मैंने सुना है तीन चीनी फकीरों के बारे में। कोई नहीं जानता उनके नाम।
वे जाने जाते थे केवल ‘तीन हंसते हुए संतों’ के रूप में, क्योंकि उन्होंने
कभी कुछ किया ही नहीं था, वे केवल हंसते रहते थे। वे एक नगर से दूसरे नगर
की ओर बढ़ जाते, हंसते हुए। वे खड़े हो जाते बाजार में और खूब जोर से हंसते।
सारा बाजार उन्हें घेरे रहता। सारे लोग आ जाते। दुकानें बंद हो जातीं और
ग्राहक भूल जाते कि वे आए किसलिए थे। ये तीनों आदमी सचमुच सुंदर थे हंसते
और उनके पेट हिलते जाते। और फिर यह बात संक्रामक बन जाती और दूसरे हंसना
शुरू कर देते। फिर सारा बाजार हंसने लगता। उन्होंने बदल दिया होता बाजार की
गुणवत्ता को, स्वरूप को ही। और यदि कोई कहता कि ‘कुछ कहो हम से’ तो वे
कहते, ‘हमारे पास कहने को कुछ है नहीं। हम तो बस हंस पड़ते हैं और बदल देते
हैं गुणधर्म ही।’ जब कि अभी थोड़ी देर पहले यह एक असुंदर जगह थी जहां कि लोग
सोच रहे थे केवल रुपये पैसे के बारे में ही, ललक रहे थे धन के लिए, लोभी,
धन ही एकमात्र वातावरण था हर तरफ अचानक ये तीनों पागल आदमी आ पहुंचते हैं
और वे हंसने लगते, और बदल देते गुणवत्ता सारे बाजार की ही। अब कोई ग्राहक न
था। अब वे भूल चुके थे कि वे खरीदने और बेचने आए थे। किसी को लोभ की फिक्र
न रही। वे हंस रहे थे और नाच रहे थे इन तीन पागल आदमियों के आस पास। कुछ
पलों के लिए एक नयी दुनिया का द्वार खुल गया था!
वे घूमे सारे चीन में, एक जगह से दूसरी जगह, एक गांव से दूसरे गांव, बस
लोगों की मदद कर रहे थे हंसने में। उदास लोग, क्रोधित लोग, लोभी लोग,
ईर्ष्यालु लोग वे सभी हंसने लगे उनके साथ। और बहुतों ने अनुभव की कुंजी तुम
रूपांतरित हो सकते हो।
फिर, एक गांव में ऐसा हुआ कि उन तीनों में से एक मर गया। गांव के लोग
इकट्ठे हुए और वे कहने लगे, ‘अब तो मुश्किल आ पड़ेगी। अब हम देखेंगे कि कैसे
हंसते हैं वे। उनका मित्र मर गया है, वे तो जरूर रोके।’ लेकिन जब वे आए,
तो दोनों नाच रहे थे, हंस रहे थे, और उत्सव मना रहे थे मृत्यु का। गाव के
लोगों ने कहा, ‘यह तो बहुत ज्यादती हुई। यह असभ्यता है। जब कोई व्यक्ति मर
जाता है तो हंसना और नाचना अधर्म होता है।’ वे बोले, ‘तुम नहीं जानते कि
क्या हुआ।
हम तीनों सदा ही सोचते रहते थे कि सब से पहले कौन मरेगा। यह आदमी
जीत गया है, हम हार गए। सारी जिंदगी हंसते रहे उसके साथ। तो हम उसे अंतिम
विदाई किसी और चीज के साथ कैसे दे सकते हैं? हमें हंसना ही है, हमें
आनंदित होना ही है, हमें उत्सव मनाना ही है। यही एक मात्र विदाई संभव है उस
व्यक्ति के लिए जो जीवन भर हंसता रहा है। और यदि हम नहीं हंसते, तो वह
हंसेगा हम पर और वह सोचेगा, अरे नासमझों! तो तुम फिर जा फंसे जाल में? हम
नहीं समझते कि वह मर गया है। हंसी कैसे मर सकती है? जीवन कैसे मर सकता है?’
हंसना शाश्वत चीज है, जीवन शाश्वत है, उत्सव चलता ही रहता है। अभिनय
करने वाले बदल जाते हैं, लेकिन नाटक जारी रहता है। लहरें परिवर्तित होती
हैं, लेकिन सागर बना रहता है। तुम हंसते, तुम बदलते और कोई दूसरा हंसने
लगता, लेकिन हंसना तो जारी रहता है। तुम उत्सव मनाते हो, कोई और उत्सव
मनाता है, लेकिन उत्सव तो चलता ही रहता है। अस्तित्व सतत प्रवाह है, वह सब
कुछ समाए चलता है, उसमें एक पल का अंतराल नहीं होता। लेकिन गांव के लोग
नहीं समझ सकते थे और वे इस हंसी में उस दिन तो शामिल नहीं हो सकते थे।
फिर देह का अग्नि संस्कार करना था, और गांव के लोग कहने लगे, ‘हम तो इसे
स्थान कराएंगे जैसे कि धार्मिक कर्मकांड नियत होते हैं।’ लेकिन वे दोनों
मित्र बोले, ‘नहीं, हमारे मित्र ने कहा है कि कोई धार्मिक अनुष्ठान मत करना
और मेरे कपड़े मत बदलना और मुझे स्नान मत कराना। जैसा मैं हूं तुम मुझे
वैसा ही रख देना चिता की आग पर। इसलिए हमें तो उसके निर्देशों को मानना ही
पड़ेगा।’
और तब, अचानक ही, एक बड़ी घटना घटी। जब शरीर को आग दी जाने लगी, तो वह
बूढ़ा आदमी आखिरी चाल चल गया। उसने बहुत से पटाखे छिपा रखे थे कपड़ों के
नीचे, और अचानक दीपावली हो गयी! तब तो सारा गांव हंसने लगा। ये दोनों पागल मित्र नाच ही
रहे थे, फिर तो सारा गांव ही नाचने लगा। यह कोई मृत्यु न थी, यह नया जीवन
था।
कोई मृत्यु मृत्यु नहीं होती, क्योंकि प्रत्येक मृत्यु खोल देती है एक
नया द्वार वह एक प्रारंभ होती है। जीवन का कोई अंत नहीं, सदा एक नया
प्रारंभ होता है, एक पुनर्जीवन।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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