एक मां अपने छोटे बेटे को कह रही थी कि मैं दो दिन से देख रही हूं कि
तूने रात की प्रार्थना नहीं की, परमात्मा को धन्यवाद नहीं दिया। समझाने के
लिए उसने कहा, कि देख इस गांव में गरीब बच्चे हैं जिनको दो रोटी भी
नहीं मिलती, कपड़े फटे चीथड़े पहने हुए हैं। तुझे भगवान ने सब कुछ दिया है।
धन्यवाद देना जरूरी है। उस लड़के ने सिर हिलाया। उसने कहा कि यही तो मैं
सोचता हूं। तो प्रार्थना उनको करनी चाहिए कि मुझको? जिनको न रोटी है, न
कपड़े हैं, मैं किसलिए प्रार्थना करूं? सब मिला ही हुआ है और बिना ही
प्रार्थना किए हुए मिला हुआ है तो मुझे क्यों झंझट में डालना? प्रार्थना
उनको करनी चाहिए जिनको कुछ नहीं मिला है।
यह बच्चा तुम्हारे सबके मन की बात कह रहा है। यही तुम कह रहे हो। जब तुम
दुख में हो, तब प्रार्थना; जब तुम सुख में हो तब क्या जरूरत है। इसलिए सुख
में आदमी सहज ही भूल जाता है। जब मौका था नाव को छोड़ देने का सागर में, तब
तो तुम भूल जाते हो और जब मौका बिलकुल नहीं था सागर में नाव को छोड़ने
का तूफान था सागर में, ज्वार उठा था, भयंकर आंधी चलती थी और हवाएं प्रतिकूल
थीं तब तुम अपनी छोटी सी नाव को लेकर सागर के किनारे पहुंचते हो। तुमने
डूबने की तैयारी ही कर ली। और जब सागर में अनुकूल हवा थी कि पतवार भी न
चलानी पड़ती, सिर्फ पाल तान देते, और सागर की हवा ही तुम्हें ले जाती, डूबने
का कोई खतरा न था, न तूफान था न आंधी थी, सागर में छोटी छोटी लहरें थीं,
जिनमें बड़ा निमंत्रण था तब तुम भूल ही जाते हो कि यात्रा पर निकलना है।
सुनो भई साधो
ओशो
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