एक महान
सम्राट को
स्वप्न आया कि
उसके सामने एक
काली छाया खड़ी
है। यहां तक कि
स्वप्न में भी
वह भय से कांप
उठा। उसने
छाया से पूछा, मेरी नींद
में मुझे इतना
भयभीत करने
में क्या सार
है?
छाया
बोली, यह
तुम्हारे ही
हित में है।
मैं तुम्हारी
मौत हूं। और
कल शाम जब
सूरज डूबने
लगेगा तब मैं
फिर तुमसे
मिलने आऊंगी।
केवल करुणावश
मैं तुम्हें
आगाह करने आयी
हूं। तुम भले
आदमी हो, इसलिए
तुम्हारे लिए
यह अपवाद किया
गया है। मैं
लोगों को यह
कभी नहीं
बताती कि वे
कब मरने वाले
हैं। तो यदि
तुम कुछ करना
चाहते हो, तो
तुम्हारे पास
अब भी बारह
घंटे का समय
है। तुम्हारी
कुछ करने की
इच्छा रह गई
हो तो कर लो।
यह तुम्हारा
आखिरी दिन है।
वह
इतना घबड़ा गया
कि उस घबराहट
में उसकी नींद
खुल गई। वह
स्वप्न खो
गया। वह पसीने
से तर बतर था।
वह स्वप्न
नहीं, दुःस्वप्न
था और उसके मन
में बड़ा
संभ्रम था कि
इसमें कोई
तथ्य है या
नहीं? उस
आधी रात में
उसने राजधानी
के सारे
ज्योतिषियों
को बुलाया—यह
जानने के लिए
कि उस स्वप्न
का मतलब क्या
है। वे सब
ज्योतिष
शास्त्र के
विभिन्न मतों
के ग्रंथ लेकर
आए। और आपसे
में चर्चा
करने लगे लड़ने
लगे।
जब सूर्यास्त होने
के करीब था, उसका बूढ़ा
नौकर, जो
उसके पिता
तुल्य था...क्योंकि
जब उसके पिता
की मृत्यु हुई
थी तब वह बिलकुल
छोटा था, और
इस बूढ़े नौकर
ने उसकी सब
तरह से देखभाल
की थी, उसकी
सुरक्षा की, उसके
साम्राज्य का
संरक्षण किया,
उसका
राज्याभिषेक
किया। उस बूढ़े
आदमी का वह सम्राट
बहुत समादर
करता था। उस
बूढ़े आदमी ने
उसके कानों
में धीरे से
कहा मेरा
सुझाव मानें
तो...आपने ये जो
मूढ़ इकट्ठे
किए हैं यहां
पर, वे समय
के अंत तक
किसी
निष्कर्ष पर
नहीं पहुंचे।
वे सदियों—सदियों
से चर्चा करते
रहे हैं। उनकी
चर्चा शालीन
है। चर्चा
करने में उनकी
निपुणता
वर्णनातीत
है। लेकिन अभी
आपको उनके
प्रकांड
पांडित्य की
जरूरत नहीं
है। इस समय
आपको जरूरत है
एक खास निर्णय
की। और हमारे
पास ज्यादा
समय नहीं है।
मेरा सुझाव तो
यह है कि आपके
पास विश्व का श्रेष्ठतम
घोड़ा है। यह
घोड़ा लो, और
कम से कम इस
महल से और इस
राजधानी से
जितना दूर भाग
सको, उतना
भाग सको, उतना
भाग जाओ।
यह बात
राजा को जंच
गई। उसने उन
ज्योतिषियों
को उसी
तरह चर्चा
करते हुए छोड़
दिया और वह उस महल
से भाग गया।
जब तुम्हारे
सामने मौत खड़ी
हो तो न
तुम्हें भूख
लगती है, न
प्यास लगती है
और न ही
विश्राम करने
की जरूरत
महसूस होती
है। वह
राजधानी से
जितना दूर हो सके
उतनी दूर भागना
चाहता था।
उसने अपने
राज्य की
सीमाएं पार कर
लीं। सूरज
डूबते डूबते
वह एक सुंदर
बगीचे में, राज्य से
सैकड़ों मील
दूर पहुंच गया
था। जब वह अपना
घोड़ा एक वृक्ष
से बांध रहा
था, तो
उसने घोड़े को
धन्यवाद देते
हुए कहा, मैं
जानता था कि
तुम दुनिया के
श्रेष्ठतम
घोड़े हो, लेकिन
आज तुमने इसे
सिद्ध कर दिया
है। तुम हवा
की गति से
दौड़े हो और
तुमने मुझे
सारे भय से बाहर
कर दिया है।
जो ये
ज्योतिषी
नहीं कर सके, तह तुमने कर
दिखाया।
और ठीक
उसी क्षण सूरज
डूबा, और
अचानक उसने
अपने कंधे पर
किसी हाथ का
अनुभव किया।
उसने पीछे
देखा। वही पुरानी
काली छाया, जिसे उसने
स्वप्न में
देखा था। वहां
खड़ी थी। उसने
कहा, तुम्हारा
घोड़ा तो सचमुच
सर्व श्रेष्ठ
है। न केवल
तुम्हें
बल्कि मुझे भी
उसे धन्यवाद
देना चाहिए।
क्योंकि मुझे
बड़ी फिकर थी।
क्योंकि इसी
स्थान में, इसी समय
तुम्हें करना
था। तुझे
चिंता थी कि तुम
यहां किस तरह
पहुंचोगे।
लेकिन
तुम्हारा घोड़ा
एक चमत्कार
है। वह
तुम्हें ठीक
जगह, ठीक
समय पर ले
आया।
तुम्हारे
जीवन भर तुम
मृत्यु से
डरते हो। तुम अपन
को उलझाए रखते
हो। तुम इस
तथ्य को
स्वीकार करना
नहीं चाहते कि
मौत छाया की
तरह तुम्हारा
पीछा कर रही
है। और कोई
नहीं जानता, अगले क्षण
क्या होने
वाला है। लोग
इस तरह जगत में
जीते हैं जैसे
वे यहां सदा
रहने वाले
हैं। और वे
अच्छी तरह
जानते हैं कि
यहां कोई सदा
के लिए नहीं
है। लेकिन ये
सारे भयभीत
लोग—मृत्यु से
भयभीत, बीमारी
से भयभीत, असफलता
से भयभीत—धूर्त
लोगों के
शिकार हो जाते
हैं।
फिर अमीरत की बून्द पड़ी
ओशो