अमरीका का एक बहुत बड़ा मनीषी हुआ जान डैबी। वह कहा करता था, जीवन जीवन
में रुचि का नाम है। जिस दिन वह गयी कि जीवन भी चला गया। सत्य की खोज खोज
में रुचि है। सत्य में उतना सवाल नहीं है, जितना खोज में है। मजा मंजिल का
नहीं है, यात्रा का है। मजा मिलन का कम है, इंतजारी का हैं।
इस जान डैबी से उसकी नब्बेवीं वर्षगांठ पर बातचीत करते समय एक डाक्टर
मित्र ने कहा, फिलासफी, दर्शन, दर्शन में रखा क्या है! बताइए, आप ही बताइए,
दर्शन में रखा क्या है, उस डाक्टर ने पूछा! डैबी ने शांतिपूर्वक कहा,
दर्शन का लाभ है, उसके अध्ययन के बाद पहाड़ों पर चढ़ाई संभव हो जाती है।
डाक्टर ने समझा नहीं। फिर भी उसने कहा, अच्छा, मान लिया; मान लिया, सही कि
दर्शन का यही लाभ है कि पहाड़ों पर चढ़ाई संभव हो जाती है। लेकिन पहाड़ों पर
चढ़ने से कौन सा लाभ है? डैबी हंसा और बोला, लाभ यह है कि एक पहाड़ पर चढ़ने
के बाद दूसरा ऐसा ही पहाड़ दिखायी पड़ना आरंभ हो जाता है कि जिस पर चढ़ना कठिन
प्रतीत होता है। उसके पार होने पर तीसरा। उसके पार होने पर चौथा। और जब तक
यह क्रम है और चुनौती है, तब तक जीवन है।
जिस दिन चढ़ने को कुछ शेष नहीं, आकर्षण, चुनौती नहीं, उसी दिन मृत्यु घट
जाएगी। और मृत्यु नहीं है, जीवन ही है। एक पहाड़ तुम चढ़ते हो, शायद तुम इसी
आशा में चढ़ते हो कि अब चढ़ गए, बस आखिरी आ गया, अब इसके पार कुछ नहीं है, अब
तो आराम करेंगे, चादर ओढ़कर सो जाएंगे। पहाड़ पर चढ़ते हो, तब पाते हो कि
दूसरा पहाड़ सामने प्रतीक्षा कर रहा है। इससे भी बड़ा, इससे भी विराट, इससे
भी ज्यादा स्वर्णमयी! अब फिर तुम्हारे भीतर चुनौती उठी। अब फिर तुम चले।
सोचोगे कि अब इस पर पड़ाव डाल देंगे। जिस दिन शिखर पर पहुंचोगे शिखर पर
पहुंचते ही आगे का दिखायी पड़ता है, उसके पहले दिखायी नहीं पड़ता तब दिखायी
पड़ता है और बड़ा पहाड, मणि काचनों से चमकता, रुकना मुश्किल है! ऐसे पहाड़ के
बाद पहाड़।
सत्य की खोज अनंत खोज है। यात्रा है और ऐसी यात्रा कि कभी समाप्त नहीं
होती। समाप्त नहीं होती, यह शुभ भी है। समाप्त हो जाए तो जीवन समाप्त हो
गया।
हम अनंत के यात्री हैं।
एस धम्मो सनंतनो।
ओशो
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