सुबह जब तुम स्वप्न से जाग रहे होते हो, अचानक, तो तुम नहीं जानते कि
तुम कौन हो और कहां हो। क्या तुमने इस अनुभूति को अनुभव किया किसी सुबह? जब अचानक, तुम स्वप्न से जागते हो और कुछ पलों तक तुम नहीं जानते कि तुम
कहां हो, तुम कौन हो और क्या हो रहा है? ऐसा ही होता है जब कोई अहंकार के
स्वप्न से बाहर आता है। असुविधा, बेचैनी, उखडाव महसूस होगा, लेकिन इससे तो
प्रफुल्लित होना चाहिए। यदि तुम इससे दुखी हो जाते हो, तो तुम उन्हीं
पुराने ढर्से में जा पड़ोगे जहां कि चीजें निश्चित थीं, जहां हर चीज का
नक्शा बना था, खाका खिंचा था, जहां कि पहचानते थे हर चीज, जहां जीवन मार्ग
की रूपरेखाएं स्पष्ट थीं।
बेचैनी गिरा दो। यदि वह हो भी तो उससे ज्यादा प्रभावित मत हो जाना। रहने
दो उसे, ध्यानपूर्वक देखो और वह भी चली जाएगी। बेचैनी जल्दी ही तिरोहित हो
जाएगी। वह वहां होती है निश्चितता की पुरानी आदत होने से ही। तुम नहीं
जानते कि अनिश्चित जगत में कैसे जीया जाता है। तुम नहीं जानते कि असुरक्षा
में कैसे जीया जाता है। बेचैनी होती है पुरानी सुरक्षा के कारण। वह होती है
केवल पुरानी आदत, पुराने प्रभाव के कारण। वह चली जाएगी। तुम्हें बस
प्रतीक्षा करनी है, देखना है, आराम करना है, और प्रसन्नता अनुभव करनी है कि
कुछ घटित हुआ है। और मैं कहता हूं तुमसे यह अच्छा लक्षण है।
बहुत लौट गए इस स्थल से, केवल फिर से सुविधापूर्ण होने को आराम में,
सुख चैन में होने को ही। चूक गए हैं वे। बिलकुल करीब आ ही रहे थे मंजिल के,
और उन्होंने पीठ फेर ली। वैसा मत करना आगे बढ़ना। अनिश्चितता अच्छी होती
है, उसमें कुछ बुरा नहीं है। तुम्हारा तो केवल ताल मेल बैठना है, बस इतना
ही।
तुम्हारा ताल मेल बैठ जाता है अहंकार के निश्चित संसार के साथ, अहंकार
की सुरक्षित दुनिया के साथ। कितना ही झूठ क्यों न हो सतह पर, हर चीज बिलकुल
ठीक जान पड़ती है जैसा कि उसे होना चाहिए। जरूरत है कि अनिश्चित अस्तित्व
के साथ तुम्हारा तालमेल थोड़ा बैठ जाए।
अस्तित्व अनिश्चित है, असुरक्षित है, खतरनाक है। वह एक प्रवाह है चीजें
सरक रही हैं, बदल रही हैं। यह एक अपरिचित संसार है; परिचय पा लो उसका।
थोड़ा साहस रखो और पीछे मत देखो, आगे देखो; और जल्दी ही अनिश्चितता स्वयं
सौंदर्य बन जाएगी, असुरक्षा सुंदर हो उठेगी।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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