अस्पताल जाकर देखें; एक पंद्रह मिनट अस्पताल में घूम कर लौटें आपको लगेगा जैसे
आपके जीवन की ऊर्जा को किसी ने चूस लिया हो; खाली हो गए हैं। डाक्टर,
नर्सेस कठोर हो जाते हैं। अगर कठोर न हों तो वे मर जाएं। कठोर होना उनके
जीवन की रक्षा का उपाय है। अगर वे आप जैसे कोमल हों तो चौबीस घंटे दुखी लोग
उनकी जीवन-ऊर्जा को खींच रहे हैं, वे जिंदा नहीं रह सकते। इसलिए वे
उपेक्षा से भर जाते हैं। वह उपेक्षा उनका कवच है। उस कवच के माध्यम से, एक
आदमी बीमार पड़ा है, वह कितना ही दुखी हो, लेकिन उसका दुख उनके भीतर से कुछ
भी खींच नहीं सकता। वे बहेंगे नहीं, वे अपने को सम्हाले हैं।
इसलिए बड़े मजे की बात होती है। महामारियां फैलती हैं। कोई भी दूसरा
व्यक्ति बीमार हो जाए। संक्रामक बीमारी है–मलेरिया है, प्लेग है, हैजा है।
लेकिन डाक्टर वहीं सैकड़ों मलेरिया के बीमार, सैकड़ों प्लेग के बीमारों के
बीच काम करने में लगा रहता है, और उसे इनफेक्शन नहीं पकड़ता। न पकड़ने का
कारण है। निरंतर के अभ्यास से दुखी आदमियों के पास रह-रह कर उसने वह कवच
निर्मित कर लिया है जिससे वे उसके अस्तित्व को नहीं खींच पाते। और जब तक आप
कमजोर न हों तब तक कोई इनफेक्शन नहीं पकड़ सकता। जैसे ही आपका अस्तित्व
बहना शुरू होता है, द्वार खुल जाते हैं। उन्हीं द्वारों से संक्रामक
बीमारियां प्रवेश कर सकती हैं।
दुखी आदमी आपको चूसता है। इसलिए अगर लोग आपसे दूर भागते हों तो समझना कि आप दुखी हैं, और कोई आपके पास नहीं होना चाहेगा।
अब ये बड़े उपद्रव की बातें हैं। दुखी आदमी चाहता है, लोग मेरे पास
बैठें। और दुखी आदमी चाहता है, लोग सहानुभूति प्रकट करें। और दुखी आदमी
चाहता है, कोई मुझे छोड़े न। और दुखी आदमी पाता है कि कोई उसके पास नहीं
बैठता; अपने भी दूर भागते हैं। जो प्रेम करते हैं वे भी औपचारिक बातें करके
और किसी तरह बचना चाहते हैं। और जितना वे बचते हैं, उतना दुखी आदमी और
दुखी होता है। जितना दुखी होता है उतनी उसकी मांग बढ़ती है कि कोई मेरे पास
आओ। और जितना वह दुखी होता जाता है उतना पास आना मुश्किल होता चला जाता है।
अगर आप पाते हैं कि लोग आपसे हटते हैं तो समझना कि आप दुखी हैं। अगर आप
पाते हैं कि लोग आपसे खिंचते हैं, आपके पास आते हैं, तो समझना कि आप सुखी
हैं। सुख का वह लक्षण है।
सुख एक मैगनेट है। जब आप सुखी होते हैं तब कोई आपसे खींचता नहीं, आप
बांटते हैं। और यह फर्क बड़ा बुनियादी है। जब कोई आपसे खींचता है और
जबरदस्ती आपकी जीवन-ऊर्जा जाती है तो आप थकते हैं। और जब आप प्रफुल्लता से
बांटते हैं तब आप बढ़ते हैं, थकते नहीं। वही काम जबरदस्ती करवाया जाए तो
पीड़ा लाता है, और वही काम आप अपनी प्रसन्नता से करें तो आनंद लाता है। काम
वही है, भौतिक तल पर कोई अंतर नहीं है, लेकिन मन के तल पर बड़े बुनियादी
फर्क हो जाते हैं।
ताओ उपनिषद
ओशो
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