कृष्ण जैसे व्यक्तित्व की फिर जरूरत है जो कहे कि शुभ को भी लड़ना चाहिए।
शुभ को भी तलवार हाथ में लेने की हिम्मत रखनी चाहिए। निश्चित ही शुभ जब
हाथ में तलवार लेता है, तो किसी का अशुभ नहीं होता। अशुभ हो नहीं सकता।
क्योंकि लड़ने के लिए कोई लड़ाई नहीं है। लेनि अशुभ जीत न पाए, इसलिए लड़ाई
है।
तो धीरे-धीरे दो हिस्से दुनिया के बंट जाएंगे, जल्दी ही, जहां एक हिस्सा
भौतिकवादी होगा और एक हिस्सा स्वतंत्रता, लोकतंत्र, व्यक्ति और जीवन के और
मूल्यों के लिए होगा। लेकिन क्या ऐसे दूसरे शुभ के वर्ग को कृष्ण मिल सकते
हैं? मिल सकते हैं। क्योंकि जब भी मनुष्य की स्थितियां इस जगह आ जाती हैं
जहां कि कुछ निर्णायक घटना घटने को होती है, तो हमारी स्थितियां उस चेतना
को भी पुकार लेती हैं उस चेतना को भी जन्म दे देती हैं। वह व्यक्ति भी जन्म
जाता है।
इसलिए भी मैं कहता हूं कि कृष्ण का भविष्य के लिए बहुत अर्थ है।
और जब साधारण, सीधे-सादे, अच्छे आदमियों की आवाजें बेमानी हो
जाएंगी क्योंकि बुरा आदमी अच्छे आदमी की आवाजों से न डरता है, न भय खाता
है, न रुकता है। तो वह बढ़ता चला जाता है। बल्कि अच्छा आदमी जितना सिकुड़ता
है, बुरे आदमी के लिए उतना ही आनंदपूर्ण हो जाता है।
महाभारत के बाद हिंदुस्तान में बहुत अच्छे आदमी हुए बुद्ध हैं, महावीर
हैं इनकी अच्छाई की कोई कमी नहीं है। इनकी अच्छाई की कोई सीमा नहीं है।
लेकिन इनकी अच्छाई के प्रभाव में मुल्क सिकुड़ गया। हमारा चित्त सिकुड़ गया।
और उस सिकुड़े हुए चित्त पर सारी दुनिया के आक्रामक टूट पड़े। आक्रमण करने ही
हम नहीं जाते हैं, आक्रमण को बुलाते भी हमीं हैं। और जब तुम किसी को मारते
हो, तभी तुम जिम्मेवार नहीं होते, जब तुम किसी की मार खाते हो तब भी तुम
जिम्मेवार होते ही हो। क्योंकि किसी के चेहरे पर चांटा मारना भी एक कृत्य
है जिसमें पचास प्रतिशत तुम जिम्मेवार हो, पचास प्रतिशत वह आदमी जिम्मेवार
है जिसने चांटे को निमंत्रित किया है। सहा, “पैसीविटी’ दिखाई, स्वीकार
किया, बुलाया कि मारो। अगर तुम पर कोई चांटा मारता है तो पचास “परसेंट’ तुम
भी जिम्मेवार होते हो, तुम बुलाते हो।
अच्छे आदमियों की एक लंबी कतार ने निपट अच्छे आदमियों की लंबी कतार
ने इस मुल्क के मन को सिकोड़ दिया, और हमने बुलाया, आमंत्रण दिया कि आओ।
हमारा आमंत्रण मानकर बहुत लोग आए। उन्होंने हमें वर्षों तक गुलाम रखा,
दबाया, परेशान किया। अपनी मौज से वे चले भी गए। लेकिन हम अभी भी, हमारी
मनोदशा संकोच की ही है। हम फिर किसी को बुला सकते हैं। अगर कल माओ प्रवेश
कर जाए इस मुल्क में, तो उसके लिए जिम्मेदार अकेला माओ नहीं होगा। लेनिन ने
बहुत वर्षों पहले एक भविष्यवाणी की थी कि मास्को से कम्यूनिज्म पेकिंग और कलकत्ता होता हुआ लंदन पहुंचेगा। उसकी भविष्यवाणी बड़ी सही मालूम पड़ती है।
पेकिंग तो पहुंच गया। कलकत्ते में उसकी पगध्वनि सुनाई पड़ने लगी है। लंदन
ज्यादा दूर नहीं है। अब कलकत्ते में कम्यूनिज्म को प्रवेश करने में कोई
कठिनाई नहीं है; क्योंकि भारत का का मन सिकुड़ा हुआ है। वह आ जाएगा, उसको
स्वीकार करके देश और दब जाएगा।
इसलिए इस देश को तो कृष्ण पर पुनर्विचार करना ही चाहिए।
कृष्ण स्मृति
ओशो
No comments:
Post a Comment