद्ध, तर्कयुक्त करने का काम करता है।
इसलिए फ्रायड ने कहा है कि आदमी रेशनल नहीं है। आदमी बुद्धिमान है नहीं,
सिर्फ दिखाई पड़ता है। आदमी उतना ही बुद्धिहीन है, जितने पशु। फर्क इतना है
कि पशु अपनी बुद्धिहीनता के लिए किसी फिलासफी का आवरण नहीं लेते। पशु अपनी
बुद्धिमानी को सिद्ध करने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। वे अपनी
बुद्धिहीनता में जीते हैं और बुद्धिमानी का कोई तर्क का जाल खड़ा नहीं करते।
आदमी ऐसा पशु है, जो अपनी पशुता के लिए भी परमात्मा तक का सहारा खोजने की
कोशिश करता है।
अर्जुन यही कर रहा है। कृष्ण की आंख से बचना मुश्किल है। अन्यथा अगर
सांख्य की दृष्टि अर्जुन की समझ में आ जाए कि ज्ञान ही काफी है, तो अर्जुन
पूछेगा नहीं कृष्ण से एक भी सवाल। बात खतम हो गई; वह उठेगा, नमस्कार करेगा
और कहेगा, जाता हूं।
झेन फकीरों की मोनेस्ट्रीज में, आश्रम में एक छोटासा नियम है। जापान
में जब भी कोई साधक किसी गुरु के पास ज्ञान सीखने आता है, तो गुरु उसे
बैठने के लिए एक चटाई दे देता है। और कहता है, जिस दिन बात तुम्हारी समझ
में आ जाए, उस दिन अपनी चटाई को गोल करके दरवाजे से बाहर निकल जाना। तो मैं
समझ जाऊंगा, बात समाप्त हो गई। और जब तक समझ में न आए, तब तक तुम बाहर चले
जाना, चटाई तुम्हारी यहीं पड़ी रहने देना। रोज लौट आना; अपनी चटाई पर
बैठना, पूछना, खोजना। जिस दिन तुम्हें लगे, बात पूरी हो गई, उस दिन धन्यवाद
भी मत देना। क्योंकि जिस दिन ज्ञान हो जाता है, कौन किसको धन्यवाद दे! कौन
गुरु, कौन शिष्य? और जिस दिन ज्ञान हो जाता है, उस दिन कौन कहे कि मुझे
ज्ञान हो गया, क्योंकि मैं भी तो नहीं बचता है। तो उल दिन तुम अपनी चटाई
गोल करके चले जाना, तो मैं समझ लूंगा कि बात पूरी हो गई।
अगर अर्जुन को सांख्य समझ में आ गया हो, तो वह चटाई गोल करेगा और चला
जाएगा। उसकी समझ में कुछ आया नहीं है। ही, उसे एक बात समझ में आई कि मैं जो
एस्केप, जो पलायन करना चाहता हूं, कृष्ण से ही उसकी दलील मिल रही है।
कृष्ण कहते हैं, ज्ञान ही काफी है, ऐसी सांख्य की निष्ठा है। और सांख्य
की निष्ठा परम निष्ठा है। श्रेष्ठतम जो मनुष्य सोच सका है आज तक, वे सांख्य
के सार सूत्र हैं। क्योंकि ज्ञान अगर सच में ही घटित हो जाए, तो जिंदगी
में कुछ भी करने को शेष नहीं रह जाता है, फिर कुछ भी ज्ञान के प्रतिकूल
करना असंभव है। लेकिन तब अर्जुन को पूछने की जरूरत न रहेगी; बात समाप्त हो
जाती है।
गीता दर्शन
ओशो
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