सोचना हो, बोलना हो, समझना हो, तो कृष्ण से
ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति खोजना मुश्किल है। ऐसा नहीं कि और महत्वपूर्ण
व्यक्ति हुए हैं, लेकिन कृष्ण का महत्व अतीत के लिए कम और भविष्य के लिए
ज्यादा है। सच ऐसा है कि कृष्ण अपने समय के कम से कम पांच हजार वर्ष पहले
पैदा हुए। सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के पहले पैदा होते हैं, और सभी
गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बाद पैदा होते हैं। बस महत्वपूर्ण और
गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति में इतना ही फर्क है। और सभी साधारण व्यक्ति अपने
समय के साथ पैदा होते हैं।
महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बहुत पहले पैदा हो जाता है। और कृष्ण तो
अपने समय के बहुत पहले पैदा हुए हैं। शायद आनेवाले भविष्य में हम कृष्ण को
समझने में योग्य हो सकेंगे। अतीत कृष्ण को समझने में योग्य नहीं हो सका।
और यह भी खयाल कर लें कि जिसे हम समझने में योग्य नहीं हो पाते, उसकी हम
पूजा करना शुरू कर देते हैं। जो हमारी समझ के बाहर छूट जाता है, उसकी हम
पूजा करने लगते हैं। या तो हम गाली देते हैं, या प्रशंसा करते हैं, दोनों
ही पूजाएं हैं–एक शत्रु की है, एक मित्र की है। जिसे हम नहीं समझ पाते, उसे
हम भगवान बना लेते हैं। असल में अपनी नासमझी को स्वीकार करना बहुत कठिन
होता है। दूसरे को भगवान बना देना बहुत आसान होता है। लेकिन दोनों एक ही
सिक्के के दो पहलू हैं।
जिसे हम नहीं समझ पाते उसे हम क्या कहें–उसे हम भगवान कहना शुरू कर देते
हैं। भगवान कहने का मतलब है कि जैसे हम भगवान को नहीं समझ पा रहे हैं वैसे
ही इस व्यक्ति को भी नहीं समझ पा रहे हैं। जैसा भगवान बेबूझ है, वैसा ही
यह व्यक्ति भी अबूझ है। जैसे भगवान रहस्य है, वैसा ही यह व्यक्ति भी रहस्य
है। जैसे भगवान को हम नहीं छू पाते, पकड़ पाते, स्पर्श कर पाते, वैसे ही इस
व्यक्ति को भी नहीं छू पाते, नहीं पकड़ पाते। जैसे भगवान सदा ही जानने को
शेष रह जाता है वैसा ही यह व्यक्ति भी सदा जानने को शेष रह जाता है।
समय के पहले जो लोग पैदा हो जाते हैं, उनकी पूजा शुरू हो जाती है। लेकिन
अब वह वक्त करीब आ रहा है जब कृष्ण की पूजा से अर्थ नहीं होगा, कृष्ण को
जीना शुरू हो सकेगा, कृष्ण को जिया जा सकेगा। ठीक इसीलिए कृष्ण को चुना
चर्चा के लिए, क्योंकि आने वाले भविष्य के संदर्भ में सबसे सार्थक
व्यक्तित्व उन्हीं का मुझे मालूम पड़ता है। तो दोत्तीन बातें इस संबंध में
आपसे कहूं।
एक बात, कृष्ण को छोड़कर दुनिया के समस्त अदभुत व्यक्ति–चाहे महावीर,
चाहे बुद्ध, चाहे क्राइस्ट, या कोई और–ये सभी परलोक के लिए जी रहे थे। आने
वाले किसी जीवन के लिए, आने वाले किसी लोक के लिए; परलोक के लिए, मोक्ष के
लिए, स्वर्ग के लिए। मनुष्य का पूरा अतीत पृथ्वी पर इतना दुखद था कि पृथ्वी
पर तो जीना ही संभव नहीं था। मनुष्य का पूरा अतीत इतनी पीड़ाओं, इतनी
“सफरिंग’, इतनी कठिनाइयों का था कि इस पृथ्वी के जीवन को स्वीकार करना
मुश्किल था। तो अतीत के समस्त धर्म पृथ्वी को अस्वीकार करने वाले धर्म हैं,
सिर्फ एक कृष्ण को छोड़कर। कृष्ण इस पृथ्वी के पूरे जीवन को पूरा ही
स्वीकार करते हैं। वे किसी परलोक में जीने वाले व्यक्ति नहीं, इसी पृथ्वी
पर, इसी लोक में जीने वाले व्यक्ति हैं।
बुद्ध, महावीर का मोक्ष इस पृथ्वी
के पार कहीं दूर है, कृष्ण का मोक्ष इसी पृथ्वी पर, यहीं और अभी है।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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