मैं एक बहुत बड़े डॉक्टर के घर में मेहमान था। सुबह ही कहीं जाने को मैं
और वह डॉक्टर दोनों घर के बाहर निकलते थे कि डॉक्टर के छोटे बच्चे को छींक आ
गई। और उस डॉक्टर ने कहा. थोड़ी देर रुक जाएं, दो मिनट रुक जाएं फिर हम
चलेंगे। मैंने कहा कि तुम बड़े अजीब डॉक्टर मालूम होते हो, क्योंकि डॉक्टर
को तो कम से कम पता होना चाहिए कि छींक आने का क्या कारण होता है। और छींक
आने से किसी के कहीं जाने और रुक जाने का क्या संबंध है? डॉक्टर को भी यह
पता न हो तो फिर आश्चर्य हो गया!
मैंने उन डॉक्टर को कहा कि अगर मैं बीमार पड़ जाऊं और मरने की भी हालत आ
जाए तो भी आपसे इलाज करवाने को राजी नहीं हो सकता हूं। मेरी दृष्टि से तो
आपका प्रमाणपत्र छीन लिया जाना चाहिए कि आप डॉक्टर हो! यह बात गलत है।
छींक आने से आप रुकते हो, बड़ी हैरानी की बात है। वे कहने लगे, बचपन से सुना
हुआ खयाल काम करता है। बचपन से सुना हुआ खयाल भी काम कर रहा है। और वे
डॉक्टर भी हो गए हैं। वे एफ. आर.सी.एस भी हो गए हैं लंदन से जाकर। और ये
दोनों विचार एक साथ मौजूद हैं। छींक आती है तो पैर रुकते हैं और वे
भलीभांति जानते हैं कि निपट बेवकूफी है! छींक से रुकने का कोई भी संबंध
नहीं है। ये दोनों विचार एक साथ मन में किसी के बैठे काम कर रहे हैं।
हमारे भीतर इस तरह के हजारों विचार एक साथ बैठे हुए हैं और वे सब विचार
हमें खींच रहे हैं अलग अलग दिशाओं में। और तब हमारी यह अस्तव्यस्त दशा हो
गई है: जो हमें दिखाई पड़ती है। यह जो आदमी बिलकुल पागल मालूम होता है, यह
इसीलिए मालूम होता है। यह पागल न होगा तो और क्या होगा?
विक्षिप्तता बिलकुल स्वाभाविक है। क्योंकि हजारों हजारों वर्षों से
अनंत अनंत अंतरविरोधी विचार एक ही मनुष्य के मन में इकट्ठे हो गए हैं।
हजारों पीढ़ियां एक साथ एक एक आदमी के भीतर जी रही हैं। हजारों सेंचुरीज एक
साथ एक आदमी के भीतर बैठी हुई हैं। पांच हजार साल पहले का खयाल भी बैठा है
और अत्याधुनिक समय का खयाल भी उसके भीतर बैठा है। और इन दोनों विचारों में
कोई तुक और कोई सामंजस्य नहीं हो सकता है।
हजारों दिशाओं से पैदा हुए खयाल उसके भीतर बैठे हैं, हजारों तीर्थंकरों
और पैगंबरों, अवतारों और गुरुओं के खयाल उसके भीतर बैठे हैं, और इन सबने एक
अदभुत बात की है। दुनिया के सारे धर्म, सारे शिक्षक, सारे उपदेशक एक बात
पर राजी रहे हैं और किसी बात पर राजी नहीं रहे और वे इस बात पर राजी रहे
हैं, आदमी को समझाने के लिए कि जो हम कहते हैं उस पर विश्वास करो। सभी यह
कहते हैं कि जो हम कहते हैं उस पर विश्वास करो।
और सब बातों में विरोध हैं। हिंदू कुछ और कहता है, मुसलमान कुछ और कहता
है, जैन कुछ और कहते हैं, ईसाई कुछ और कहते हैं। लेकिन एक मामले में वे सब
सहमत हैं कि हम जो कहते हैं, उस पर विश्वास करो। और ये सब विरोधी बातें
कहते हैं। और आदमी के प्राणों पर इन सारे लोगों की विरोधी बातें पड़ती हैं
और वे सभी चिल्लाते हैं कि हम जो कहते हैं उस पर विश्वास करो। और आदमी
बेचारा गरीब है और कमजोर है, इन सबकी बातों पर विश्वास कर लेता है। वे सब
एक दूसरे की बातों पर हंसते हैं, लेकिन खुद की बेवकूफियों पर कोई भी नहीं
हंसता है।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
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