अगर पचास साल की उम्र हो गई, तो लौटकर पीछे देखें कि पचास साल में इतना
पाने की कोशिश की, इतना पा भी लिया, फिर भी पहुंचे कहां? पाया क्या? और अगर
पचास साल और मिल जाएं, तो भी हम क्या करेंगे? हम वही पुनरुक्त कर रहे हैं।
जिसके पास दस रुपए थे, उसने सौ कर लिए हैं। सौ की जगह वह हजार कर लेगा।
हजार होंगे, दस हजार कर लेगा। दस हजार होंगे, लाख कर लेगा। लेकिन दस हजार
जब कोई सुख न दे पाए! और जब एक रुपया पास में था, तो खयाल था कि दस रुपए भी
हो जाएं, तो बहुत सुख आ जाएगा। दस हजार भी कोई सुख न ला पाए, तो दस लाख भी
कैसे सुख ला पाएंगे?
लौटकर पीछे देखें। और अपने अतीत को समझकर, अपने भविष्य को पुनः धोखा न
देने दें। नहीं तो भविष्य रोज धोखा देता है। भविष्य रोज विश्वास दिलाता है
कि नहीं हुआ कल, कोई बात नहीं; कल हो जाएगा। वही उसका सीक्रेट है आपको पकड़े
रखने का। कहता है, कोई फिक्र नहीं; हजार रुपए से नहीं हो सका, हजार में
कभी होता ही नहीं; लाख में होता है। जब लाख हो जाएंगे, तब यही मन कहेगा,
लाख में कभी होता ही नहीं; दस लाख में होता है। यह मन कहे चला जाएगा। इस मन
ने कभी भी नहीं छोड़ा कि कहना बंद किया हो। जिनको पूरी पृथ्वी का राज्य मिल
गया, उनसे भी इसने नहीं छोड़ा कि तुम तृप्त हो गए हो। उनको भी कहा कि इतने
से क्या होगा?
गीता दर्शन
ओशो
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